सोमवार, 26 जनवरी 2015

विश्व का अनूठा पर्व ..मर्यादा पर्व

विश्व का सबसे अनूठा पर्व  - मर्यादा महोत्सव  ( उत्तम जैन – प्रधान संपादक विद्रोही आवाज़ )
किसी महापुरुष के जन्म दिवस पर या पुण्यतिथि पर किसी उत्सव का आयोजन तो अत्र तत्र ओर सर्वत्र होता रहता है , लेकिन एक ऐसा भी पर्व है जिस दिन न किसी महापुरुष का जन्मदिवस है ओर न किसी महापुरुष की पुण्यतिथि है ओर वह है मर्यादा महोत्सव यह तेरापंथ जैन धर्मसंघ द्वारा पिछले 150 साल से मनाया जा रहा अनूठा पर्व है ! यह पर्व मर्यादाओ का पर्व है अनुशासन का पर्व है अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी के सानिध्य मे कानपुर ( उत्तरप्रदेश ) मे दिनांक 24 जनवरी से 26 जनवरी तक 151 वा मर्यादा महोत्सव मनाया जा रहा है !
स्थानीय स्तर पर आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री सुव्रत कुमार जी के सानिध्य मे चलथाण मे साध्वी श्री सुदर्शना श्रीजी के सानिध्य मे वलसाड मे तथा साध्वी श्री केलाशवती जी के सानिध्य मे व्यारा मे मर्यादा महोत्सव का विशेष आयोजन समायोजित है !
आचार्य भिक्षु द्वारा  संघ के साधू साध्वी के लिए निरूपित तेरापंथ की मूल मर्यादाऐ 13 है जो निम्न है
1 सर्व साधू साध्वीया एक आचार्य की आज्ञा मे रहे
2 विहार चातुर्मास आचार्य की आज्ञा से करे
3 अपने शिष्य न बनाए
4 आचार्य योग्य व्यक्ति को ही दीक्षित करे व दीक्षित करने पर कोई अयोग्य निकले तो उसे गण से अलग कर दे
5 आचार्य अपने गुरु भाई या शिष्य को उत्तराधिकारी चुने तो सब साधू साध्वीया सहर्ष स्वीकार करे
6 श्रदा या आचार के बोल को लेकर गण मे भेद न डाले , दलबंदी न करे ! आचार्य व बहुश्रुत साधू कहे वह मान   ले अथवा केवलीगम्य कर दे !
7 गण मे शुद्ध साधूपन सरधे वह गण मे रहे किन्तु छल कपटपूर्वक गण मे न रहे जिसका मन साक्षी दे , भली भांति साधुपन पलता जाने , गण मे तथा अपने आप मे साधूपन माने तो गण मे रहे किन्तु वंचना पूर्वक गण मे न रहे
8 गण मे किसी साधू साध्वी के प्रति अनास्था उपजे , शंका उपजे वेसी  बात न करे
9 किसी साधू साध्वी मे दोष जान पड़े तो उसे उसे आचार्य को जता दे , किन्तु प्रचार न करे
10 किसी साधू साध्वी को जाति आदि को लेकर ओछी जुबान न बोले
11 गण के पुस्तक पन्ने आदि पर अपना अधिकार न करे
12 गण से बहिस्कृत या बहिभूर्त व्यक्ति व्यक्ति से संस्तव न करे
13 पद के लिए उम्मीदवार न बने
तेरापंथ की ये मोलीक मर्यादाऐ किसी भी संस्था , समाज या देश के लिए मार्गदर्शक बन सकती है

रविवार, 18 जनवरी 2015

जैन धर्म और पर्यावरण

जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण
आज जहाँ देखो वहाँ पर्यावरण संरक्षण की चर्चा चल रही हैं। पर्यावरण की सुरक्षा, संवद्र्धन ही मानव को सभ्य जीवन जीने की प्रेरणा देता है। आज हमारा देश ही क्या, समूचा विश्व पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति से आहत व चितित है। पर्यावरण अपने भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक पहलुओं द्वारा मानव की नियति का निर्धारण करता है। जल, वायु, जमीन और आकृति के समावेश से भौतिक वातावरण जीवन के अस्तित्व को विभिन्न प्रकार से बनाये रखता है। जैविक वातावरण में वनस्पति एवं जीव—जन्तु शामिल हैं, जो जीवित प्राणियों के लिये भोजन एवं आहार के अन्य साधन उपलब्ध कराते हैं। मानव ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि उसे संवारने हेतु एक बहुत लम्बा समय लग जायेगा। जलवायु, शोर एवं जनसंख्या इन सबकी विशुद्धता एवं संतुलन ही पर्यावरण की सुरक्षा करता है। जल, वायु और जनसंख्या को यदि हम स्थूल दृष्टि से देखें तो इन सबका सीधा सम्बन्ध मनुष्य से हुआ करता है। मनुष्य का प्रवृत्ति के साथ उदार सम्बन्ध रहा है परन्तु आज वह दूर—दूर तक नजर नहीं आता, मनुष्य का प्रकृति से उदार सम्बन्ध ही प्रदूषण को नियंत्रित कर सकता है। प्रकृति के निर्मम शोषण एवं दोहन के लिये मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। कहना चाहिये ऐसा कर वह स्वयं अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है। पर्यावरण सुरक्षा का अभियान हम पूरे विश्व में अनेक प्रकार से मनाते हैं। ‘पर्यावरण’ यह शब्द आज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ जाना पहचाना जाता है। हमारे देश में समय—समय पर ‘पर्यावरण सुरक्षा दिवस’, ‘वृक्ष लगाओ अभियान’ तथा अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों चलती रहती हैं फिर भी इन सबका परिणाम शून्य रहा है। क्योंकि पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर केवल चर्चा ही होती नजर आती हैं। आज के समय यदि कोई र्चिचत शब्द है तो वह है ‘पर्यावरण’। देश की संसद से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में इस शब्द की गूँज हो रही है। आज समय चीख—चीख कर कह रहा है कि अपने भूत और भविष्य की समीक्षा करो पर सुनता कौन किसकी है ? पर्यावरण विनाश को यदि रोकना है तो जैन सिद्धान्तों का विश्व को अनुकरण करना ही होगा। केवल एकमात्र जैन धर्म ही संसार का वह पहला और अब तक का आखिरी धर्म है जिसने धर्म का मूलाधार पर्यावरण सुरक्षा को मान्य किया है।
उत्तम जैन
विद्रोही आवाज़