भारत
धर्म निरपेक्ष देश है ! भारत में धर्म का क्या स्थान है यह
पूरी दुनिया को पता है। शायद ही दुनिया के किसी अन्य राष्ट्र में इतने धर्मों और
पंथ के अनुयायी होंगे। इनमे एक
प्राचीन धर्म है जैन ! राजस्थान उच्च न्यायालय के एक फैसले से एक नया
विवाद उत्पन्न हुआ है। अदालत ने जैन धर्म में जारी संथारा या संलेखना को आत्महत्या और उसके लिए
उकसाने के समान अपराध माना है। संथारा के अंतर्गत अन्न त्यागकर धीरे-धीरे मृत्यु
का वरण किया जाता जाते हैं। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा संथारा या संलेखना के
तहत देह त्यागना धारा 309 के
तहत आत्महत्या माना जाएगा। वहीं इस कृत्य में किसी भी तरह के सहयोग को धारा 306 के अनुसार अपराध माना जाएगा। संथारा
नामक यह परंपरा हजारों वर्ष पुरानी मानी जाती है। इस कारण जैन धर्मावलम्बियों का
विरोध स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। वे इसे आत्महत्या से अलग मानते हैं। जैन संतों के
अनुसार आत्महत्या तनाव या कुंठा में की जाती है, जबकि संथारा आस्था का विषय है। उनके
द्वारा इस मामले को उच्चतम न्यायालय में ले जाने की घोषणा भी की जा चुकी है।इस
फैसले के बाद इस पर बड़ी बहस शुरू हो चुकी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आत्महत्या
को लेकर देश में पहले से बहस चल रही है कि इसे अपराध माना जाए या नहीं। वर्तमान
सरकार के नुमाइंदों ने इसे अपराध के दायरे से बाहर रखने की वकालत भी की र्थी। इसके
पक्ष में तर्क यह दिए जाते हैं कि पीड़ित व्यक्ति किसी न किसी हताशा में आत्महत्या
जैसा कदम उठाता है, हम उसे
अपराधी घोषित कर उसके सिर पर एक नई हताशा लाद देते हैं। तो क्या संथारा को एक
प्रकार से इच्छामृत्यु मान सकते हैं। जब कोई व्यक्ति ऐसे रोग से पीडित हो जिसका
चिकित्सा जगत में कोई उपचार संभव ना हो या डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हों तो उसे
जीवित रखने के प्रयासों को बंद करने को क्या माना जाना चाहिए ? समाज में इस तरह के मामले सामने आते
रहे हैं, जिनमें
जीवन से लाचार लोग इच्छामृत्यु मांगते हैं। तो क्या इसे कानूनी मान्यता मिलनी
चाहिए! दुनिया के किसी भी देश में अभी तक तो शायद ऐसा कानून नहीं है। ऐसे दुर्लभ
उदाहरण मिल सकते हैं, जब अदालत
ने जीवन की अप्रतिम पीड़ा झेल रहे व्यक्ति को इच्छामृत्यु की इजाजत दी हो। लेकिन
दुविधा यह है कि कानून के दुरुपयोग के रास्ते भी बहुत जल्द खुलने लगते हैं। किसी भी
मामले को दुर्लभ या विरल मानने की परिभाषा भी तय करनी होगी। इसके लिए एक नई
प्रक्रिया ही तय करनी होगी। यानी यह बहुत लंबी बहस का मुद्दा है। फिलहाल तो संथारा
या इससे मिलती जुलती सामाजिक मान्यताओं पर विचार का समय है। हर समाज को इस पर
विचार करना होगा। जैन धर्म के प्राचीन आगम व शास्त्रो
पर अगर नजर डाली जाए तो उसमे संथारा , संलेखना का उल्लेख मिलता है ! कानून
निर्माण
के पूर्व के हजारो वर्ष प्राचीन
शास्त्र जिनमे किए उल्लेख को जैन धर्म अस्वीकार
नही कर सकता ! यह एक आस्था का विषय
है ! जल्दी ही कानून बनाकर इसे मान्यता प्रदान
करनी चाहिए !..... उत्तम जैन विद्रोही
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