शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

बिहार का चुनावी जंग ओर बिहार वासियो की चुप्पी

कभी एक दूसरे की हमेशा टांग खींचते रहने वाले, कभी राजनीति में धुर विरोधी रहने वाले आज कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। बिहार की जनता ने शायद कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि लालू यादव और नीतीश कुमार कभी मंच साझा भी करेंगे। मगर, राजनीति में कब, कौन, कहां और कैसे बदल जाएगा, यह कह पाना बहुत मुश्किल है। बीते सालों में, नीतीश और लालू ने एक दूसरे पर न जाने क्या-क्या बयानबाजी की होगी। वहीं, कई बार इन दोनों पर कांग्रेस ने भी वार पर वार किया, लेकिन आज सभी एक साथ मिलजुल बिहार के चुनाव अखाड़े में कूद पड़े हैं। सत्ता की भूख ऐसी होती है कि यह न अपनों को देखती है, न परायों को, न दोस्तों को और न दुश्मनों को। आज बिहार में तीन बड़ी पार्टियां जदयू, राजद और कांग्रेस एक साथ हैं। इस गठबंधन का क्या मलतब निकाला जाए, क्या बिहार में ये सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए एक साथ हुए हैं या फिर इनका मकसद बिहार को विकास की ओर ले जाना है। चूंकि बिहार चुनाव से देश के भावी राजनीतिक क्षेत्र के लिए  बहुत मायने रखता है !  और बिहार की राजनीति को बचपन से देखता और सुनता आ रहा हूं, इसलिए मेरे ख्याल से अगर इस गठबंधन की जीत होती है, तो इससे बिहार को फायदा होने की गारंटी मैं तो नहीं दे सकता। बिहार में जदयू न तो राजद के साथ ज्यादा दूर तक जा सकती है और न कांग्रेस के साथ। इसे मैं सिर्फ नीतीश कुमार की एक मजबूरी के रूप में देख रहा हूं, क्योंकि जीतन राम मांझी ने जदयू में ऐसा बवाल मचाया कि नीतीश के पास राजद और कांग्रेस से हाथ मिलाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं बचा। बिहार की जनता को नीतीश और कांग्रेस से उतनी आपत्ति नहीं होती, जितना नीतीश के साथ लालू से होगी, क्योंकि एक वक्त था जब लालू सरकार से तंग आकर ही बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को वर्ष 2005 में भारी मतों से सीएम की कुर्सी पर बैठाया था और नीतीश के शानदार काम ने उन्हें वर्ष 2010 में भी सीएम बनाया।लेकिन, नीतीश से गलती तब हो गई, जब लोकसभा चुनाव में बिहार की जनता ने उन्हें नहीं पूछा और बिहार की लगभग सभी लोकसभा सीटों का हकदार बीजेपी को बनाया। उसके बाद आनन-फानन में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपने विश्वासपात्र जीतन राम मांझी को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। लेकिन, यहीं पूरा खेल बदल गया। सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद मांझी ने नीतीश का पूरा खेल खराब कर दिया।यहां तक कि नीतीश सत्ता के कितने भूखे हैं, बिहार के लोगों के सामने ये बात आ गई। मांझी ने जदयू में ऐसी फूट डाली कि नीतीश को अपनी पार्टी की साख बचाने के लिए एक ऐसी पार्टी के साथ हाथ मिलाना पड़ा जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इससे ये तो साफतौर से पता चल ही गया कि सारे एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। प्रधानमंत्री जी ने जितनी रैली महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में नहीं की होगी उससे ज्यादा बिहार में की हैं। पर बिहार के लोगो की चुप्पी समझना भी टेढ़ी खीर है पहली  चुप्पी इसलिए है कि गांव-गांव में आरएसएस और वीएचपी के लोग घूम रहे हैं। अपने आसपास बहुत से बाहरी को देख बोल नहीं रहे हैं। दूसरा, गरीब वोटर ऊंची जाति से सुर नहीं मिला सकता इसलिए चुप है। तीसरा चुप्पी का मतलब यह है कि लोग परिवर्तन चाहता है। चौथा  मुक़ाबला इतना बराबरी का है कि कोई खुलकर नहीं बोलता क्योंकि सबका सबसे सामाजिक संबंध हैं। पांचवां चुप्पी का मतलब है कि वोटर चाहता बीजेपी को है, लेकिन 2014 में मोदी-मोदी करने के बाद नतीजा देख रहा है। अब वो मोदी-मोदी करे तो किस मुंह से। उसका दूसरी समस्या है कि वो इस कारण नीतीश-लालू के पक्ष में भी नहीं दिखना चाहता। छठा वोटर चुप इसलिए है कि वो नीतीश लालू से ख़ुश हैं। नीतीश सरकार से डरा होता तो खुलकर बोलता। व्यक्तिगत रूप से इस स्थिति के लिए बिहार के मतदाताओं को बधाई देने का मन कर रहा है। उनकी चुप्पी से चुनाव रोचक हो गया है। हर नेता अपनी सभा या रैली में जीत महसूस करना चाहता, लेकिन वोटर तो स्टुडेंट की तरह कापी हाथ में लिए नेता की सभा को क्लास समझ कर आ जाता है। बोलिये मास्टर जी, आप बोलिये हम सुनने आए हैं! बिहार के मतदाता की चुप्पी को समझने के लिए आपको यश चोपड़ा की फ़िल्म फ़ासले का गाना सुनना चाहिए। हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं... धड़कनों को, आहटों को, सांसे रुक-सी गईं हैं...
.उत्तम जैन (विद्रोही )




गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

महात्मा गांधी जयंती व भारत की वर्तमान स्थिति




दो अक्टोबर देश में गांधी जयंती मनाई जाती है  ! इसमें कोई संदेह नहीं है कि इतिहास में किसी भी महापुरुष का नाम बिना किसी योग्यता, कठिन परिश्रम या त्याग के दर्ज नहीं होता पर यह भी सत्य है कि एतिहासिक पुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन समय समय पर अनेक लोग अपने ढंग से करते हैं। एतिहासिक पुरुषों के परमधाम गमन के तत्काल बाद सहानुभूति के चलते जहां उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन करने वाले अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाते हैं। उस समय कोई प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं करता पर समय के साथ ही एतिहासिक पुरुषों के व्यक्तित्व का प्रभाव क्षीण होने लगता है तब विचारवान लोग प्रतिकूल टिप्पणियां भले न करें पर कुछ प्रश्न उठाने ही लगते हैं। आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है।  हम जब  भारत की बात करते हैं तो एक बात भूल जाते हैं कि प्राचीन  समम में इसे भारतवर्ष कहा जाता था।  इतना ही नहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका, माले तथा वर्मा मिलकर हमारी पहचान रही है।  अब यह सिकुड़ गयी है।  भारतवर्ष से पृथक  होकर बने देश अब भारत शब्द से ही इतना चिढ़ते हैं कि वह नहीं चाहते  शेष विश्व उनको भारतीय उपमहाद्वीप माने।  इस तरह भारतवर्ष सिकुड़कर भारत रह गया है।  उसमें भी अब इंडिया की प्रधानता है।  इंडिया हमारे देश की पहचान वाला वह शब्द है जिसे पूरा विश्व जानता है। भारत वह है जिसे हम मानते हैं।  यह वही भारत है जिसका आधुनिक इतिहास है 15 अगस्त से शुरु होता है।  यह अलग बात है कि कुछ राष्ट्रवादी अखंड भारत का स्वप्न देख रहे हैं।   गांधीजी को विश्व में महान सम्मान प्राप्त हुआ है पर भारतीय जनमानस में अब उनकी छवि क्षीण हो रही है फिर अब फिल्म, क्रिकेट और अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में सक्रिय नये नये महापुरुषों का भी प्रचार हो रहा है। सरकारी और गैर सरकारी तौर पर गांधी जयंती के समय खूब प्रचार होने के साथ ही अनेक कार्यक्रम भी होते हैं पर लगता नहीं कि आज के कठिन समय का सामना कर रहा भारतीय जनमानस उसमें बढ़चढ़कर हिस्सा लेता हो। गांधीजी को राजनीतक संत कहना उनके दर्शन को सीमित दायरे में रखना है। मूलतः गांधी जी एक सात्विक प्रवृत्ति के धार्मिक विचार वाले व्यक्ति थे। निच्छल ह्रदय और सहज स्वभाव की वजह से उनमें उच्च जीवन चरित्र निर्माण हुआ। एक बात तय है कि उन्होंने भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने का जब अभियान प्रारंभ किया होगा तब उनका लक्ष्य आत्मप्रचार पाना नहीं बल्कि देश के आम इंसान का उद्धार करना रहा होगा। अलबत्ता अपने आंदोलन के दौरान उन्होंने इस बात को अनुभव किया होगा कि उनके सभी सहयोग उनकी तरह निष्काम नहीं है। इसके बावजूद वह इस बात को लेकर आशावदी रहे होंगे कि समय के अनुसार बदलाव होगा और अपने ही देश के भले लोग राज्य अच्छी तरह चलायेंगे। कालांतर में जो हुआ वह हम सब जानते हैं। उनके सपनों का भारत कभी न बना न बनने की आशा है। स्थिति यह है कि अनेक अनुयायी अब दूसरे स्वाधीनता आंदोलन का बात करने लगे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि गांधी जी का सपना पूरा नहीं हुआ और जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन प्रारंभ किया वह पूरा नहीं हुआ। दूसरे शब्दों में 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी केवल एक ऐसा प्रतीक है जिसकी स्मृतियां केवल उस दिन मनाये जाये वाले कार्यक्रमों में ही मिलती है। जमीन पर अभी गांधीजी के सपनों का पूरा होना बाकी है।  यहां हम गांधीजी के व्यक्तित्व और कृतित्व की आलोचना नहीं कर रहे क्योंकि मेरा जेसा  मामूली पत्रकार शख्स भला उन पर क्या लिख सकता है? अलबत्ता देश के हालात देखकर वैचारिक रूप से गांधी दर्शन अब निरापद नहीं माना जा सकता है। सबसे पहला सवाल तो यह है कि भारत का स्वाधीनता आंदोलन अंततः एक राजनीतिक प्रयास था जिसमें राजकाज भारतीयों के हाथ में होने का लक्ष्य तय किया गया था। दूसरी बात यह कि गांधीजी ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया था जिस पर भारतीयों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने का आरोप था। इसके अलावा देश की समस्याओं के प्रति अंग्रेज सरकार की प्रतिबद्धता पर भी संदेह जताया गया था। इसका अर्थ सीधा है कि गांधीजी एक ऐसी सरकार चाहते थे जो देश के लोगों की होने के साथ ही जनहित का काम करे। ऐसे में राजकाज के पदों पर बैठने वाले महत्वपूर्ण लोगों की गतिविधियां महत्वपूर्ण होती हैं। तब गांधी जी ने राजकाज प्रत्यक्ष रूप से चलाने के लिये कोई पद लेने से इंकार क्यों किया? क्या वह इन पदों को भोग का विषय समझते थे या दायित्व निभाने के लिये अपने अंदर क्षमता का अभाव अनुभव करते थे। अगर यह दोनों बातें नहीं थी तो क्या उनको भरोसा था कि जो लोग राजकाज देखेंगे वह उनके रहते हुए अच्छा काम ही करेंगे? क्या उनको यकीन था कि जिन लोगों को वह राजकाज का जिम्मा सौंपेंगे वह अच्छा ही काम करेंगे?   बहरहाल विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गांधी  का नाम पूज्यनीय है।  उन्होंने भारत की राजनीतिक आजादी की लड़ाई लड़ी।  इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें।  संभव है कुछ लोग इस तर्क को  संकीर्ण मानसिकता का परिचायक माने पर तब उन्हें यह जवाब देना होगा देश की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के बनाये ढेर सारे कानून अब तक क्यों चल रहे हैंदेश के कानून ही व्यवस्था के मार्गदर्शक होते हैं और तय बात है कि हमारी वर्तमान आधुनिक व्यवस्था का आधार अंग्रेजों की ही देन है।       महात्मा गांधी ने अपना सार्वजनिक जीवन दक्षिण अफ्रीका  से प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया।  तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से  प्रतिष्ठित कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है।        महात्मा  गाँधी  का जीवनकाल  मेरे जैसे लोगों के जन्म से बहुत पहले का है।  उन पर जितना भी पढ़ा और जाना उससे लेकर उत्सुकता रहती है। फिर जब चिंत्तन का कीड़ा कुलबुलाता है तो कोई नयी बात नहीं निकलती। इसलिये आजकल के राजनीतिक और सामाजिक हालात देखकर अनुमान करना पड़ता है क्योंकि व्यक्ति बदलते हैं पर प्रकृति नहीं मिलती।  यह अवसर अन्ना हजारे साहब ने प्रदान किया।  वैसे तो अन्ना हजारे स्वयं ही महात्मा गांधी के अनुयायी होने की बात करते हैं पर उन्होंने ही सबसे पहले भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान यह कहकर आश्चर्यचकित किया कि अब वह दूसरा स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘हमें तो अधूरी आजादी मिली थी  ऐसे में हमारे जैसे लोगों किंकर्तव्यमूढ़ रह जाते हैं।  प्रश्न उठता है कि फिर महात्मा गांधी ने किस तरह की आजादी की जंग जीती थी।  अगर अन्ना हजारे के तर्क माने जायें तो फिर यह कहना पड़ेगा कि उन्हें इतिहास एक ऐसे युद्ध के विजेता नायक के रूप में प्रस्तुत करता है जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ है।  अनेक लोग अन्ना हजारे की गांधी से तुलना पर आपत्ति कर सकते हैं पर सच यही है कि उनका चरित्र भी विशाल रूप ले चुका है।  उन्होंने भी महात्मा गांधी की तरह राजनीतिक पदों के प्रति अपनी अरुचि दिखाई है।  सादगी, सरलता और स्पष्टतवादिता में वह अनुकरणीण उदाहरण पेश कर चुके हैं। मेरे जैसे विद्रोही विचारो ,निष्पक्ष और स्वतंत्र लेखक उनकी गतिविधियों में इतिहास को प्राकृतिक रूप से दोहराता हुआ देख रहे हैं। इसलिये भारतीय दृश्य पटल पर स्थापित बुद्धिजीवियों, लेखकों और प्रयोजित विद्वानों का कोई तर्क स्वीकार भी नहीं करने वाले।  महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा।  उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया।  महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था।  अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग  एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए  पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं।  अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है।  यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है।  अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये।  जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं।  कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर भारत में भगवान राम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध तथा  महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं।  इतना ही नहीं गुरुनानक देव, संत कबीर, तुलसीदास, रहीम, और मीरा जैसे संतों की  भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के  क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता।  एक तरह से कहें कि कहीं न कहीं महात्मा गांधी वैश्विक छवि की वजह से अपनी छवि यहां बना पाये। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है।  हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेजी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।  उन्होंने सरल, सादा सभ्य जीवन गुजारने की प्रेरणा दी। ऐस महापुरुष को भला कौन सलाम ठोकना नहीं चाहेगा।
(लेखक -विद्रोही आवाज़ के संपादक उत्तम जैन के अपने विचार है सभी पाठक सहमत हो जरूरी नही )
उत्तम जैन (विद्रोही )

रविवार, 27 सितंबर 2015

क्षमावाणी पर्व देता है मधुरता का संदेश

राग-द्वेष मिटाने की सीख देता है क्षमा पर्व -  पर्युषण एक आध्यात्मिक त्योहार है। इस दौरान ऐसा लगता है मानो जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। वैसे तो वर्ष भर में बहुत से त्योहार आते हैं। त्योहार के आगमन के साथ ही मनुष्य के मन में अच्छा पहनने, सजने-धजने और अच्छा दिखने, खाने की लालसा जागृत होने लगती है। लेकिन दिगंबर जैन मतावलंबी  मे  दसलक्षण का  पर्युषण पर्व  ऐसा त्योहार है जिसमें सभी का मन धर्म के प्रति ललचाता दिखाई देता है। किसी का मन उपवास के लिए तो किसी का एकाशन के लिए मचलता है। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मनुष्य को मुक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता। पर्युषण पर्व का पहला दिन ही 'उत्तम क्षमा' भाव का दिन होता है। धर्म के दस लक्षणों में 'उत्तम क्षमा' की शक्ति अतुल्य है। क्षमा भाव आत्मा का धर्म कहलाता है। यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष का नहीं होता, बल्कि समूचे प्राणी जगत का होता है। जैन धर्म में पयुर्षण पर्व के दौरान दसलक्षण धर्म का महत्व बतलाया गया है। वे दस धर्म क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आंकिचन और ब्रह्मचर्य बतलाए गए हैं। यह वही धर्म के दस लक्षण हैं, जो पर्युषण पर्व के रूप में आकर, सभी जैन समुदाय और उनके साथ-साथ संपूर्ण प्राणी-जगत को सुख-शांति का संदेश देते हैं।जब भी कभी आप क्रोधित हो तब आप मुस्कुराहट को अपना कर क्षमा भाव अपना सकते हैं, इससे आपके दो फायदे हो जाएंगे, एक तो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी, जिससे उसी समय आपके मन का सारा क्रोध नष्ट होकर मन में क्षमा का भाव आ जाएगा और दूसरा आपकी निश्छल मुस्कुराहट सामने वाले व्यक्ति के क्रोध को भी समाप्त कर देगी, जिससे निश्चित ही उनका भी ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा। क्षमा एक ऐसा भाव है, जो हमें बैर-भाव, पाप-अभिमान से दूर रखकर मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है।  सनातन, जैन, इस्लाम, सिख, ईसाई, सभी धर्म एक ही बात बताते हैं कि एक दिन सभी को मिटना है अत: परस्पर मिठास बनाए रखें। मिट जाना ही संसार का नियम है। तो फिर हम क्यों अपने मन में राग-द्वेष, कषाय को धारण करें। अत: हमें भी चाहिए कि हम सभी i कषायों का त्याग करके अपने मन को निर्मल बनाकर सभी छोटे-बड़ों के लिए अपने मन में क्षमा भाव रखें। जैन पुराण कहते है कि जहां क्षमा होती है वहां क्रोध, मान, माया, लोभ आदि सभी कषाय अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं। जीवन में जब भ‍ी कोई छोटी-बड़ी परेशानी आती है तब व्यक्ति अपने मूल स्वभाव को छोड़कर पतन के रास्ते पर चल पड़ता है। जो कि सही नहीं है, हर व्यक्ति को अपना आत्म‍चिंतन करने के पश्चात सत्य रास्ता ही अपनाना चाहिए। हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा है। जिसके जीवन में क्षमा आ जाती है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। 
क्षमा भाव के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि - 'क्षमा वीरस्य भूषणं।' 
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अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण होता है। अत: आप भी इस क्षमा पर्व सभी को अपने दिल से माफी देकर भगवान महावीर के रास्ते पर चलें।  आज क्षमावाणी पर आप सभी से उत्तम क्षमा  

शनिवार, 26 सितंबर 2015

जीवन जीना भी एक कला है

जीवन जीना भी एक कला है अगर हम इस जीवन को किसी कलात्मक रूप से  जिए तो बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है ! वर्तमान में जब चारों ओर अशांति और बेचैनी का माहौल नजर आता है । ऐसे में हर कोई शांति से जीवन जीने की कला सीखना चाहता है ।      जीवन अमूल्य है ! जीवन एक यात्रा है ! जीवन एक निरंतर कोशिश है ! इसे सफलता पूर्वक जीना भी एक कला है ! जीवन एक अनंत धडकन है ! जीवन बस एक जीवन है ! एक पाने-खोने-पाने के मायाजाल में जीने और उसमे से निकलने की बदिश है ! इसे किस तरह जिया जावे कि एक सुखद, शांत, सद्भावना पूर्ण जीवन जीते हुये, समय की रेत पर हम अपने अमिट पदचिन्ह छोड़ सकें ? यह सतत अन्वेषण का रोचक विषय रहा है ।   अक्‍सर देखने में आता है कि सुबह से लेकर शाम तक बल्कि देर रात तक हमारे मित्र अनर्गल वार्तालाप, अनर्गल सोच विचार, करते रहते है, ऑफिस में सहकर्मियों से, दोस्तों से, बाजार में दुकानदार, घर में परिवार के सदस्यों से मनभेद करते है क्यों ? क्‍या आपने कभी यह सोचा है कि - जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्या आपको पता है की आपका जन्म किस लिए हुआ है ? क्या है यह जीवन ? इस तरह के प्रश्न बहुत कीमती हैं । जब इस तरह के प्रश्न मन में जाग उठते हैं तभी सही मायने में जीवन शुरू होता है । ये प्रश्न आपकी जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं । ये प्रश्न वे साधन हैं जिनसे आपके अंत:करण में और गहरी डुबकी लगा सकते हो और जवाब तुम्हारे अंदर अपने आप उभर आएंगे । जब एक बार ये प्रश्न आपके जीवन में उठने लगते हैं, तब आप सही मायने में जीवन जीने लग जाते है ........
      अगर आप जानना चाहते हो कि इस धरती पर आप किसलिए आए हो तो पहले यह पता लगाओ कि यहां किसलिए नहीं आए हो । आप यहां शिकायत करने नहीं आए हो, अपने दुखड़े रोने नहीं आए हो या किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं आए हो । ना ही आप नफ़रत करने के लिए आए हो । ये बातें आपको जीवन में हर हाल में खुश रहना सिखाती हैं । उत्साह जीवन का स्वभाव है । दूसरों की प्रशंसा करने का और उनके उत्साह को प्रोत्साहन देने का मौका कभी मत छोड़ो । इससे जीवन रसीला हो जाता है । जो कुछ आप पकड़ कर बैठे हो उसे जब छोड़ देते हो, और स्वकेंद्र में स्थित शांत हो कर बैठ जाते हो तो समझ लो आप के जीवन में जो भी आनंद आता है, वह अंदर की गहराइयों से आएगा । सभी सुख एवं शांति चाहते हैं, क्यों कि हमारे जीवन में सही सुख एवं शांति नहीं है। हम सभी समय समय पर द्वेष,  क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। और जब हम दुखी होते हैं तब यह दुख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है, और उसके संपर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच, यह जीवन जीने का उचित तरिका नहीं है। हमें चाहिए कि हम भी शांतिपूर्वक जीवन जीएं और औरों के लिए भी शांति का ही निर्माण करें। आखिर हम सामाजिक प्राणि हैं, हमें समाज में रहना पडता हैं और समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ पारस्पारिक संबंध रखना है। ऐसी स्थिति में हम शांतिपूर्वक जीवन कैसे जी सकते हैं? कैसे हम अपने भीतर सुख एवं शांति का जीवन जीएं, और कैसे हमारे आसपास भी शांति एवं सौमनस्यता का वातावरण बनाए, ताकि समाज के अन्य लोग भी सुख एवं शांति का जीवन जी सके? भारत एवं भारत के बाहर भी कई ऐसे संत पुरुष हुए जिन्होंने इस समस्या के, मानवी जीवन के दुख की समस्या के, समाधान की खोज की। उन्होंने उपाय बताया- जब कोई अनचाही के होने पर मन में क्रोध, भय अथवा कोई अन्य विकार की प्रतिक्रिया आरंभ हो तो जितना जल्द हो सके उतना जल्द अपने मन को किसी और काम में लगा दो। उदाहरण के तौर पर, उठो, एक गिलास पानी लो और पानी पीना शुरू कर दोआपका गुस्सा बढेगा नहीं, कम हो जायेगा। अथवा गिनती गिननी शुरू कर दोएक, दो, तीन, चार। अथवा कोई शब्द या मंत्र या जप या जिसके प्रति तुम्हारे मन में श्रद्धा है ऐसे किसी देवता का या संत पुरुष का नाम जपना शुरू कर दो। मन किसी और काम में लग जाएगा और कुछ हद तक तुम विकारों से, क्रोध से मुक्त हो जाओगे।



नारी समाज का अतीत , वर्तमान और भविष्य

किसी संस्कृति को अगर समझना हो तो सबसे आसान तरीका हैं कि हम उस संस्कृति में नारी के हालात को समझने की कोशिश करे स्त्रिया समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती हैं !  यह स्त्री लेखन संबंधी एक समस्या है। सामाजिक तौर पर देखा जाए तो एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की शत्रु हैं।  अगर किसी देश में स्त्रियों का जीवन उन्मुक्त हैं तो इसका सीधा आशय यह निकलता हैं कि उस देश का समाज एक उन्मुक्त समाज हैं ! वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, ममता, त्याग, बलिदान जैसे आधार पर ही सृष्टि खड़ी है। और ये सभी गुण-एक साथ नारी में समाहित हैं। नारी-प्रेम त्याग का प्रतिबिंब है। नारी के अभाव में मानव जीवन शुष्क है और समाज अपूर्ण। नारी, संसार की जननी है। मातृत्व, उसकी सबसे बड़ी साधना है। निर्विवाद रूप में नारी की यह विशेषता है कि वह जन्मदात्री है, सृष्टि सृजन करती है, जीवन की समूची रस-धार उसी पर आधारित है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, नारी संदर्भ में भारतीय समाज में भी, अब दूर से ही पहचाना जा सकता है। वर्तमान सामाजिक संदर्भ में, व नारी की दशा और दिशा में, क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है कोई भी समाज एक जगह स्थिर नहीं रहता हर पल बदलता रहता हैं ! हर पल बदलते समाज में महिलाओ की असल सूरत को पहचान पाना मुश्किल हैं ! वर्तमान युग, चेतना का युग है। तकनीकी उपलब्धियों का युग है तथा प्राचीन मूल्यों में परिवर्तन का युग है। नारियों को प्रगति पथ पर प्रेरित करने हेतु राजाराम मोहन राय, महात्मा गांधी, जो महती योगदान किया, उसी कारण वर्तमान नारी- में नारी की स्थिति  में सुधार हुआ हैं ! इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी लक्ष्मण रेखाओं को छोड़ अबलापन की भावना से हटकर विकास के पथ पर चढ़ रही है। वह किरण बेदी है, तो साथ ही कल्पना चावला भी है, । जहां-जहां, उसका दिशा बोध डगमगाया है, वहीं उसका पतन भी चरम पर पहुंचा है। पश्चिमी सभ्यता के संक्रमण के कारण जहां नारी-जीवन में विविध बदलाव आये हैं, वहां यौन शुचिता भी संक्रमित हुई है। यथार्थ के नाम पर नग्नता को अपनाया जा रहा है। टी.वी. चैनलों पर प्रसारित धारावाहिकों में नारी को अलग रूप में दिखाया जा रहा हैं जो धीरे-धीरे पूर्ण समाज का सत्य बनता जा रहा है। षड्यंत्रकारी भूमिका में नारी का के पर्दे चित्रण हो रहा है ! जो वास्तविक जीवन में अपने पांव पसार चुका है। निःसंदेह आज नारी को समानाधिकार प्राप्त हैं लेकिन फिर भी वह दहेज की खातिर, जलाई जाती है । कदम-कदम पर तिरस्कृत होती है। शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन हुआ है। नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य और सहजता को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई होती हैं ! मुग़ल काल मैं भारतीय नारी ने अपने सतीत्व के साथ अपने प्राणों की आहुति देने का कार्य किया ! आज़ाद भारत में महिलाओ ने सामाजिक व शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से तरक्की हासिल की ! वर्तमान मैं भी राजनीतिक क्षेत्र में महिला शक्ति का वर्चस्व कायम है ! शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने नारी को नवीन चेतना दी है। पुरुष नियंत्रित समाज में नारी, आज आत्मविश्वास से भरी हुई हैं !। यदि नारी में निर्भीकता और स्पष्टवादिता है, तो वह कहीं पर भी और कभी भी कुंठाग्रस्त नहीं होती। आज हम महिलाओ के विकास की बात करते है ! समाज राजनीति , फिल्म और साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओ को सम्मानित किया जाता है ! धीरे धीरे परिस्थतिया बदल रही है और महिलाएँ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है ! माता पिता अब बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करते है ! महिलाओ को सशक्त करना जरुरी होगा क्युकि महिलाएँ ही देश के विकास में महत्व पूर्ण भागीदारी निभायेगी ! लेकिन आज हम देखते है कि गाँवों में नारी की दशा आज भी बेहद ख़राब है गाँवों में नारी शिक्षा  का प्रचार प्रसार होने के बावजूद अज्ञान की कालिमा नहीं मिटी है ! अशिक्षित महिलाओ को अपने अधिकारों की जानकारी न होना और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना महिला पीड़ा का सबसे बड़ा कारण है! यह सही बात है कि बिना शिक्षा और क़ानूनी जागरूकता के वर्तमान युग मैं महिलाओ को अधिकार और सम्मान मिलना मुश्किल है !! भूमण्डलीकरण, नारियों के लिए एक ऐसी चक्की है, जिसमें उन्हें पीसा जा रहा है। इसका एक चेहरा बेबस, गरीब नारी है, जिसकी आंखों में उसके भूखे बच्चे के प्रति उसकी वेदना समाई हुई है, तो उसका दूसरा चेहरा, उस लड़की का है- जिसका मुंह गुस्से से तमतमाया हुआ है। । नारी का छद्म रूप दिखाकर उन असंख्य नारियों की वेदना नहीं छिपाई जा सकती, जो गांवों में रहती हैं। नारियों का वास्तविक स्वरूप वही है, जो गांवों में अभावों से जूझती और रूढि़यों में जकड़ी नारियों में, दिखाई देता है ! मेने बहुत बार छोटे छोटे गांवो मे देखा है जहा आज भी नारी पर्दे मे रहती है ! पति की मोत के बाद  कोई श्रंगार नही करती घर से बाहर निकलने मे आज भी पाबंधी है ! वेसे अब कम देखने को मिलता है !  नारी में भी नैतिकता का भारतीय परम्परागत भाव तिरोहित हो रहा है। समय और स्थान के अनुसार मान्यताओं में शीर्षासन होता रहा है, लेकिन प्रदर्शन की होड़ में, वर्तमान नारी स्वयं चीरहरण में लगी है। सात्विक रूचि और कलात्मकता, उदारीकरण की बयान में बह गई है। संबंधों के बीच से प्रेम और स्नेह गायब हो रहा है। नारी भी, आत्मकेन्द्रित हो रही है। इसी के अनुरूप बदल रहा है - आधुनिक नारी का-मूल भाव। पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात करते हैं तो हर तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी ! पहनावे जरुर अलग थे लेकिन जमीनी तौर पर पुरे देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की एक कहानी सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ उनका चरित्र और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदार बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का भय अब तक हैं ! इनके ख़ुशी की लालसा भी हैं !शीर्ष पदों पर पहुँचकर महिलाएँ महिला शक्ति का परचम लहरा रही है ! परन्तु आज भी परिवार में महिला अपनी जिम्मेदारियों और घरेलु हिंसा व पाटो के बीच पिसती चली जा रही है महिलाओ के प्रति अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे ! महिलाओ पर होने वाले अत्याचारों में महिलाओ की भी अहम् भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता !! कन्याओ को कोख में मारे जाने में महिलाओ की भूमिका ज्यादा होती है ! महिलाओ पर होने वाले घरेलू अत्याचारों में भी महिलाओ की भूमिका अहम् होती है ! महिलाओ को बराबरी का दर्जा दिलाना है तो खुद महिलाओ को इस दिशा में प्रयास करना होगा और सकारात्मक कदम उठाना होगा ! आज वर्तमान में नारी की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैं ! आज समाज को स्वामी को दयानंद सरस्वती , गोखले , तिलक जैसे महान सुधारको की जरुरत हैं जो समाज मैं जनजागरण ला सके ! समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी ! वर्तमान में समाज को सही दिशा देने वाले नेताओं की कमी खल रही हैं किसी भी समाज में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का निराकरण महिलाओ की साझेदारी के बिना नहीं हो सकता इसलिए समाज में महिलाओ की स्थिति  को मजबूत करना बहुत ज़रुरी है ! महिलाओ के प्रति भेदभाव करने के मामले समाज के लिए नए नहीं है !सालो से चल रहे महिला सशक्तिकरण के अभियानों के बावजूद भी महिलाए उपेक्षा का शिकार हो रही है ! विज्ञापन में नारी-देह का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। नारी का नंगापन, उसकी स्वतंत्रता का सूचक नहीं है। वर्तमान समय में भी समाज में नारी का स्थान कुछ वैसा ही है, जैसा-किसी दुकान, मकान, आभूषण अथवा चल-अचल सम्पत्ति हो। वर्तमान प्रधान समाज को अपनी सामंती सोच एवं संकीर्ण मानसिकता, सड़ी-गली व्यवस्था, रूढि़गत कुप्रथा को नारी-उत्कर्ष हेतु तिलांजलि देनी ही होगी। पुरुषों को इस प्रकार का वातावरण तैयार करना होग, जिससे नारी को एक जीवंत-मानुषी, जन्मदात्री एवं राष्ट्र की सृजनहार समझा जाये, न कि मात्र भोग्य की वस्तु ! दैनिक जीवन में महिलाओ द्वारा कठिनाई झेलने के बावजूद भी चीज़े बेहतर हुई हैं  और एक ऐसी गति भी आई हैं जिसकी उम्मीद दो दशक पहले तक नहीं की जा सकती ! पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात करते हैं तो हर तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी !पहनावे ज़रुर अलग थे लेकिन ज़मीनी तौर पर पूरे देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की एक कहानी सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ ! आज भारत में लड़कियों की तीन तरह की सूरत हैं पहली सूरत गॉंग और कस्बों में जन्मी पली बढ़ी और गुजर बसर करने वाली लड़कियों की ! इनका चेहरा खुली किताब हैं ! दूसरा चेहरा महानगरों की लड़कियों का जिनका आधुनिक होना बहुत सहज हैं उनके मन में परम्पराओं की कोई गाँठ शेष नहीं हैं ! इन लड़कियों ने जन्म से ही उन्मुक्त जीवन जिया हैं उनकी स्वतंत्रता नेसर्गिक हैं ! तीसरी सूरत मध्य वर्ग की उन लड़कियों की जिसकी जड़े अब तक तथा कथित अविकसित इलाक़ो से ही जुड़ीं हैं पर जिंदगी का सफ़र महानगरों तक फैल गया ! बचपन से एसी लड़कियों को पारिवारिक संस्कार दिए जाते हैं उन्हें बताया जाता हैं क्या हैं एक स्त्री का फर्ज !उनका चरित्र और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदार बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का भय अब तक हैं ! सामाजिक/राजनीतिक/शैक्षिक/व्यवसायिक आदि तथा कला एवं साहित्य के क्षेत्र में नारी सम्मानित हुई है। समाजवादी नारी भावना का निरंतर विकास हो रहा है। वास्तव मे नारी पर जो बंधन/सीमा नियंत्रण थे, वह इन सबसे मुक्ति पा रही है। वर्तमान समाज में अर्थ प्रधान संस्कृति का बोलबाला है। विकास के नाम पर नारी स्वच्छंद जीवन व्यतीत कर रही है। नारी-जीवन मूल्यों में आमूल परिवर्तन हुआ है भारत में व्यावसायिक  शिक्षा हासिल करने वाली महिलाएँ दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा हैं !नौकरी करने वाली महिलाएँ भारत देश में ज्यादा हैं आज वर्तमान युग में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं ! शक्ति के बगैर शिव को शव ही माना जायेगा ! कृष्ण की बात करे तो राधा का संग पाकर ही सोलह कलाओ से परिपूर्ण होते हैं ! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे ! मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी होगी एसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा ! हमे कोशिश करनी होगी बेटियों को बचाने की और नारी शक्ति का सम्मान करने की पति-पत्नी के जन्म-जन्मांतर के साथ का, मिथक टूट चुका है। , उसने अपना व्यक्तित्व प्राप्त कर लिया है। पत्नी कथा की पीड़ा और वेदना अब कम हुई है। आज की नारी-मध्यकालीन आदर्शों से भिन्न सामंती सभ्यता से विच्छिन्न हो, अपने जीवन के प्रति सजग होकर जीव नयापन करने को स्वच्छंद है ! आज की नारी कुछ करना चाहती हैं एक नए हिम्मत और होंसले के साथ ! नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य और सहजता को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई होती हैं ! अमीर देशो मैं जो सुधार 100 वर्ष में आया वह निम्न और मध्यम वर्ग वाले देशो में महज 40 वर्ष में आ गया ! भारत में मातृ सत्तामक समुदायों की महिलाओ में स्वछंद और अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले कहकर आलोचना हुई !! आज वर्तमान युग में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं ! इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी वर्जनाओं को तोड अबलापन की भावना को तिलांजलि देकर विकास के सोपान चढ़ रही है। लेकिन शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन हुआ है। महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरुरी हैं ! महिलाएँ चाहे महानगरों की हो या गाँव की निरंतर असुरक्षित होती जा रही हैं ! ओरतो की आज़ादी पर लगाम लगाने वालो पर लगाम लगाना बहुत ज़रुरी हैं ! सच तो यह हैं कि स्त्री से जुड़ीं मान्यता और पुलिस कानून की व्यवस्था ही आज दुष्कर्मी की सबसे बड़ी रक्षक बनी हुई हैं ! महिलाओ पर यौन हिंसा आक्रमण न हो इसके लिए हमे स्वस्थ समाज की पुनर्स्थापना करनी होगी !आज की नारी के चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरिएर के ऊँचे मुकाम हांसिल करना जिसके लिए शायद वो कोई भी समझौता कर सकती हैं शायद अपनी आज़ादी को फिर से दाव लगाकर भी ! खेतिहर और घरेलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला सशक्तिकरण में एक महत्व पूर्ण कदम हैं !  जो समाज स्त्रियों के विकास को उचित नहीं समझता उसे बदल देना बेहतर हैं ! नारी ईश्वरीय वरदान हैं आज समाज में सिर्फ इस तरह की मानसिकता के लोग हैं जो सिर्फ नारी को भोग की वस्तु समझते हैं ! वह दिन कब आएगा जब महिलाओ और लड़कियों के लिए अपनी मर्ज़ी से जीना संभव हो सकेगा ! आज योग्यता और क्षमता होने के बावजूद देश की आधी आबादी उन्नति नहीं कर पा रही हैं ! असुरक्षा की भावना उन्हें न चाहते हुए भी चार दीवारी में कैद कर देती हैं !! पुरुषों को ये बर्दाश्त नहीं होता कि स्त्री अपनी जिंदगी से जुड़ा छोटा सा फैसला खुद ले ! महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरूरी हैं आज के समय में नारी जीवन को अधिक गति मिली है। , नगरों में सुशिक्षित नारी में इसकी गति विधि, अधिक दिखाई देती हैं। , सयुक्त परिवार की प्रथा समाप्त हो रही है। पश्चिम के अनुकरण में आज की नारी-शिक्षा, विज्ञान, विज्ञापन, कला, साहित्य के क्षेत्र मे अपना बहुमूल्य योगदान दे रही है  आज की नारी के चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरियर के ऊँचे मुकाम हासिल करना जिसके लिए शायद वो कोई भी समझौता कर सकती हैंग्लैमर, फैशन, आजादी और आसमान को छूने की चाह तो बढ़ी ही है।!! खेतिहर और घरलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला सशक्तिकरण में एक महत्व पूर्ण कदम हैं ! आज की नारी, अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी जानती है, उसे अपनी सामाजिक सत्ता का पूर्ण भान है। नारी, बदलते परिवेश में पारिवारिक बिखराव, मूल्यहीनता, , दिशाहीन राजनीति का प्रभाव, शोषण से मुक्ति पाने की इच्छा व्यक्त कर रही है, एवं धीरे-धीरे अपने इस प्रयास में सफल भी हो रही है। नारी- की दृढ इच्छा शक्ति के कारण वर्तमान में उसकी अबला नारी की छवि निश्चित ही बदली हैं , नारी-सबल हो रही है, ऊर्जावान बनी है और ये बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ हैं नारी के सम्पूर्ण जीवन में ! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे ! मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी होगी ऐसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा !साथ मे  वर्तमान में स्त्री उत्थान से संबंधित कई चुनौतियां हैं। स्त्री से संबंधित समस्याएं हमारी गहरी आस्था का प्रश्न है, क्योंकि स्त्री माता, बहन, बेटी और पत्नी है। कहा जाता है कि स्त्री कुछ समय के लिए पत्नी और अनंतकाल के लिए माता होती है। लेकिन आज का स्त्री विमर्श एक ऐसा सापेक्ष्य संवेदना का हिस्सा है, जो वास्तविक समस्याओं पर पर्दा डालता है। स्त्री मुक्ति के लिए संविधान ने कानून बनाया है, लेकिन अधिकतर महिलाएं इस कानून का गलत प्रयोग कर रही हैं। दहेज से संबंधित अनगिनत झूठे मामले अदालत में दर्ज हो रहें हैं। महिलाएं ऐसे कानून का सहारा लेकर, परिवार जनों को मुश्किलों में डाल रही हैं, एक तरफ गौरा जैसी महिलाएं समाज के कुचक्र में फंसकर आत्महत्याएं कर रही हैं। जब तक महिलाएं अपने दोगलेपन के प्रति सचेत नहीं होती जब तक स्त्री उत्थान की कल्पना करना व्यर्थ हैं।