शनिवार, 26 सितंबर 2015

जीवन जीना भी एक कला है

जीवन जीना भी एक कला है अगर हम इस जीवन को किसी कलात्मक रूप से  जिए तो बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है ! वर्तमान में जब चारों ओर अशांति और बेचैनी का माहौल नजर आता है । ऐसे में हर कोई शांति से जीवन जीने की कला सीखना चाहता है ।      जीवन अमूल्य है ! जीवन एक यात्रा है ! जीवन एक निरंतर कोशिश है ! इसे सफलता पूर्वक जीना भी एक कला है ! जीवन एक अनंत धडकन है ! जीवन बस एक जीवन है ! एक पाने-खोने-पाने के मायाजाल में जीने और उसमे से निकलने की बदिश है ! इसे किस तरह जिया जावे कि एक सुखद, शांत, सद्भावना पूर्ण जीवन जीते हुये, समय की रेत पर हम अपने अमिट पदचिन्ह छोड़ सकें ? यह सतत अन्वेषण का रोचक विषय रहा है ।   अक्‍सर देखने में आता है कि सुबह से लेकर शाम तक बल्कि देर रात तक हमारे मित्र अनर्गल वार्तालाप, अनर्गल सोच विचार, करते रहते है, ऑफिस में सहकर्मियों से, दोस्तों से, बाजार में दुकानदार, घर में परिवार के सदस्यों से मनभेद करते है क्यों ? क्‍या आपने कभी यह सोचा है कि - जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्या आपको पता है की आपका जन्म किस लिए हुआ है ? क्या है यह जीवन ? इस तरह के प्रश्न बहुत कीमती हैं । जब इस तरह के प्रश्न मन में जाग उठते हैं तभी सही मायने में जीवन शुरू होता है । ये प्रश्न आपकी जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं । ये प्रश्न वे साधन हैं जिनसे आपके अंत:करण में और गहरी डुबकी लगा सकते हो और जवाब तुम्हारे अंदर अपने आप उभर आएंगे । जब एक बार ये प्रश्न आपके जीवन में उठने लगते हैं, तब आप सही मायने में जीवन जीने लग जाते है ........
      अगर आप जानना चाहते हो कि इस धरती पर आप किसलिए आए हो तो पहले यह पता लगाओ कि यहां किसलिए नहीं आए हो । आप यहां शिकायत करने नहीं आए हो, अपने दुखड़े रोने नहीं आए हो या किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं आए हो । ना ही आप नफ़रत करने के लिए आए हो । ये बातें आपको जीवन में हर हाल में खुश रहना सिखाती हैं । उत्साह जीवन का स्वभाव है । दूसरों की प्रशंसा करने का और उनके उत्साह को प्रोत्साहन देने का मौका कभी मत छोड़ो । इससे जीवन रसीला हो जाता है । जो कुछ आप पकड़ कर बैठे हो उसे जब छोड़ देते हो, और स्वकेंद्र में स्थित शांत हो कर बैठ जाते हो तो समझ लो आप के जीवन में जो भी आनंद आता है, वह अंदर की गहराइयों से आएगा । सभी सुख एवं शांति चाहते हैं, क्यों कि हमारे जीवन में सही सुख एवं शांति नहीं है। हम सभी समय समय पर द्वेष,  क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। और जब हम दुखी होते हैं तब यह दुख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है, और उसके संपर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच, यह जीवन जीने का उचित तरिका नहीं है। हमें चाहिए कि हम भी शांतिपूर्वक जीवन जीएं और औरों के लिए भी शांति का ही निर्माण करें। आखिर हम सामाजिक प्राणि हैं, हमें समाज में रहना पडता हैं और समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ पारस्पारिक संबंध रखना है। ऐसी स्थिति में हम शांतिपूर्वक जीवन कैसे जी सकते हैं? कैसे हम अपने भीतर सुख एवं शांति का जीवन जीएं, और कैसे हमारे आसपास भी शांति एवं सौमनस्यता का वातावरण बनाए, ताकि समाज के अन्य लोग भी सुख एवं शांति का जीवन जी सके? भारत एवं भारत के बाहर भी कई ऐसे संत पुरुष हुए जिन्होंने इस समस्या के, मानवी जीवन के दुख की समस्या के, समाधान की खोज की। उन्होंने उपाय बताया- जब कोई अनचाही के होने पर मन में क्रोध, भय अथवा कोई अन्य विकार की प्रतिक्रिया आरंभ हो तो जितना जल्द हो सके उतना जल्द अपने मन को किसी और काम में लगा दो। उदाहरण के तौर पर, उठो, एक गिलास पानी लो और पानी पीना शुरू कर दोआपका गुस्सा बढेगा नहीं, कम हो जायेगा। अथवा गिनती गिननी शुरू कर दोएक, दो, तीन, चार। अथवा कोई शब्द या मंत्र या जप या जिसके प्रति तुम्हारे मन में श्रद्धा है ऐसे किसी देवता का या संत पुरुष का नाम जपना शुरू कर दो। मन किसी और काम में लग जाएगा और कुछ हद तक तुम विकारों से, क्रोध से मुक्त हो जाओगे।



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