मां का दूध हो जाता है जहर
आयुर्वेद में बहुत ही स्पष्ट निर्देश हैं कि मां जब क्रोध में हो, अपने बच्चों को दूध न पिलाए। कभी-कभी क्रोध की तीव्रता इतनी भयानक हो सकती है कि उस समय दुग्ध-पान कराने से बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। मां का अमृत समान दूध भी क्रोध के समय जहर हो जाता है। माण्डल भीलवाडा के मेरे आदरणीय मित्र ताराशंकर जी के पिता स्व.श्री लाभशंकर जी जोशी आयुर्वेद के अच्छे विद्वान थे। एक बार अपने मित्र के साथ चित्तौडगढ प्रवास के दौरान एक रिश्तेदार के यहां भोजन पर गए। भोजन बहुत ही अच्छा बना था,लेकिन मित्र ने दो ग्रास ही खाए कि उन्हें उबाके आने लगे और उल्टी हो गई। मित्र ने मेजबान को पूछा आपके यहां भोजन कौन बना रहा है। मेजबान ने बताया कि हमारी बहू खाना बना रही है। मित्र ने कहा कि जरूर आपकी बहू का चित्त शान्त नहीं है,हो सकता है कि सास-बहू में कुछ कहासुनी हुई हो। मेजबान को यह बात नागंवार लगी और वह तुरन्त रसोईघर में गए, देखा बहू खाना तो बना रही है, लेकिन रोते हुए। मेजबान हक्के-बक्के रह गए। भोजन बनाने में और खिलाने में मातृत्व भाव,करुणा, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य और उदारता,प्रसन्नता का भाव रहना चाहिए। बोझ या मजबूरी मानकर कभी किसी को भोजन पर आमंत्रित मत करिए। मन में क्लेश के रहते भोजन न पकाएं। आप जो भोजन कर रहे हैं, उसके लिए आपने किस प्रकार धनार्जन किया है, इसका भी उस भोजन और भोजन ग्रहण करने वाले पर गहरा असर होता है।