गुरुवार, 24 मार्च 2016

राजनीति की दशा ओर दिशा .

मैने एक रिपोर्ट देखी ,मालूम हुआ हमारी संसद में कुल में से 130 माननीय सांसद किसी न किसी राजनीतिक खानदान के वारिस हैं। मेरे मन में अब यह भी सवाल है कि हमारा वलशाली लोकतंत्र जो विश्व में सबसे बड़ा, पुराना होने का दम्भ भरता है,चोरों, लुटेरों,बलात्कारियों,ब्यभिचरिओं के लिए भी संसद के दरवाजे खोलता है। आज किस दिशा में अग्रसर है?
भारत में आज जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं वो आज किसी न किसी प्रकार परिवारवाद से गहरे रूप से सम्बद्ध है। आम आदमी जो चाहकर राजनीति से जुड़ने की इच्छा रखता है वो ताउम्र झोला ढोता रह जाता है। अपनी पहचान बनाने से महरूम आम आदमी आजादी के 67 सालों में भी आशा के साथ अपने राजनेता वीरों को देखता है बदले में घोर निराशा का भाव लिए अपनी किस्मत को कोसता है।
हिंदी सिनेमा में गॉड फादर की बात हमने सुनी थी,परन्तु राजनीति में उसकी खास अहमियत है पर यह फादर खोजने से भी नहीं मिलता। आज के नामी-गिरामी नेता युवाओं को राजनीति से जोड़ने की बात करते हुए नहीं अघाते,इस विचार के बल पर अपनी पीठ थपथपाते फिरते है। परन्तु उनको भी वही काविल पुत्र नज़र आते हैं जिनके पिता के जेवों में जान होती है।
आज राजनीति में रिश्तों का बड़ा महत्व है, खून का है तो सोने पे सुहागा अगर खून का नहीं है तो खानदानी जरूर होना चाहिये ! जरूरत है अब वंसवाद की राजनीति पर वापस आयें। तो मै कह रहा था कि 130 सीटों पर राजनीतिक ठेकेदारों के बल बच्चे काविज हैं। ऐसा कहकर मै उनकी प्रतिभा का कदापी अपमान नहीं कर रहा हूँ न मेरा ऐसा कोई उद्देश्य है। मेरा प्रयास तो उस समाज को आईना दिखने का है जो इन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुनकर भेजते हैं। जब तक हम सब इन्हे चुनकर भेजते रहेंगे हमारा हक़ सही मायनों में इनका ग्रास बनता रहेगा ! यूं तो राजनीति की कोई योग्यता निर्धारित नहीं है,परन्तु जल्दी सफलता पाने के कुछ शॉर्टकट तरीके मेरी समझ से जरूर है। मैंने या आपने भी यह अनुभव किया होगा कि कुछ अलग तरह के कार्य करने बाले लोग सफलता के शिखर तक जल्दी पहुँचते हैं ! सीधे- साधे प्रक्रिति के लोगों को सफलता पाने में समय लगता है.या वो अपनी वारी का इंतजार करते उम्र गुजार देते है। धनबल की अपनी महिमा है.अगर आपपर लक्ष्मी माँ की असीम कृपा है तो विधान परिषद में आपके लिए जगह बन सकती है.! आज से कुछ साल पहले बड़े-बड़े राजनेता केजरीवाल एण्ड पार्टी को टीवी डिवेट में हमेशा चुनौती देते थे कि हिम्मत है तो राजनीति में आ जाओ जैसे राजनीति राजनीति नहीं वरन उनका खुदका घर हो। नतीजा अब सबके सामने है। जनता जब बदला ले तो बड़े-बड़े जुमलेबाज और चौड़ी छाती बाले बगले झाकने लगते हैं। दिल्ली के विधानसभा में शायद हीं कोई सीट राजनैतिक घरानों को गई। भारत के बढ़ते आर्थिक औकात ने एक नया खतरा पैदा कर दिया है,भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित प्रकिृति की है जिसमें निजी तथा सार्वजनिक उद्यमों का सह अस्तित्व है। परन्तु पूंजीवादी ताकतों ने राजनीति की दशा और दिशा तय करने में अपनी भूमिका आरम्भ कर दी है जो खतरे का संकेत है। कुछ राजनीतिक घराने और उदयोगपति अगर देश का भविष्य तय करने लगेंगे तो फिर आम जनों के लिए दरवाजे और बंद हो जायेंगे। कही न कही लोकतंत्र की लोकप्रियता गिरने लगेगी,असंतोष को बढ़ाबा मिलेगा। ऐसी स्थिति से बचा जाना चाहिए और दिल्ली चुनाव परिणामों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए !
उत्तम जैन विद्रोही
प्रधान संपादक विद्रोही आवाज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हमें लेख से संबंधित अपनी टिप्पणी करके अपनी विचारधारा से अवगत करवाएं.