वर्तमान की शिक्षा प्रणाली - मेरा दर्द
देश को बदलना है तो शिक्षा का प्रारूप बदलो
आज एक पुस्तक पर मेरी नजर पड़ी जिसमे लिखा था --जिस शिक्षा से हम अपने जीवन का निर्माण कर सके , मनुष्य बन सके , चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है ... स्वामी विवेकानन्द की यह पंक्तिया आज मेने एक जब पढ़ी कुछ दिनों पूर्व की शिक्षा से जुडा मेरा मानसिक तनाव कहू या या मेरी शिक्षा की वर्तमान प्रणाली पर मेरा चिंतनीय विषय ने मुझे लिखने को मजबूर कर दिया ! क्यों की चंद दिनों पूर्व ही मेरा पुत्र 12 वि में वाणिज्य संकाय में गुजरात बोर्ड में अपेक्षितअंको/ प्रतिशत से कम 51 प्रतिशत ही प्राप्त कर पाया ! मे व् मेरे पुत्र को मानसिक तनाव तो परिणाम आने के बाद बढ़ ही गया था क्यों की मेरा पुत्र B.B.A में दाखला लेना चाहता था मगर परिणाम के प्रतिशत को देखते हुए वीर नर्मद यूनिवर्सिटी से पहले व् दुसरे चक्र में उसका नाम किसी महाविद्यालय में नामित नही हुआ ! वर्तमान में आज के हताश विद्यार्थी के आत्महत्या के किस्से सुन में डर के मारे अपने पुत्र को प्रतिदिन होंसला देता रहता था चिंता न करो दाखला हो जायेगा ! पुत्र को चिंतित देख में खुद मानसिक तनाव में था ! खुद पहुच गया स्वयं निर्भर(सेल्फ फायनेंस ) महाविद्यालय में जहा दूसरी यूनिवर्सिटी से M.M.A नामक कोई कोर्स जिसे 5 वर्ष में पूर्ण करने पर B.B.A व् M.B.A की ऐसी ही कुछ डिग्री मिलेगी ! मरता क्या न करता दाखला लेने को तेयार हुआ और मुझे बताया गया 1 लाख डोनेशन प्रवेश के लिए व् प्रति सेमेस्टर (छह माह ) फीस ३१५०० /- भुगतान करना पड़ेगा ! मुझ जेसे साधारण व्यक्ति के सामने आँखों के आघे अँधेरा छा गया ! मुह लटकाकर बिना कुछ बोले जेहन में एक दर्द लेकर बाहर निकला ! अब मानस पटल पर मेरे विचार शिक्षा पर आये प्रेषित ----
शिक्षा का व्यवसायीकरण या बाजारीकरण आज देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं !
किसी भी समस्या का समाधान चाहते है तो उसकी जड़ में जाने की आवश्यकता होती है। शिक्षा में वर्तमान का व्यवसायीकरण का कारण क्या है? उसका समाधान क्या हो? कुछ लोग ऐसा भी तर्क देते है कि शिक्षा का विस्तार करना है या सर्वसुलभ कराना है तो मात्र सरकार के द्वारा संभव नहीं है, निजीकरण आवश्यक है और जो व्यक्ति शिक्षा संस्थान में पैसा लगायेगा वह बिना मुनाफे क्यों विद्यालय,महाविद्यालय खोलेगा?यह तर्क भी बिल्कुल सही है कुछ लोग इससे भी आगे बढ़कर कहते है कि देश की शिक्षा का विस्तार एवं विकास करने हेतु विदेशी शैक्षिक संस्थाओं के लिए द्वारा खोलने चाहिए। वैश्वीकरण के युग में इसको रोका नहीं जा सकता आदि प्रकार के विभिन्न तर्क दिये जा रहे है। यह सारे तर्क तथाकथित सभ्रांत वर्ग के द्वारा ही दिये जाते है। अगर मुख्य मुद्दे पर नजर डाली जाये तो पूर्व में शैक्षिक संस्थाए या तो सीधे तोर पर सरकार चलाती थी या सरकार के अनुदान से संस्थाएं चलती थी। विद्यार्थियों का निष्चित शुल्क शिक्षकों का निष्चित वेतन एवं संस्था चलाने हेतु अनुदान जैसी व्यवस्थाए बनी।
कुछ समय के बाद सरकारी शैक्षिक संस्थाओं के स्तर में लगातार गिरावट आती गई। इस कारण से निजी विद्यालयों का आकर्षण बढ़ा शुरू में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में वस्तुओं के रूप में दान लेना शुरू हुआ। आगे जाकर छात्र से बड़ी मात्रा में दान लेना, शिक्षकों की निुयक्ति में पैसा लेना और कम वेतन देना शुरू हुआ। विद्यालयों में शिक्षा के स्तर गिरने से ट्यूशन प्रथा प्रारम्भ हुई। क्रमशः शिक्षा का स्वरूप धन्धे जैसा बनने लगा।यह सब कार्य शासन-प्रशाासन एवं शिक्षा माफियाओं की मिलीभगत से होने लगे। जिसका आज इस प्रकार विभत्स स्वरूप बन गया कि शिक्षा यह सब्जी मंडी का बाजार जैसे हो गई है । आज अराजकता का माहौल है। शुल्क न भर सकने के कारण छात्र आत्महत्याएं कर रहे है। अभिभावक इस हेतु गलत कार्य करने को मजबूर है। एक प्रकार से व्यवसायिक उच्च-शिक्षा उच्च मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग को छोड़कर अन्य किसी भी वर्ग के बस की बात नही रही। प्रष्न उठता है इस प्रकार के लगभग 20 प्रतिशत वर्ग को छोड़कर 80 प्रतिशत वर्ग के बच्चे प्रतिभावन नहीं है क्या? इससे देश की प्रतिभाएं भी कुठित हो रही है। इन सारी परिस्थितियों के कारण वर्तमान में शिक्षा का मात्र बजारीकरण नहीं हुआ है। एक प्रकार से अतिभ्रष्ट व्यापार हो गया है। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र किस प्रकार के निर्माण होगे? और इस प्रकार के छात्र देश के विभिन्न क्षेत्रों का नेतृत्व करेंगे तब देश का चरित्र कैसा बनेगा? यह बड़ा प्रश्न है। देश में भ्रष्टाचार, अनाचार, चरित्र-हीनता बढ़ रही है उसकी चिंता करने से कुछ परिणाम नहीं होगा। जब तक शिक्षा का बाजारीकरण नहीं रूकेगा तब तक बाकी सारी गलत बातें बढ़ना स्वाभाविक है। देश की सभी समस्याओं की जड़ वर्तमान शिक्षा है। इसके लिए कुछ मेरे समाधान हेतु सुझाव की शिक्षा प्रणाली केसी हो -शिक्षा के व्यापारीकरण, बाजारीकरण को रोकने हेतु केन्द्र सरकार कानून बनाये।
1. शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगे।
2 .विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत के शैक्षिक संस्थानों से भी कड़े कानून हो। उनका प्रत्ययायन एवं मूल्यांकन उस देश में तथा भारत में भी हो ।
अपने देश की विशेषकरके सरकारी शैक्षिक संस्थानों की गुणवत्ता सुधार हेतु ठोस योजना बनें।
३. उच्च शिक्षा विशेषकरके व्यवसायी उच्च शिक्षा को मात्र निजी भरोसे पर न छोड़ा जाए। सरकार के द्वारा भी नये शैक्षिक संस्थान शुरू करने की योजना बनें।
शिक्षा की भारतीय संकल्पना को पुनः स्थापित करने हेतु प्रयास किये जाएं।
शिक्षा मात्र सरकार का दायित्व न होकर समाज भी अपने दायित्व का निर्वाह करें।..... सुझाव तो बहुत है मगर सिर्फ ३ सुझाव पर भी ध्यान दे दिया जाये तो शिक्षा जगत में काफी परिवर्तन हो सकता है
उत्तम जैन (विद्रोही )
मो- ८४६०७८३४०१
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