किसी संस्कृति को अगर समझना हो तो
सबसे आसान तरीका हैं कि हम उस संस्कृति में नारी के हालात को समझने की कोशिश करे
स्त्रिया समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती हैं ! यह
स्त्री लेखन संबंधी एक समस्या है। सामाजिक तौर पर देखा जाए तो एक स्त्री ही दूसरी
स्त्री की शत्रु हैं। अगर किसी देश में स्त्रियों का जीवन उन्मुक्त
हैं तो इसका सीधा आशय यह निकलता हैं कि उस देश का समाज एक उन्मुक्त समाज हैं ! वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, ममता, त्याग, बलिदान जैसे आधार पर ही सृष्टि
खड़ी है। और ये सभी गुण-एक साथ नारी में समाहित हैं। नारी-प्रेम त्याग का
प्रतिबिंब है। नारी के अभाव में मानव जीवन शुष्क है और समाज अपूर्ण। नारी, संसार की जननी है। मातृत्व, उसकी सबसे बड़ी साधना है।
निर्विवाद रूप में नारी की यह विशेषता है कि वह जन्मदात्री है, सृष्टि सृजन करती है, जीवन की समूची रस-धार उसी पर
आधारित है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, नारी संदर्भ में भारतीय समाज में
भी, अब दूर से ही पहचाना जा सकता है। वर्तमान सामाजिक संदर्भ में, व नारी की दशा और दिशा में, क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है कोई
भी समाज एक जगह स्थिर नहीं रहता हर पल बदलता रहता हैं ! हर पल बदलते समाज में
महिलाओ की असल सूरत को पहचान पाना मुश्किल हैं ! वर्तमान युग, चेतना का युग है। तकनीकी उपलब्धियों
का युग है तथा प्राचीन मूल्यों में परिवर्तन का युग है। नारियों को प्रगति पथ पर प्रेरित करने हेतु राजाराम मोहन
राय, महात्मा गांधी, जो महती योगदान किया, उसी कारण वर्तमान ‘नारी- में नारी की स्थिति में सुधार हुआ हैं ! इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय
नारी अपनी लक्ष्मण रेखाओं को छोड़ अबलापन की भावना से हटकर विकास के पथ पर चढ़ रही
है। वह किरण बेदी है, तो साथ ही कल्पना चावला भी है, । जहां-जहां, उसका दिशा बोध डगमगाया है, वहीं उसका पतन भी चरम पर पहुंचा
है। पश्चिमी सभ्यता के संक्रमण के कारण जहां नारी-जीवन में विविध बदलाव आये हैं, वहां यौन शुचिता भी संक्रमित हुई
है। यथार्थ के नाम पर नग्नता को अपनाया जा रहा है। टी.वी. चैनलों पर प्रसारित
धारावाहिकों में नारी को अलग रूप में दिखाया जा रहा हैं जो धीरे-धीरे पूर्ण समाज
का सत्य बनता जा रहा है। षड्यंत्रकारी भूमिका में नारी का के पर्दे चित्रण हो रहा
है ! जो वास्तविक जीवन में अपने पांव पसार चुका है। निःसंदेह आज नारी को
समानाधिकार प्राप्त हैं लेकिन फिर भी वह दहेज की खातिर, जलाई जाती है । कदम-कदम पर
तिरस्कृत होती है। शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन
हुआ है। नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य और सहजता
को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई होती हैं ! मुग़ल
काल मैं भारतीय नारी ने अपने सतीत्व के साथ अपने प्राणों की आहुति देने का कार्य
किया ! आज़ाद भारत में महिलाओ ने सामाजिक व शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से तरक्की
हासिल की ! वर्तमान मैं भी राजनीतिक क्षेत्र में महिला शक्ति का वर्चस्व कायम है !
शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने नारी को नवीन चेतना दी है। पुरुष नियंत्रित समाज
में नारी, आज आत्मविश्वास से भरी हुई हैं !। यदि नारी में निर्भीकता और
स्पष्टवादिता है, तो वह कहीं पर भी और कभी भी कुंठाग्रस्त नहीं होती। आज हम महिलाओ
के विकास की बात करते है ! समाज राजनीति , फिल्म और साहित्य और शिक्षा के
क्षेत्र में महिलाओ को सम्मानित किया जाता है ! धीरे धीरे परिस्थतिया बदल रही है
और महिलाएँ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है ! माता पिता अब बेटा बेटी
में कोई फर्क नहीं करते है ! महिलाओ को सशक्त करना जरुरी होगा क्युकि महिलाएँ ही
देश के विकास में महत्व पूर्ण भागीदारी निभायेगी
! लेकिन आज हम देखते है कि गाँवों में नारी की दशा आज भी बेहद ख़राब है गाँवों में
नारी शिक्षा का प्रचार प्रसार होने के बावजूद अज्ञान की
कालिमा नहीं मिटी है ! अशिक्षित महिलाओ को अपने अधिकारों की जानकारी न होना और
अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना महिला पीड़ा का सबसे बड़ा कारण है! यह सही
बात है कि बिना शिक्षा और क़ानूनी जागरूकता के वर्तमान युग मैं महिलाओ को अधिकार
और सम्मान मिलना मुश्किल है !! भूमण्डलीकरण, नारियों के लिए एक ऐसी चक्की है, जिसमें उन्हें पीसा जा रहा है।
इसका एक चेहरा बेबस, गरीब नारी है, जिसकी आंखों में उसके भूखे बच्चे
के प्रति उसकी वेदना समाई हुई है, तो उसका दूसरा चेहरा, उस लड़की का है- जिसका मुंह
गुस्से से तमतमाया हुआ है। । नारी का छद्म रूप दिखाकर उन असंख्य नारियों की वेदना
नहीं छिपाई जा सकती, जो गांवों में रहती हैं। नारियों का वास्तविक स्वरूप वही है, जो गांवों में अभावों से जूझती और
रूढि़यों में जकड़ी नारियों में, दिखाई देता है ! मेने बहुत बार छोटे छोटे गांवो मे देखा है जहा आज भी
नारी पर्दे मे रहती है ! पति की
मोत के बाद कोई श्रंगार नही करती घर से बाहर
निकलने मे आज भी पाबंधी है
! वेसे अब कम देखने को मिलता है ! नारी में भी नैतिकता का भारतीय
परम्परागत भाव तिरोहित हो रहा है। समय और स्थान के अनुसार मान्यताओं में शीर्षासन
होता रहा है, लेकिन प्रदर्शन की होड़ में, वर्तमान नारी स्वयं चीरहरण में
लगी है। सात्विक रूचि और कलात्मकता, उदारीकरण की बयान में बह गई है।
संबंधों के बीच से प्रेम और स्नेह गायब हो रहा है। नारी भी, आत्मकेन्द्रित हो रही है। इसी के
अनुरूप बदल रहा है - आधुनिक नारी का-मूल भाव। पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात
करते हैं तो हर तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी ! पहनावे जरुर अलग थे लेकिन जमीनी
तौर पर पुरे देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की
एक कहानी सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ उनका चरित्र
और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदार
बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का
भय अब तक हैं ! इनके ख़ुशी की लालसा भी हैं !‘ शीर्ष पदों पर पहुँचकर महिलाएँ
महिला शक्ति का परचम लहरा रही है ! परन्तु आज भी परिवार में महिला अपनी
जिम्मेदारियों और घरेलु हिंसा व पाटो के बीच पिसती चली जा रही है महिलाओ के प्रति
अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे ! महिलाओ पर होने वाले अत्याचारों में महिलाओ की
भी अहम् भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता !! कन्याओ को कोख में मारे जाने में महिलाओ
की भूमिका ज्यादा होती है ! महिलाओ पर होने वाले घरेलू अत्याचारों में भी महिलाओ
की भूमिका अहम् होती है ! महिलाओ को बराबरी का दर्जा दिलाना है तो खुद महिलाओ को
इस दिशा में प्रयास करना होगा और सकारात्मक कदम उठाना होगा ! आज वर्तमान में नारी
की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैं ! आज समाज को स्वामी को दयानंद सरस्वती
, गोखले , तिलक जैसे महान सुधारको की जरुरत हैं जो समाज मैं जनजागरण ला सके !
समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी ! वर्तमान में समाज को सही दिशा देने
वाले नेताओं की कमी खल रही हैं किसी भी समाज में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक
समस्याओं का निराकरण महिलाओ की साझेदारी के बिना नहीं हो सकता इसलिए समाज में
महिलाओ की स्थिति को मजबूत करना बहुत ज़रुरी है ! महिलाओ के प्रति
भेदभाव करने के मामले समाज के लिए नए नहीं है !सालो से चल रहे महिला सशक्तिकरण के
अभियानों के बावजूद भी महिलाए उपेक्षा का शिकार हो रही है ! विज्ञापन में नारी-देह
का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। नारी का नंगापन, उसकी स्वतंत्रता का सूचक नहीं है।
वर्तमान समय में भी समाज में नारी का स्थान कुछ वैसा ही है, जैसा-किसी दुकान, मकान, आभूषण अथवा चल-अचल सम्पत्ति हो।
वर्तमान प्रधान समाज को अपनी सामंती सोच एवं संकीर्ण मानसिकता, सड़ी-गली व्यवस्था, रूढि़गत कुप्रथा को नारी-उत्कर्ष
हेतु तिलांजलि देनी ही होगी। पुरुषों को इस प्रकार का वातावरण तैयार करना होग, जिससे नारी को एक जीवंत-मानुषी, जन्मदात्री एवं राष्ट्र की
सृजनहार समझा जाये, न कि मात्र भोग्य की वस्तु ! दैनिक जीवन में महिलाओ द्वारा
कठिनाई झेलने के बावजूद भी चीज़े बेहतर हुई हैं और एक ऐसी गति भी आई हैं जिसकी उम्मीद दो दशक
पहले तक नहीं की जा सकती ! पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात करते हैं तो हर
तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी !पहनावे ज़रुर अलग थे लेकिन ज़मीनी तौर पर पूरे
देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की एक कहानी
सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ ! आज भारत में लड़कियों
की तीन तरह की सूरत हैं पहली सूरत गॉंग और कस्बों में जन्मी पली बढ़ी और गुजर बसर
करने वाली लड़कियों की ! इनका चेहरा खुली किताब हैं ! दूसरा चेहरा महानगरों की
लड़कियों का जिनका आधुनिक होना बहुत सहज हैं उनके मन में परम्पराओं की कोई गाँठ
शेष नहीं हैं ! इन लड़कियों ने जन्म से ही उन्मुक्त जीवन जिया हैं उनकी स्वतंत्रता
नेसर्गिक हैं ! तीसरी सूरत मध्य वर्ग की उन लड़कियों की जिसकी जड़े अब तक तथा कथित
अविकसित इलाक़ो से ही जुड़ीं हैं पर जिंदगी का सफ़र महानगरों तक फैल गया ! बचपन से
एसी लड़कियों को पारिवारिक संस्कार दिए जाते हैं उन्हें बताया जाता हैं क्या हैं
एक स्त्री का फर्ज !उनका चरित्र और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज
और परिवार के प्रति जिम्मेदार बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं
लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का भय अब तक हैं ! सामाजिक/राजनीतिक/शैक्षिक/व्यवसायिक
आदि तथा कला एवं साहित्य के क्षेत्र में नारी सम्मानित हुई है। समाजवादी नारी
भावना का निरंतर विकास हो रहा है। वास्तव मे नारी पर जो बंधन/सीमा नियंत्रण थे, वह इन सबसे मुक्ति पा रही है।
वर्तमान समाज में अर्थ प्रधान संस्कृति का बोलबाला है। विकास के नाम पर नारी
स्वच्छंद जीवन व्यतीत कर रही है। नारी-जीवन मूल्यों में आमूल परिवर्तन हुआ है भारत
में व्यावसायिक शिक्षा हासिल करने वाली
महिलाएँ दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा हैं !नौकरी करने वाली महिलाएँ भारत देश
में ज्यादा हैं आज वर्तमान युग में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने
से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो
रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये
सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत
चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं ! शक्ति के बगैर शिव को शव ही माना
जायेगा ! कृष्ण की बात करे तो राधा का संग पाकर ही सोलह कलाओ से परिपूर्ण होते हैं
! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे !
मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी होगी एसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा ! हमे
कोशिश करनी होगी बेटियों को बचाने की और नारी शक्ति का सम्मान करने की पति-पत्नी
के जन्म-जन्मांतर के साथ का, मिथक टूट चुका है। , उसने अपना व्यक्तित्व प्राप्त कर
लिया है। पत्नी कथा की पीड़ा और वेदना अब कम हुई है। आज की नारी-मध्यकालीन आदर्शों
से भिन्न सामंती सभ्यता से विच्छिन्न हो, अपने जीवन के प्रति सजग होकर जीव
नयापन करने को स्वच्छंद है ! आज की नारी कुछ करना चाहती हैं एक नए हिम्मत और
होंसले के साथ ! नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य
और सहजता को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई
होती हैं ! अमीर देशो मैं जो सुधार 100 वर्ष में आया वह निम्न और मध्यम
वर्ग वाले देशो में महज 40 वर्ष में आ गया ! भारत में मातृ सत्तामक समुदायों की महिलाओ में
स्वछंद और अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले कहकर आलोचना हुई !! आज वर्तमान युग
में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो
सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज
बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि
हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं !
इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी वर्जनाओं को तोड अबलापन की भावना को
तिलांजलि देकर विकास के सोपान चढ़ रही है। लेकिन शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की
जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन हुआ है। महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग
रहना होगा महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए
उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरुरी हैं ! महिलाएँ चाहे महानगरों की हो
या गाँव की निरंतर असुरक्षित होती जा रही हैं ! ओरतो की आज़ादी पर लगाम लगाने वालो
पर लगाम लगाना बहुत ज़रुरी हैं ! सच तो यह हैं कि स्त्री से जुड़ीं मान्यता और
पुलिस कानून की व्यवस्था ही आज दुष्कर्मी की सबसे बड़ी रक्षक बनी हुई हैं ! महिलाओ
पर यौन हिंसा आक्रमण न हो इसके लिए हमे स्वस्थ समाज की पुनर्स्थापना करनी होगी !आज
की नारी के चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरिएर के ऊँचे मुकाम हांसिल करना जिसके लिए
शायद वो कोई भी समझौता कर सकती हैं शायद अपनी आज़ादी को फिर से दाव लगाकर भी !
खेतिहर और घरेलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला सशक्तिकरण में
एक महत्व पूर्ण कदम हैं ! जो समाज स्त्रियों के
विकास को उचित नहीं समझता उसे बदल देना बेहतर हैं ! नारी ईश्वरीय वरदान हैं आज
समाज में सिर्फ इस तरह की मानसिकता के लोग हैं जो सिर्फ नारी को भोग की वस्तु
समझते हैं ! वह दिन कब आएगा जब महिलाओ और लड़कियों के लिए अपनी मर्ज़ी से जीना
संभव हो सकेगा ! आज योग्यता और क्षमता होने के बावजूद देश की आधी आबादी उन्नति
नहीं कर पा रही हैं ! असुरक्षा की भावना उन्हें न चाहते हुए भी चार दीवारी में कैद
कर देती हैं !! पुरुषों को ये बर्दाश्त नहीं होता कि स्त्री अपनी जिंदगी से जुड़ा
छोटा सा फैसला खुद ले ! महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा महिलाओ के
लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म
निर्भर होना बहुत जरूरी हैं आज के समय में नारी जीवन को अधिक गति मिली है। , नगरों में सुशिक्षित नारी में
इसकी गति विधि, अधिक दिखाई देती हैं। , सयुक्त परिवार की प्रथा समाप्त हो
रही है। पश्चिम के अनुकरण में आज की नारी-शिक्षा, विज्ञान, विज्ञापन, कला, साहित्य के क्षेत्र मे अपना
बहुमूल्य योगदान दे रही है आज की नारी के
चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरियर के ऊँचे मुकाम हासिल करना जिसके लिए शायद वो कोई
भी समझौता कर सकती हैंग्लैमर, फैशन, आजादी और आसमान को छूने की चाह तो
बढ़ी ही है।!! खेतिहर और घरलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला
सशक्तिकरण में एक महत्व पूर्ण कदम हैं ! आज की नारी, अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी
जानती है, उसे अपनी सामाजिक सत्ता का पूर्ण भान है। नारी, बदलते परिवेश में पारिवारिक
बिखराव, मूल्यहीनता, , दिशाहीन राजनीति का प्रभाव, शोषण से मुक्ति पाने की इच्छा
व्यक्त कर रही है, एवं धीरे-धीरे अपने इस प्रयास में सफल भी हो रही है। नारी- की दृढ
इच्छा शक्ति के कारण वर्तमान में उसकी अबला नारी की छवि निश्चित ही बदली हैं , नारी-सबल हो रही है, ऊर्जावान बनी है और ये बहुत बड़ा
परिवर्तन हुआ हैं नारी के सम्पूर्ण जीवन में ! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती
हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे ! मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी
होगी ऐसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा !साथ मे वर्तमान
में स्त्री उत्थान से संबंधित कई चुनौतियां हैं। स्त्री से संबंधित समस्याएं हमारी
गहरी आस्था का प्रश्न है, क्योंकि स्त्री माता, बहन, बेटी
और पत्नी है। कहा जाता है कि स्त्री कुछ समय के लिए पत्नी और अनंतकाल के लिए माता
होती है। लेकिन आज का स्त्री विमर्श एक ऐसा सापेक्ष्य संवेदना का हिस्सा है, जो
वास्तविक समस्याओं पर पर्दा डालता है। स्त्री मुक्ति के लिए संविधान ने कानून बनाया है, लेकिन अधिकतर महिलाएं इस कानून का गलत प्रयोग कर
रही हैं। दहेज से संबंधित अनगिनत झूठे मामले अदालत में दर्ज हो रहें हैं। महिलाएं
ऐसे कानून का सहारा लेकर, परिवार जनों को मुश्किलों में डाल रही हैं, एक
तरफ गौरा जैसी महिलाएं समाज के कुचक्र में फंसकर आत्महत्याएं कर रही हैं। जब तक
महिलाएं अपने दोगलेपन के प्रति सचेत नहीं होती जब तक स्त्री उत्थान की कल्पना करना
व्यर्थ हैं।