शनिवार, 9 जुलाई 2016

जैन धर्म और अहिंसा

   
                              जैन धर्म ओर अहिंसा
हमारे भारत देश में अनेक धर्म प्रचलन में है लेकिन सब में, सब से अलग अहिंसा और सत्य पर आधारित जैन धर्म प्राचीन धर्मो में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्युकी इस धर्म के जरिये देश दुनिया में एक सन्देश जाता है और इस धर्म के मूल आधार पञ्च महाव्रत के नियमो का कोई विरोद्ध भी नहीं कर सकता !

यह पंचमहाव्रत-
1: अहिंसा: जैन धर्म में अहिंसा संबंधी सिद्धान्त प्रमुख है। मन, वचन तथा कर्म से किसी के प्रति असंयत व्यवहार हिंसा है। पृथ्वी के समस्त जीवों के प्रति दया का व्यवहार अहिंसा है। इस सिद्धांत के आधार पर ही जियो और जीने दो का सिद्धांत परिकल्पित हुवा है |
2: सत्य: जीवन में कभी भी असत्य नहीं बोलना चाहिए। क्रोध व मोह जागृत होने पर मौन रहना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार भय अथवा हास्य-विनोद में भी असत्य नहीं बोलना चाहिए।
3: अस्तेय: चोरी नहीं करनी चाहिए और न ही बिना अनुमति के किसी की कोई वस्तु ग्रहण करनी चाहिए।
4: अपरिग्रह: किसी प्रकार के संग्रह की प्रवृत्ति वर्जित है। संग्रह करने से आसक्ति की भावना बढ़ती है। इसलिए मनुष्य को संग्रह का मोह छोड़ देना चाहिए।
5: ब्रह्मचर्य: इसका अर्थ है इन्द्रियों को वश में रखना। ब्रह्मचर्य का पालन संतो के लिए अनिवार्य माना गया है। क्युकी ये मानवता के लिए उनके मूल स्वरुप को सात्विक बनाये रखने के लिए एक मजबूत आधार है!
जैन धर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है। सृष्टि अनादि काल से विद्यमान है। संसार के सभी प्राणी अपने-अपने संचित कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं। कर्म फल ही जन्म-मृत्यु का कारण है। कर्म फल से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर हो सकता है। जैन धर्म में संसार दुखमूलक माना गया है। दु:ख से छुटकारा पाने के लिए संसार का त्याग आवश्यक है। कर्म फल से छुटकारा पाने के लिए त्रिरत्न का अनुशीलन आवश्यक बताया गया है। त्रिरत्न: सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन व सम्यक आचरण जैन धर्म के त्रिरत्न हैं। सम्यक ज्ञान का अर्थ है शंका विहीन सच्चा व पूर्ण ज्ञान। सम्यक दर्शन का अर्थ है सत् तथा तीर्थंकरों में विश्वास। सांसारिक विषयों से उत्पन्न सुख-दु:ख के प्रति समभाव सम्यक आचरण है। जैन धर्म के अनुसार त्रिरत्नों का पालन करके व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। त्रिरत्नों के पालनार्थ आचरण की पवित्रता पर विशेष बल दिया गया है। जैन धर्म अनादिकाल से अहिंसा का समर्थक रहा है अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन मे किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है| जैन धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है। अहिंसा परमो धर्म: - अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिये जो आन्दोलन चलाया वह काफी सीमा तक अहिंसात्मक था। जब कभी ' अहिंसा ' पर चर्चा होती है , भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और महात्मा गांधी को याद किया जाता है। अक्सर देखा गया है कि धर्म प्रवर्तक उपदेश तो देते हैं , लेकिन खुद वे उन पर चल नहीं पाते। यह बात महावीर , बुद्ध व गांधी पर लागू नहीं होती। इन तीनों ही युग पुरुषों ने अहिंसा के महत्व को समझा , उसकी राह पर चले और इसके अनुभवों के आधार पर दूसरों को भी इस राह पर चलने को कहा। अहिंसा की पहचान उनके लिए सत्य के साक्षात्कार के समान थी। अपने युग में यज्ञों में होने वाली हिंसा से महावीर के मन को गहरी चोट पहुंची , इसलिए उन्होंने अहिंसा का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसके प्रचार के लिए उन्होंने श्रमणों का संघ तैयार किया , जिन्होंने मनुष्य जीवन में अहिंसा के महत्व को बताया। सामान्यत: अहिंसा का अर्थ किसी प्राणी की मन , वचन व कर्म से हिंसा न करना होता है। आदमी में अनेक बुराइयां पाई जाती हैं , जिनकी गिनती करना असंभव है। इन बुराइयों की जड़ में मुख्य पांच दोष मिलेंगे। बाकी सभी दोष इन्हीं से पैदा होते हैं। ये दोष हैं चोरी , झूठ , व्यभिचार , नशाखोरी व परिग्रह यानी धन इकट्ठा करना। इन्हीं बुराइयों के कारण मनुष्य न जाने और किन-किन बुराइयों में लगा रहता है। हिंसा इनमें सबसे बड़ी बुराई है। हिंसा , अहिंसा की विरोधी है। इसका अर्थ सिर्फ किसी प्राणी की हत्या या उसे शारीरिक चोट पहुँचाना ही नहीं होता। महावीर ने इसका व्यापक अर्थ किया कि यदि कोई आदमी अपने मन में किसी के प्रति बुरी भावना रखता है , बुरे व कटु वचन बोलता है , तो वह भी हिंसा ही करता है। सभी प्राणी जीना चाहते हैं , अहिंसा उनको अमरता देती है। अहिंसा जगत को रास्ता दिखाने वाला दीपक है। यह सभी प्राणियों के लिए मंगलमय है। अहिंसा माता के समान सभी प्राणियों का संरक्षण करने वाली , पाप नाशक व जीवन दायिनी है। अहिंसा अमृत है। इस प्रकार महावीर ने अहिंसा की व्याख्या की।
उत्तम जैन विद्रोही
uttamvidrohi121@gmail.com
मो -8460783401

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