रविवार, 27 सितंबर 2015

क्षमावाणी पर्व देता है मधुरता का संदेश

राग-द्वेष मिटाने की सीख देता है क्षमा पर्व -  पर्युषण एक आध्यात्मिक त्योहार है। इस दौरान ऐसा लगता है मानो जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। वैसे तो वर्ष भर में बहुत से त्योहार आते हैं। त्योहार के आगमन के साथ ही मनुष्य के मन में अच्छा पहनने, सजने-धजने और अच्छा दिखने, खाने की लालसा जागृत होने लगती है। लेकिन दिगंबर जैन मतावलंबी  मे  दसलक्षण का  पर्युषण पर्व  ऐसा त्योहार है जिसमें सभी का मन धर्म के प्रति ललचाता दिखाई देता है। किसी का मन उपवास के लिए तो किसी का एकाशन के लिए मचलता है। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मनुष्य को मुक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता। पर्युषण पर्व का पहला दिन ही 'उत्तम क्षमा' भाव का दिन होता है। धर्म के दस लक्षणों में 'उत्तम क्षमा' की शक्ति अतुल्य है। क्षमा भाव आत्मा का धर्म कहलाता है। यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष का नहीं होता, बल्कि समूचे प्राणी जगत का होता है। जैन धर्म में पयुर्षण पर्व के दौरान दसलक्षण धर्म का महत्व बतलाया गया है। वे दस धर्म क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आंकिचन और ब्रह्मचर्य बतलाए गए हैं। यह वही धर्म के दस लक्षण हैं, जो पर्युषण पर्व के रूप में आकर, सभी जैन समुदाय और उनके साथ-साथ संपूर्ण प्राणी-जगत को सुख-शांति का संदेश देते हैं।जब भी कभी आप क्रोधित हो तब आप मुस्कुराहट को अपना कर क्षमा भाव अपना सकते हैं, इससे आपके दो फायदे हो जाएंगे, एक तो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी, जिससे उसी समय आपके मन का सारा क्रोध नष्ट होकर मन में क्षमा का भाव आ जाएगा और दूसरा आपकी निश्छल मुस्कुराहट सामने वाले व्यक्ति के क्रोध को भी समाप्त कर देगी, जिससे निश्चित ही उनका भी ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा। क्षमा एक ऐसा भाव है, जो हमें बैर-भाव, पाप-अभिमान से दूर रखकर मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है।  सनातन, जैन, इस्लाम, सिख, ईसाई, सभी धर्म एक ही बात बताते हैं कि एक दिन सभी को मिटना है अत: परस्पर मिठास बनाए रखें। मिट जाना ही संसार का नियम है। तो फिर हम क्यों अपने मन में राग-द्वेष, कषाय को धारण करें। अत: हमें भी चाहिए कि हम सभी i कषायों का त्याग करके अपने मन को निर्मल बनाकर सभी छोटे-बड़ों के लिए अपने मन में क्षमा भाव रखें। जैन पुराण कहते है कि जहां क्षमा होती है वहां क्रोध, मान, माया, लोभ आदि सभी कषाय अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं। जीवन में जब भ‍ी कोई छोटी-बड़ी परेशानी आती है तब व्यक्ति अपने मूल स्वभाव को छोड़कर पतन के रास्ते पर चल पड़ता है। जो कि सही नहीं है, हर व्यक्ति को अपना आत्म‍चिंतन करने के पश्चात सत्य रास्ता ही अपनाना चाहिए। हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा है। जिसके जीवन में क्षमा आ जाती है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। 
क्षमा भाव के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि - 'क्षमा वीरस्य भूषणं।' 
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अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण होता है। अत: आप भी इस क्षमा पर्व सभी को अपने दिल से माफी देकर भगवान महावीर के रास्ते पर चलें।  आज क्षमावाणी पर आप सभी से उत्तम क्षमा  

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