रविवार, 18 जनवरी 2015

जैन धर्म और पर्यावरण

जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण
आज जहाँ देखो वहाँ पर्यावरण संरक्षण की चर्चा चल रही हैं। पर्यावरण की सुरक्षा, संवद्र्धन ही मानव को सभ्य जीवन जीने की प्रेरणा देता है। आज हमारा देश ही क्या, समूचा विश्व पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति से आहत व चितित है। पर्यावरण अपने भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक पहलुओं द्वारा मानव की नियति का निर्धारण करता है। जल, वायु, जमीन और आकृति के समावेश से भौतिक वातावरण जीवन के अस्तित्व को विभिन्न प्रकार से बनाये रखता है। जैविक वातावरण में वनस्पति एवं जीव—जन्तु शामिल हैं, जो जीवित प्राणियों के लिये भोजन एवं आहार के अन्य साधन उपलब्ध कराते हैं। मानव ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि उसे संवारने हेतु एक बहुत लम्बा समय लग जायेगा। जलवायु, शोर एवं जनसंख्या इन सबकी विशुद्धता एवं संतुलन ही पर्यावरण की सुरक्षा करता है। जल, वायु और जनसंख्या को यदि हम स्थूल दृष्टि से देखें तो इन सबका सीधा सम्बन्ध मनुष्य से हुआ करता है। मनुष्य का प्रवृत्ति के साथ उदार सम्बन्ध रहा है परन्तु आज वह दूर—दूर तक नजर नहीं आता, मनुष्य का प्रकृति से उदार सम्बन्ध ही प्रदूषण को नियंत्रित कर सकता है। प्रकृति के निर्मम शोषण एवं दोहन के लिये मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। कहना चाहिये ऐसा कर वह स्वयं अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है। पर्यावरण सुरक्षा का अभियान हम पूरे विश्व में अनेक प्रकार से मनाते हैं। ‘पर्यावरण’ यह शब्द आज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ जाना पहचाना जाता है। हमारे देश में समय—समय पर ‘पर्यावरण सुरक्षा दिवस’, ‘वृक्ष लगाओ अभियान’ तथा अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों चलती रहती हैं फिर भी इन सबका परिणाम शून्य रहा है। क्योंकि पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर केवल चर्चा ही होती नजर आती हैं। आज के समय यदि कोई र्चिचत शब्द है तो वह है ‘पर्यावरण’। देश की संसद से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में इस शब्द की गूँज हो रही है। आज समय चीख—चीख कर कह रहा है कि अपने भूत और भविष्य की समीक्षा करो पर सुनता कौन किसकी है ? पर्यावरण विनाश को यदि रोकना है तो जैन सिद्धान्तों का विश्व को अनुकरण करना ही होगा। केवल एकमात्र जैन धर्म ही संसार का वह पहला और अब तक का आखिरी धर्म है जिसने धर्म का मूलाधार पर्यावरण सुरक्षा को मान्य किया है।
उत्तम जैन
विद्रोही आवाज़

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