गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

धीरज हो तो गरीबी का दर्द नहीं होता----

अधम प्रकृत्ति का मनुष्य केवल धन की कामना करता है जबकि मध्यम प्रकृत्ति के धन के साथ मान की तथा उत्तम पुरुष केवल मान की कामना करते हैं।अगर मनुष्य में धीरज हो तो गरीबी की पीड़ा नहीं होती। घटिया वस्त्र धोया जाये तो वह भी पहनने योग्य हो जाता है। बुरा अन्न भी गरम होने पर स्वादिष्ट लगता है। शील स्वभाव हो तो कुरूप व्यक्ति भी सुंदर लगता है।इस विश्व में धन की बहुत महिमा दिखती है पर उसकी भी एक सीमा है। जिन लोगों के अपने चरित्र और व्यवहार में कमी है और उनको इसका आभास स्वयं ही होता है वही धन के पीछे भागते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि वह स्वयं किसी के सहायक नहीं है इसलिये विपत्ति होने पर उनका भी कोई भी अन्य व्यक्ति धन के बिना सहायक नहीं होगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने ऊपर यकीन तो करते हैं पर फिर भी धन को शक्ति का एक बहुत बड़ा साधन मानते हैं। उत्तम और शक्तिशाली प्रकृत्ति के लोग जिन्हें अपने चरित्र और व्यवहार में विश्वास होता है वह कभी धन की परवाह नहीं करते।
धन होना न होना परिस्थितियों पर निर्भर होता है। यह लक्ष्मी तो चंचला है। जिनको तत्व ज्ञान है वह इसकी माया को जानते हैं। आज दूसरी जगह है तो कल हमारे पास भी आयेगी-यह सोचकर जो व्यक्ति धीरज धारण करते हैं उनके लिये धनाभाव कभी संकट का विषय नहीं रहता। जिस तरह पुराना और घटिया वस्त्र धोने के बाद भी स्वच्छ लगता है वैसे ही जिनका आचरण और व्यवहार शुद्ध है वह निर्धन होने पर भी सम्मान पाते हैं। पेट में भूख होने पर गरम खाना हमेशा ही स्वादिष्ट लगता है भले ही वह मनपसंद न हो। इसलिये मन और विचार की शीतलता होना आवश्यक है तभी समाज में सम्मान प्राप्त हो सकता है क्योंकि भले ही समाज अंधा होकर भौतिक उपलब्धियों की तरफ भाग रहा है पर अंततः उसे अपने लिये बुद्धिमानों, विद्वानों और चारित्रिक रूप से दृढ़ व्यक्तियों की सहायता आवश्यक लगती है। यह विचार करते हुए जो लोग धनाभाव होने के बावजूद अपने चरित्र, विचार और व्यवहार में कलुषिता नहीं आने देते वही उत्तम पुरुष हैं। ऐसे ही सज्जन पुरुष समाज में सभी लोगों द्वारा सम्मानित होते हैं।  इसलिए सज्जनता और धीरज  का कभी त्याग नहीं करना चाहिए।
उत्तम जैन विद्रोही

गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

माँ की ममता ...प्रकृति का एक उपहार

माँ की ममता ....... प्रकृती का उपहार
माँ शब्द की रचना कब , किसने , किन संजोग मे , किन भावो के साथ की इसका उलेख बहुत खोजने के बाद भी नही मिला ! ओर मिलने की आशा क्यू की यह एक छोटा शब्द पर विशाल शब्द है ! इसकी विशालता मापी जाये तो तीनों लोक भी कम पड़ जाये ! यह शब्द ही अपने आप मे ह्रदय को प्रफुलित कर देनेवाला , आत्मशांति का अनुभव कराने वाला, चेतना केंद्र को जागृत करने वाला है ! माँ शब्द के जाप से सभी मंत्रो के जाप परिपूर्ण हो जाते है ! माँ नाम के मंत्र सभी मंत्रो से ज्यादा उपकारी है ! माँ शब्द की व्याख्या अगर करने लगे हजारो पेज कम जाते है ! माँ की ममता एक प्रकृती का उपहार है ! माँ की ममता अमृत से ज्यादा गुणकारी है ! हर रोग की अमृत तुल्य दवा है माँ की ममता इसमे कोई संदेह नही ! मेने माँ शब्द को एक पुस्तक मे सँजोने की कंही बार कोसिश की मगर न जाने क्यू पुस्तक पूरी नही कर पाता लिखते हुए एक अध्याय पूरा होता नही ओर आंखो से माँ की ममता के गुणो की व्याख्या करते हुए ममता रूपी
अश्रु ( आँसू ) बह जाते है ! कंही बार माँ को सामने देख जब माँ का मंमतामयी चेहरे पर कुछ रिसर्च करने की कोसिस करता हु तो कहा से शुरू करू ओर कहा अंत समझ मे नही आता ! कलम की स्याही भी गर्व से फूलने लगती है अगर सीधे शब्दो मे कहु तो कलम भी बोलने लगती है इस विशाल ह्रदय माँ रूपी देवी का तू क्या वर्णन करेगा जिसका भगवान राम , कृष्ण नही कर पाये ! मित्रो माँ के बारे मे सक्षिप्त मे लिखने ओर आप को बताने के लिए चंद लाइन लिखी है ! माँ की सेवा से तीनों लोक सुधर सकते है माँ का कर्ज़ तो सात जन्मो मे पूरा नही किया जा सकता पर सूद चुकाना मत भूलना क्यूकी इस जन्म मे अगर सूद (ब्याज ) अगर बाकी रह गया तो अगले जन्म मे कभी पूर्ण नही कर पाओगे !! .......माँ तुझे सलाम !