शनिवार, 27 सितंबर 2014

सास बहु और मतभेद

सास बहु हर एक परिवार में एक अहम् जिमेदारी के साथ परिवार का महत्वपूर्ण रिश्ता है । जंहा बहु शादी करके घर में आती है । कुछ वर्षो तक बहु के रूप में रहकर एक सास के रूप में दायित्व निभाती है । यह तो एक परम्परा है जो प्राचीनकाल से चली आरही है । यह एक रिश्ता अगर सोचा जाये तो बहुत महत्वपूर्ण आपसी समझ. एक दुसरे को सन्मान , विचारधारा को समझने वाला , सामंजस्य  से परिवार का सञ्चालन करने  वाला होता है । क्यों की मुख्य रूप से सास व् बहु में  तक़रीबन 20 से 25 वर्ष का उम्र का फर्क होता है । स्वाभाविक रूप से विचारधारा में काफी फर्क होता है । जहा सास अपने पूर्व के अनुभव के आधार पर परिवार को संचालित करना चाहती है । वही बहु आधुनिकता के साथ घर को संचालित करना चाहती है । फलस्वरूप बात वाद विवाद को जन्म देती है । अनबन झगडे क्लेश शुरू हो जाते है । वेसे कोई बड़ा मुद्दा नही होता पर आपसी समझ की जरुरत होती है । बहु का कर्तव्य होता है की सास की भावनाओ की कद्र करे । क्यों की ससुराल में सास ही माँ के रूप में मिली है । एक आदर्श बहु अगर एक आदर्श पुत्री के रूप में घर में सन्मान पाना चाहती है तो उसे सबसे पहले सास का दिल जितना होगा । अगर सास का दिल जीत लिया तो उसको पीहर से ज्यादा प्यार मिल सकता है । तब वह अपने पति का प्यार को तो स्वत प्राप्त कर लेगी । घर में देवर जेठ छोटे बड़े सब की जिमेदारी एक बहु पर ज्यादा होती है । अगर इस अग्नि परीक्षा में बहु सफल हो जाती है तो निसंदेह घर स्वर्ग हो जाता है । अपने अधिकारों के साथ कर्तव्य का निर्वाह करना बहु की नेतिक जिमेदारी है । पर ज्यादा शिक्षित व् अपने माँ पिता का प्यार पाई हुई बेटी जब ससुराल आती है तो हर घर का माहोल विचारधारा रस्मे रीतिरिवाज के कुछ परिवर्तन जो स्वाभाविक रूप से होता है । बहु का फर्ज है अपने पीहर की तरह न अपनाकर ससुराल के अनुसार चले । और कुछ परिवर्तन करना भी चाहे तो सास के दिल पर विजय प्राप्त करके उसे  परिवर्तन करने की कोशिश करे । तो शायद एक बहु आदर्श बहु के रूप में स्थान पा सकती है । बहुत जगह बहु को अपने माता पिता व् भाई  की सह मिलती है । जिससे बहु का भविष्य कभी सुन्दर नही हो सकता है । उस जगह अगर मिलता है तो सिर्फ दुःख ।।
हर एक माँ का पुत्र यही चाहता है की उसकी पत्नी माँ व् पिता का सन्मान करे । अगर पत्नी सास व् ससुर का सन्मान नही करेगी तो पति का अपेक्षित प्यार कभी नही पा सकती भले एक सांसारिक रिश्ते व् अपनी मज़बूरी में पत्नी का साथ दे । और साथ में सास को भी चाहिए बहु से उसी तरह वर्ताव करे जेसा अपनी बेटी के साथ चाहती है । बहु की भावनाओ को समझे उसकी नादानी उम्र को देख कर उसे बेटी से ज्यादा प्यार करे । जिससे बहु एक आदर्श बहु
के रूप में जिमेदारी का निर्वहन कर सके । सास को चाहिय की बहु के साथ वो वर्ताव न करे जो वर्ताव उनकी सास ने उनके साथ किया । समय के साथ परिवर्तन बहुत जरुरी है । समय में आये बदलाव के साथ सास को चलना चाहिए । जिससे उनके द्वारा सींचे घर को बहु आगे बढ़ा सके । परिवार व् समाज में पूर्वजो का नाम रोशन कर सके ।।
उत्तम जैन ( विद्रोही )

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

पल का उपयोग

हम जब भी बाजार से कोई खाने पिने या दवा खरीदते है उस पर लिखी उत्त्पाद तिथी व् अवसान तिथी पहले देखते है !क्युकी हम पहले से अधिक जागरूक हो गए है ! साथ में हम यह भी देखते है की इस वस्तु में कोई हानिकारक तत्व तो मौजूद नही ! 
इसी  प्रकार से हम सभी के जीवनों पर प्रयोग हो सकने वाली तिथि लिखी हुई है - बस हम में से कोई उस तिथि को जानता नहीं है; हमें पता नहीं है कि हमारा हृदय किस तिथि तक ही कार्य करेगा और फिर सदा के लिए बैठ जाएगा, या हमारी अन्तिम श्वास किस पल ली जाएगी और फिर किस रीति से सदा के लिए थम जाएगी। जब यह सत्य सभी के जीवनों के लिए अवश्यंभावी है, तो क्या हम सब को उन पलों का जो हमें दिए गए हैं, मन  लगा कर सदुपयोग नहीं करना चाहिए? पलों के उपयोग से मेरा तात्पर्य है हम और गहराई तथा अर्थपूर्ण रीति से सच्चा प्रेम दिखाएं, औरों को क्षमा करने में तत्पर रहें, दूसरों की सुनने वाले बनें, खराई किंतु मृदुभाव से बोलने वाले बनें, इत्यादि।
क्योंकि हम में से कोई भी अपने उपयोगी रहने की अन्तिम तिथि नहीं जानता, इसलिए प्रत्येक पल को बहुमूल्य जानकर, हर पल का उपयोग त्याग ,संयम, साधना , सतकर्म , प्रेम से   प्रसार कर  संसार को और अधिक उज्जवल तथा सुन्दर बनाने के लिए करने वाले बन जाएं।**उत्तम जैन (विद्रोही )

मेरा बचपन मेरा गाव

मेरा बचपन मेरा गाँव शीर्षक एक बचपन की याद दिलाता है । बचपन से  छप्पन में आते आते जिन्दगी की दिनचर्या में कितना बदलाव आ जाता है । समय के साथ जन्मभूमि से कर्मभूमि तक के सफ़र में इंसान थपेड़े खाते खाते जन्मभूमि व् अपनों से दूर निकल जाता है । दादा दादी बड़े बुजुर्गो से इन्सान दूर सिर्फ अर्थ के पीछे भागता है । शारीरिक सुख मानसिक सुख अपनत्व को भूल दिन रात भागता रहता है । शहरो में व्यस्त पडोशी से  अनभिज्ञ तो रहता ही है वरन अपने परिवार को भी समय नही दे पाता है । फलस्वरूप सिर्फ प्राप्त करता है तो अर्थ । मानसिक तनाव में जीवन गुजारते हुए असाध्य बीमारी से ग्रसित होकर परिवार के लिए एक पारिवारिक  डॉक्टर से जरुर निकटता बना कर रखता है । शहरो के प्रदुषण से वास्ता रोगी बना देता है । कहा वो गाँव की खुली हवा प्रदुषण मुक्त जीवन पर वक़्त के साथ चलना इन्सान की मज़बूरी का बहाना । मेने बहुत परिवार को देखा जिनके पास न बच्चो न पत्नी न माँ व् पिता के लिए समय है । क्या यही मानव जीवन का लक्ष्य है । अगर नही तो क्यों बद से बदतर जिन्दगी जीता है । साथ में परिवार को भी जीने को मजबूर करता है । में शहर में रहने के खिलाफ नही हु पर चेन की जिन्दगी जीने की सलाह तो दे सकता हु । वर्तमान को देखते हुए गाव में रह कर समाज में अपना अस्तित्व नही बना सकता यह एक कटु सत्य है । इसके अनेक कारण है ।समाज में फेली  कुप्रथा सबसे बड़ी  जिमेदार है । व्यक्ति दोड़ में पीछे नही रहना चाहता । शादी विवाह में फिजूल खर्ची , दिखावा, एशो आराम के साधन , समाज में दिए जाने वाले बड़े बड़े चंदे की राशि जिससे खुद का नाम रोशन कर सके । भले पिछली पीढ़ी  अर्थ कमाने के लिए संस्कार विहीन हो रही हो । दोस्तों मेरा मकसद समाज में बगावत करना नही पर समय रहते परिवर्तन की अपेक्षा है । समाज एक परिवार का हिस्सा है अब समय है परिवर्तन होना चाहिए । दहेज़ प्रथा , दिखावा , अपव्यय , बहुत सी कुरतिया है जिसे आज की युवा पीढ़ी को आगे आकर अंकुश लगाना होगा । पूर्वजो के पथ से कुछ हटना होगा । उनके अच्छे  संस्कार ग्रहण करे व् कुरतियो से बगावत करनी होगी तभी एक स्वस्थ समाज की सरचना होगी आगे की भावी पीढ़ी शहरो की तरफ न भाग कर गाँव में रहने में शुकून का अनुभव करेगी । चाहे कंही भी रहे पर एक परिवार को समय देना अपना कर्तव्य समझेगी । और एक  स्वस्थ समाज एक स्वस्थ परिवार में जी सकेगा ... उत्तम जैन ( विद्रोही )

देहली में शेर ने मानव का शिकार किया

पिछले 2 दिनों से मिडिया टीवी ,पेपर  ,  व्हाट्स अप , फेसबुक ,ट्विटर और न जाने किस पर यह खबर सुर्खियों में रही । बहुत बुरी घटना थी । मुझे भी बड़ा दर्द हुआ। जब शेर ने मानव का भक्षण किया । स्वाभाविक है सभी लोग वीडियो देख कर ,फोटो देखकर बड़े दुखी हुए ।
एक शेर लोगो के सामने गर्दन मुह में पकड़ कर केसे एक इन्सान की जान ले ली । सुना तो यह भी था शेर शिकारी नही था । खुद 10 किलो मांस भी बड़े आलस से खाता था । मगर कुछ लोगो द्वारा पत्थर फेंकने से शेर क्रोधित हो गया और एक व्यक्ति को जान से हाथ धोना पड़ा। वेसे मिडिया अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाती है । अच्छे या बुरी हर घटना को को जन जन पहुचाने में मिडिया का बड़ा योगदान है । मिडिया लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ है । मिडिया में वो ताकत है जो ठान ले कर दिखा सकता है । एक बात जेहन में उठी की आज एक शेर के मानव भक्षण पर मिडिया ने इतना कवरेज दे दिया । जो मांसहारी प्राणी प्रकृति प्रदान है । पर एक मानव जो  मांसाहार का सेवन करता है । प्रकृति प्रदान नही है । प्रकृति ने मानव को मांसाहार की अनुमति तो प्रदान नही की है फिर भी मानव मांसाहार का सेवन करता है । कितनी निर्दोष गायो , मूक प्राणियों , मुर्गो , बकरों का वध किया जाता है । तो क्यों नही मिडिया इस बात को ज्यादा से ज्यादा विरोध दर्ज करके अपनी भूमिका निभाए । जैन धर्म व् हिन्दू धर्म में तो सभी जीवो को सन्मान दिया गया है । हिंसा तो आखिर हिंसा है । चाहे मानव की हो या मूक पशु की । आखिर बुद्धिजीवी समाज जब शिकार होता है तब कवरेज बताया जाता है और मूक पशु के लिए क्यों नही प्रतिबन्ध की मांसाहार प्रकृति प्रदत नही है । मानव किसी को मार कर अपना आहार नही बना सकता । यह विचार  मेरे अपने है । किसी को बाध्य करने के लिए नही । उत्तम जैन ( विद्रोही )

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

माँ शब्द और व्याख्या

माँ शब्द और व्याख्या मेने  इस शीर्षक के बारे काफी सोचने के बाद भी मुझे कही शीर्षक मष्तिष्क में आये क्यों की माँ शब्द एक इतना विशाल है जिसके लिए हजारो हजारो शीर्षक भी कम पड़ जाते है ! पर अपने विचार ब्लॉग पर लिखने और दोस्तों से शेयर करने के लिए कोई तो शीर्षक देना था !
माँ शब्द की व्याख्या पूरी करने लगे तो सात जन्म भी कम पड़ जाते है पर कम  शब्दों में माँ की व्याख्या आज का विषय चुना और आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु !
माँ शब्द से कोई प्राणी अनभिज्ञ नही है ! बुद्धिजीवी मानव से लेकर सूक्ष्म कीड़े तक को माँ प्यारी होती है ! माँ शब्द में त्रिदेव समाहित है ****    ब्रह्मा , विष्णु , महेश 
ब्रह्मा जनमदाता  है,
विष्णु पालनहार है ,
महेश हमारे भविष्य निर्माता ,
इन तीनो के दर्शन जिस एक मूर्ति में होते है वो है माँ 
माँ की ममता प्यार दुलार जिसने न पाया उनको पूछो  माँ क्या है ! जो माँ के प्यार से वंचित रहे ! माँ शब्द न जाने कब चलन में आया इतिहास में  कोई वर्णन नही मिलता है ! माँ एक दया की प्रतिमूर्ति होती है !
      सुबह उठ कर माँ के  चरण छु लो उनके चरणों की धुल के सामने चन्दन की महक भी कोइ मायना नहीं 
रात को सोने के पहले उनकी सेवा करो ताकि हम उनकी दुवाओ की दोलत से सराबोर हो सके 
अपनी आय का दसवा भाग कम से कम माँ के चरणों में समर्पित करो 
देखए लक्ष्मी आप पर कितनी महरबान होती है 
जब माँ ने आप को जनम दीया पहली साँस के समय वो पास में थी 
उनकी अंतिम साँस के समय आप भी उनके पास हो 
माँ का एक आशीर्वाद सात जन्मो के पुण्य का फल देगा 
व् एक बददुआ का पाप सो जनम तक दूर नहीं हो सकता 
तो करो माँ को नमन 
है माँ तू कितनी सुन्दर !
है माँ कितनी शीतल !
है माँ तुजे बारम्बार नमन !    उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि हमारी राज भाषा है.

 हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि हमारी राज भाषा है. संविधान के भाग-१७ के अनुच्छेद ३४३ के अनुसार हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया है. आज भी हिंदी भाषा की पहुँच सबसे ज्यादा क्षेत्रों में हैं...पर आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता हुआ सा नजर आता है. पहले की पढ़ाई और अब की पढ़ाई में ज़मीन और आसमान का अंतर है. आज लोग हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. आज कल जिसे दो वाक्य अंग्रेजी नहीं बोलने आती उसे समाज से पीछे का समझा जाता है. आज लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए कॉन्वेंट स्कूलों का सहारा ले रहे हैं. आज लोग परा-स्नातक की उपाधि तो ले लेते हैं पर दो लाइन न शुद्ध हिंदी लिख पाते हैं न बोल पाते हैं.
आज सभी की मानसिकता हिंदी को लेकर बहुत ज्यादा बदल गयी है उन्हें लगता है कि हिंदी तो बहुत सरल है और जहाँ तक मुझे लगता है अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी ज्यादा कठिन है. पहले के कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा जैसे महान लोगों ने हिंदी को अपनी परकाष्ठा पर पहुँचाया था. इन लोगों ने हिंदी को एक नयी दिशा दी थी. परन्तु आज ये विलुप्त होती सी दिख रही है. हिंदी से बढ़ती इस तरह की दूरी से लोगों को छोटी (ई), बड़ी (ई), छोटा (उ), बड़ा (ऊ) में फर्क करना बड़ा मुश्किल सा हो गया है. आज अमूमन जिस तरह हम बोलते, बातचीत करते हैं, उसी को हिंदी समझ लेते हैं. परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है.
आज हिंदी दिवस है और हर जगह बड़े-बड़े शहरों, जिलों आदि में गोष्ठी, सभाएं, चर्चाएँ आदि हो रही होगी. क्यूंकि हमारे यहाँ तो जिस दिन जो भी दिवस पड़ता है उस दिन उसको बखूबी याद किया जाता है. हिंदी से बना हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी होने के नाते हमारा ये फ़र्ज़ बनता की हिंदी भाषा को हम सभी बढ़ावा दें, जिससे हम आगे के लिए अपने कठिन रास्ते को आसन कर लें. हिंदी से ही हम सभी की पहचान है. उत्तम  जैन (विद्रोही )

बुधवार, 24 सितंबर 2014

हिंदी से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है

हिंदी मेरी प्रिय भाषा है ! क्युकी हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि हमारी राज भाषा है. संविधान के भाग-१७ के अनुच्छेद ३४३ के अनुसार हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया है. आज भी हिंदी भाषा की पहुँच सबसे ज्यादा क्षेत्रों में हैं...पर आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता हुआ सा नजर आता है. पहले की पढ़ाई और अब की पढ़ाई में ज़मीन और आसमान का अंतर है. आज लोग हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. आज कल जिसे दो वाक्य अंग्रेजी नहीं बोलने आती उसे समाज से पीछे का समझा जाता है. आज लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए कॉन्वेंट स्कूलों का सहारा ले रहे हैं. आज लोग परा-स्नातक की उपाधि तो ले लेते हैं पर दो लाइन न शुद्ध हिंदी लिख पाते हैं न बोल पाते हैं.
आज सभी की मानसिकता हिंदी को लेकर बहुत ज्यादा बदल गयी है उन्हें लगता है कि हिंदी तो बहुत सरल है और जहाँ तक मुझे लगता है अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी ज्यादा कठिन है. पहले के कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा जैसे महान लोगों ने हिंदी को अपनी परकाष्ठा पर पहुँचाया था. इन लोगों ने हिंदी को एक नयी दिशा दी थी. परन्तु आज ये विलुप्त होती सी दिख रही है. हिंदी से बढ़ती इस तरह की दूरी से लोगों को छोटी (ई), बड़ी (ई), छोटा (उ), बड़ा (ऊ) में फर्क करना बड़ा मुश्किल सा हो गया है. आज अमूमन जिस तरह हम बोलते, बातचीत करते हैं, उसी को हिंदी समझ लेते हैं. परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है.
 हिंदी दिवस आता है और हर जगह बड़े-बड़े शहरों, जिलों आदि में गोष्ठी, सभाएं, चर्चाएँ आदि होती है ! सरकार भी समाचार पत्र में हिंदी दिवस के बारे में बहुत विज्ञापन देती है ! . क्यूंकि हमारे यहाँ तो जिस दिन जो भी दिवस पड़ता है उस दिन उसको बखूबी याद किया जाता है. हिंदी से बना हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी होने के नाते हमारा ये फ़र्ज़ बनता की हिंदी भाषा को हम सभी बढ़ावा दें, जिससे हम आगे के लिए अपने कठिन रास्ते को आसन कर लें. हिंदी से ही हम सभी की पहचान है.! सभी सरकारी कार्यालय में हिंदी में ही कार्य हो अगर यही निर्णय हो जाए तो निश्चित रूप से हर हिंदुस्थानी का हिंदी से लगाव बढ़ेगा। .... उत्तम जैन (विद्रोही )
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता!! ! नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः!! नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं जय माता दी _/\_ जय माता दी 

जिंदगी में चिंता छोड़ चिंतन करना शुरू करें

जिंदगी में चिंता छोड़ चिंतन करना शुरू करें
 मैनें पढ़ा है, एक नब्बे वर्षीय महिला से किसी ने पूछा कि अगले जन्म में आप क्या बनना चाहेंगी और क्यों? उस महिला ने जवाब दिया, मैं अपनी जिंदगी में सफल रही, मेरी जिंदगी बहुत अच्छे से गुजरी और अगले जन्म भी यही स्वरूप लेकर पैदा होना चाहूंगी। कारण यह है कि मैनें इस जन्म में बहुत सी ऐसी चिंताये और डर पाले जो कभी घटित ही नहीं हुए या यूं कहें उनके घटने की सम्भावनाएं न्यूनतम थी। इन चिंताओं के कारण मैने अपनी जिंदगी में बहुत सी चीजों का मजा नही लिया, बहुत सी चीजें नही सीखी, मै अगले जन्म में और उन चीजों का सुख उठाना चाहता हूं। इस जन्म की कुछ चिंताये मुझे रहती थी कि यदि मै रोलर - कोष्टर में बैठूं तो मै गिर कर मर जाऊंगी, यदि मै कार चलाऊंगी तो किसी को दबा दूंगी। बेबुनियादी चिंता के कारण बहुत सी चीजों से मैं वंचित रही। कहीं ऐसा तो नही हम भी अपनी जिंदगी की ढलान पर जब पलटकर देखें तो हमें भी ऐसा न महसूस हो कि बेकार की चिंता में हमारे बहुत से सुनहरे पल हमसे छिंन लिये थे।
सचमुच, हम इतनी सारी चिंताये पाल लेते हैं कि हमें जिंदगी साफ नही दिखाई देती और हम खुलकर अपने कार्यो को गति नहीं दे पाते। हमारे सिर पर भय का बोझ, हमारी सोचने की क्षमता और कार्य की गतिशीलता बहुत कम कर देता है। मै अपनी जिंदगी में कुछ ऐसे लोगों से मिला हूं, जिनमें अपार क्षमताये थी साथ ही अपार शंकाये भी थी। वे अपनी क्षमता के अनुसार न व्यापार में ऊंचाई पर पहुंच पाये और न ही जिंदगी के मजे ले पाये। ठीक इसके विपरीत एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो आत्मविश्वाश से सराबोर रहता था। बड़ी-बड़ी समस्याएं उसके सामने बौनी दिखाई देती थीं। वह व्यक्ति कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद बहुत सफल व्यापारी व संकट मोचन कहलाता है। बहुत से निराश लोग उसके पास जाते है और वह अपनी बातचीत और समझाईश से उनकी अनावश्यक चिंताओं को दूर कर परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत पैदा कर देता है।
हकीम लुक मान के बारे में कहा जाता था कि वे जब पहाड़ों-जंगलों में औषधी की जड़ी-बूटी लेने जाते थे तो वन औषधी उनसे कहती थी कि मुझे लेलो मै पेट दर्द के काम आऊंगी तो कोई औषधि पौधा कहता था कि मेरा उपयोग आंख की रोशनी तेज करने में कर सकते हो। कहने का मतलब यह है कि हर बीमारी के इलाज हेतु वे जंगल से जड़ी-बुटी ले आते थे परंतु चिंता की बीमारी का इलाज उन्हें भी नही मिला। यह कहावत बन गयी की चिंता का ईलाज हकीम लुक वान के पास भी नहीं था। हर आदमी को घबराना नही चाहिए उसे धीरज रखकर हल ढूंढना चाहिए। ऐसा करना कठिन जरूर है पर असम्भव नहीं धीरे-धीरे हम अपनी आदतों पर नियंत्रण कर सकते है।
हम पर जब विपत्ति आये, कोई समस्या आये, कोई नुकसान हो तो हमें चिंता करने की जगह चिंतन करना चाहिए, हमें परिस्थिति का सामना अच्छी तरह से करना चाहिए। चिंता एक तरह से आदमी की ताकत को निचोड़ती है जबकि चिंतन, शक्ति के सही दिशा में उपयोग का रास्ता बता सकता है इसलिए मैं सबसे अनुरोध पूर्वक कहता हूं .......
जिंदगी में चिंता छोड़ चिंतन करना शुरू करें।।।  …     उत्तम जैन (विद्रोही )                  

मेरी पत्नी और शेष यादे

मेरी पत्नी और शेष यादे
बचपन से दादा दादी पापा मम्मी ताऊ ताई के प्यार में पला ! स्वभाव से थोड़ा शर्मीला कक्षा 1  से 8 पापा अध्यापक थे उन्ही के स्कूल में पढ़ा ! मेरे पिता ही अभिभावक व् गुरु रहे ! दादी की धार्मिक प्रवृति गाव मे आये साधु संतो के नित्य दर्शन दिनचर्या में सम्मिलित था ! दादी शुरू से थोड़ी कठोर अनुशासन प्रिय थी ! जितनी कठोर उतनी प्यार भी करती थी ! शारीरिक अस्वस्थता के चलते अल्पवय 19 वर्ष की उम्र में मेरी  शादी करवा दी ! में मूक दर्शक होकर मोन स्वीकृति दी ! इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा भी नही था ! सगाई के 7 माह बाद शादी भी हो गयी ! शादी के वक़्त पत्नी का तो क्या खुद का खर्चा उठाने लायक भी नही था ! पर परीवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने से कभी कोई तकलीफ नही आयी ! वक़्त गुजरता गया बच्चे हुए खुद कमाने खाने लगा ! जीवन में काफी उतार चढ़ाव आये ! कभी आर्थिक स्थिति से भी कमजोर हुआ ! पर उस वक़्त मेरे साथ माता पिता का आशीर्वाद तो था ही पर मेरे साथ मेरी जीवन साथी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही तभी मेरा होंसला बना रहा ! काफी संघर्ष के बाद आर्थिक स्थिति से मजबूत हुआ ! बुरे वक़्त में हमसफ़र का साथ हो और वक़्त के साथ समझोता अगर जीवन साथी कर ले ! तो पति पत्नी में किसी तरह के मनमुटाव नही हो सकते व् जीवन एक आनंद की अनुभूति होती है ! यह अनुभूति मेने स्वयं प्राप्त की ! पर वक़्त पर एक ऐसा मोड़ आया ! पत्नी सूरत से पीहर वॉल्वो में जाते हुए दुर्घटना का शिकार हो गयी ! उसने  प्राण त्यागते समय अंतिम समय में भी मुझे याद किया उसकी अनुभूति ठीक उसी समय प्रातःकाल 4 बजे स्वप्न में हुई पर में स्वप्न समझ कर ध्यान नही दिया ! पर जब करीब दुर्घटना से 45 मिनिट बाद जब केसरियाजी पोलिस द्वारा मुझे दुर्घटना की जानकारी प्राप्त हुई ! तो स्वयं कुछ सोचने समझने के हालात में नही था ! पर बाद में अहसास हुआ उसका इतना प्यार की प्राण त्यागते समय मुझे जरूर याद किया तभी वो तरंगे मेरे स्वप्न में पहुंची ! जीवन में जन्म व् मृत्यु निश्चित है ! पर वक़्त के पहले जीवनसाथी का चला जाना ! जिंदगी बेगानी हो जाती है ! वैसे मेरे माता पिता का आशीर्वाद आज भी प्राप्त है ! उन्ही के आशीर्वाद व् संस्कारो पर चलते रहने की कोशिश में लगा रहता हु ! और रहती है तो सिर्फ स्मृति शेष। …। उत्तम जैन ( विद्रोही )        
उक्त मेरी सच्ची कहानी कहु या हकीकत है       

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

लव जिहाद और एक समस्या

 एक  शब्द ‘लव जिहाद ‘ की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। हाल ही देहली में जैन समाज की धर्म संसद हुई जैन समाज के दिगंबर व् श्वेताम्बर दोनों समाज के धर्म गुरु उपस्थित थे ! दिगंबर संत मुनि श्री ने भी लव जिहाद से दूर रहने की समाज से अपील है ! समय के अनुसार धर्म गुरु संतो का विचार करना भी स्वागत योग्य है !यू तो यह शब्द काफी पुराना है, पर रांची के तारा और रिकाबुल हस्सन के प्रकरण ने इसे तरो और ताजा बना दिया है। लोगों के सज्ञान में आते ही, इस प्रकार के तमाम उदाहरण भी सामने आने लगे। समाज का हर वर्ग और हर मीडिया छेत्र इस के भरपूर गिरफ्त में आ गया। तथाकथित ‘सेकुलरिस्टों ‘ के द्वारा इसे अन्तर्जातीय विवाह मात्र के रूप में देखा जाता रहा है। जब कि चर्चा अंतर्जातीय विवाह को लेकर नहीं , विवाह उपरांत पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को जबरन अपने धर्म को मनवाने से है ,साथ ही विवाह के पहले छद्म रूप धारण कर, लड़की के धर्म का होने का धोखा देना आपत्ति जनक है। इस प्रकार की समस्त प्रक्रिया को ही, लव जिहाद माना गया है।
चुकी अंतर्जातीय विवाह के बाद लड़की की स्थीति ऐसी हो जाती है ,की जैसे – एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई। प्रायः इस प्रकार के विवाह सम्बन्ध बनाने के बाद लड़की का परिवार यवम उसका समाज उस लड़की से, सामाजिक मान्यताओं के कारण, सम्बन्ध लगभग समाप्त ही कर लेता है। धर्म परिवर्तन की बातों से पूरी असहमति होने के बाद भी, इन परिस्थितयों में, लड़की के पास अपने पति अथवा अपने ससुराल की बातें मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता। पत्नी पूरी तरह असहाए हो जाती है, और दूसरी तरफ इन परिस्थितयों का पूरा लाभ पति को और उसके परिवार को मिल जाता है।
तारा ने जिस तरह पूरी हिम्मत और समझदारी के साथ अपने ससुराल का विरोध किया, और वहाँ के प्रशासन को आरोपियों के प्रति कार्यवाही करने के लिए विवश कर दिया, अपने ससुराल के भारी सरूख के बावजूद, जिसमें मीडिआ की भी प्रसंसनीय भूमिका रही। इस प्रकरण ने तमाम महिलाओं को हिम्मत भी दी, और नई राह भी खोली। देखते ही देखते इस प्रकार के तमाम प्रकरण सामने आने लगे।
उपर्युक्त प्रकरण के विस्तार में जब जानकारीया एकत्र की जाने लगी, तो आश्चर्यजनक रूप से चौकाने वाले तथ्य सामने आये। सुना गया, की दुसरे सम्प्रदाय के लड़के, लड़की के सम्प्रदाय का चोला पहन कर, अपना नाम बदल कर, उन के धर्म कर्म के कार्यो में शरीक हो जाते है। अपनी पहचान पूरी तरह छुपा कर तब तक रखते है, जब तक लड़की से विवाह न हो जाय। विवाह भी लड़की के धर्म अनुरूप ही करते है । विवाह उपरांत उनकी असलियत खुलती है, तब तक देर हो चुकी होती है। अब पुरूषों का मुख्य धैय होता है, अपनी पत्नी का धर्म परिवर्तन कराकर, अपने धर्म अनूकूल विवाह करने का। लड़की स्वेम तैयार हो तो ढीक, वरन प्रताड़ित कर उसे विवश किया जाता है।
इसे हम अंतर्जातीय प्रेम विवाह का नाम कैसे दे सकते है ? यह कैसे प्रेम हो सकता है? जिस प्रेम की नींव ही धोखे ,अविश्वास व खडियंत्र पर रखी गयी हो। कहते है ‘प्रेम और युद्ध में सब जायज होता है।’ पर यहाँ तो प्रेम का कोई भी तत्व दिखता ही नहीं। यह प्रकरण, प्रेम के नाम पर एक पूरवनिर्धारित खडियंत्र ही है,और वह भी पूर्ण अमानवीय। इस प्रकरण को, मूझे नहीं लगता, कोई भी समुदाय,धर्म या समाज मान्यता दे सकेगा।
इस प्रकरण का भविष्य क्या होगा, यह तो आगे देखने की बात होगी, किन्तु इस प्रकरण ने निश्चित रूप से लड़कियों को जागरूप अवश्य किया होगा। लड़किया भी अब ‘अंधे प्रेम ‘ को ठुकरा कर दिल से ज्यादा दिमाग से प्रेम स्वीकृत करेंगी। अब लड़कियों को भ्रम में रख कर उनका लाभ उठाना इतना सरल नहीं हो सकेगा, मुझे इस का पूरा – पूरा विश्वास है। उत्तम जैन ( विद्रोही)  

आधुनिक बढ़ा बाबाओं का क्रेज, प्रवचन सुनना हुआ फैशन

 दोस्तों हिन्दुस्थान की प्रजा का आध्यात्म की तरफ आकर्षण प्राचीन काल से रहा है ! उसी कारण से कुछ  आधुनिक बाबाओ ने नब्ज़ पकड़ कर भोली भाली जनता को गुमराह किया है और कर रहे है और अपने प्रोडक्ट को बेच रहे है ! आज कल सुबह-सुबह आँख खोलो और अगर सोच लो की भगवान का दर्शन कर लें तो वो बड़ा मुश्किल है. आजकल तो भगवान से ज्यादा ऊँचा दर्ज़ा आज कल के टीवी वाले बाबा लोगों को मिल गया है. आज कल चैनलों पर बाबा का प्रवचन एक फैशन सा हो गया है. अब तो अलग अलग धर्मों के लिए अलग-अलग बाबा हो गए हैं. कोई हिन्दू धर्मं का तो कोई सिख धर्मं की बातें करता है. धर्म का प्रसार और प्रचार करने वालों ने हमेशा भगवान को एक माना है, पर इन लोगों ने तो पूरी तरह से भगवान को जगह-जगह अलग-अलग समय में भी बाँट दिया है. ये बाबा लोग खुद तो ईश्वर को एक ही बताते हैं पर ये खुद अलग-अलग हो गए हैं.
सुबह-सुबह सोकर उठने के बाद बस अलग-अलग चैनल पर आपको अलग-अलग बाबा अपना प्रवचन सुनाते मिल जायेंगे. आज ये स्टेट्स सिम्बल भी हो गए हैं. अब तो हमारी मीडिया भी इन बाबा लोगों को प्रमोट करती नज़र आ रही है. न्यूज़ दिखाने वाले चैनलों ने भी इनको अपनी एक नयी तस्वीर पेश करने के लिए रख लिया है. आज बाबा लोग एक ऊँचे से मंच पर बैठ जायेंगे और खूब ढेर सारे लोगों की भीड़ उनके सामने बैठी होगी और पूरे मन से वो उसी प्रवचन में लीन रहती हैं. और बाबा लोगों से अगर फुर्सत मिले तो एक नए फैशन के तौर पर लोग अपने उत्पाद बेचते मिल जायेंगे. कहीं महालक्ष्मी श्री यन्त्र पूजा से सम्बन्धित, तो कहीं कोई औषधि का प्रचार....बहुत ज्यादा हुआ तो कुंडली का विश्लेषण करते अगले चैनल पर पंडित जी लोग मिल जायेंगे.
आखिर ये सब क्या है? पूरी तरह से दिशा भ्रमित करने का आसान तरीका ही तो है. आज हम आम जनता के संवेदनाओं की क़द्र न करते हुए ये लोग आराम से अपने कार्यक्रम को बढ़ावा देते हैं. आज भोली-भाली जनता इस तरह के बहकावे में आ जाती है और पूरी तरह से धोखा खाती है. ज़िन्दगी से दिशाभ्रमित हो जाने वाले लोग इस मकड़जाल में फंसते चले जा रहे हैं.
आप इतिहास रच सकते हैं मोदी जी, बशर्ते...!!
लोकसभा चुनावों के नतीजों और नरेंद्र मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के बाद से देश में अल्प संख्यकों और विशेष कर मुसलमानो के बीच किस प्रकार की सोच विकसित हुई, और मोदी जी से इस समुदाय को क्या आशाएं हैं, इस मुद्दे पर मैंने लगभग दो महीने विभिन्न शहरों में अपने काम से आने जाने के दौरान मुस्लिम समुदाय तथा अन्य लोगों से बात चीत कर. तथा सोशल मीडिया पर मुस्लिम बुद्धि जीवियों के विचारों  से जो अंदाज़ा लगाया तथा बातचीत के दौरान इन सभी लोगों ने कई विचारोत्तेजक बिन्दुओं पर ध्यान दिलाया, वो यह कि नरेंद्र मोदी जी की इस बड़ी जीत से घबराने या आशंकित होने की बिलकुल ही ज़रुरत नहीं है, यह एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है, पिछली सरकार की नीतियों तथा कारनामों के कारण ही वो इसके हक़दार थेकोई भी राजनैतिक दल सत्ता पाने का अधिकारी होता है !

लोगों का यह भी कहना था कि प्रधान मंत्री पद की शालीनता, कर्तव्य, और गरिमा होती ही ऐसी है कि उस पद पर आसीन होने के बाद व्यक्ति में परिवर्तन स्वाभाविक होता है, और यही कारण है कि नरेंद्र मोदी जी की चुनावी आक्रामक शैली अब कहीं नज़र नहीं आ रही है, इस पद पर आसीन होने के बाद उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करने को बाध्य तो होना ही है, इस विशाल देश और उसकी की जनता का वर्तमान और भविष्य संवारने का ज़िम्मा और मौक़ा उन्हें मिला है, ऐसे मौके को खोना नहीं चाहिए और अपने आपको साबित करना चाहिए, लम्बी पारी खेलनी है तो सभी को साथ लेकर चलना चाहिए, आपने वर्तमान जीत लिया तो भविष्य भी आपका है !


दूसरी अहम बात काफी लोगों ने कही कि इस चुनाव और भाजपा की प्रचंड जीत ने नरेंद्र मोदी जी को एक नायाब सुनहरा मौक़ा दिया है कि वो अगर ठान लें तो अपने आप को अटल बिहारी से आगे ले जाकर दिखा सकते हैं, और इतिहास में एक शाक्तिशाली प्रधान मंत्री के रूप में स्थापित हो सकते हैं, बशर्ते कि वो वर्तमान का सही और सार्थक उपयोग कर सकें, जो कि अब गुज़रते समय के साथ कुछ कठिन नज़र आने लगा है ! कारण साफ़ नज़र आ रहे हैं कि जहाँ एक ओर इनकी ही पार्टी के योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे लोग लोग लव जिहाद और मदरसों पर आतंकी पैदा करने, गरबा में मुसलमानो को प्रवेश न देने जैसे मुद्दे लेकर धार्मिक उन्माद भड़काने के लिए सड़कों पर उत्तर आएं हैं, लगातार मुसलमानो पर हो रहे बयानी हमलों से इस वर्ग मैं बेचैनी पनपने लगी है, यह बहुत दुखद है..और इससे ज़्यादा दुखद है.... इन सभी मामलों पर मोदी जी की चुप्पी, मगर लोगों को विश्वास है कि मोदी जी जल्दी ही इसे चतुराई से सुलझा लेंगे, क्योंकि इन मामलों में देरी से देश में आक्रोश पनप सकता है !

ऐसे कुछ मुठ्ठी भर लोग मोदी जी को इतिहास रचने से रोकने में अहम भूमिका ही निभा रहे हैं, ऐसे में यदि मोदी जी ने इन ताक़तों के सामने हथियार डाल दिए तो 2019 को वो अपना रिपोर्ट कार्ड किस प्रकार पेश करेंगे ? हो सकता है कि जनता उस समय उनके रिपोर्ट कार्ड को सिरे से ख़ारिज कर दे, और शायद उन्हें उन चुनावों में जनता की कड़वी दवाई पीनी पड़ जाए, जैसा कि हालिया उप चुनावों में जनता ने भाजपा को झटका दिया है, इसी लिए इस चुनावों में मिले विशाल बहुमत का सम्मान करते हुए यदि मोदी जी अपने इन बयान बहादुरों के मुंह और प्रयासों पर लगाम लगा कर. संघ के प्रभाव से मुक्त होकर राष्ट्र हित में निजी निर्णय लेकर सभी करोड़ों देश वासियों के हित के लिए आगे बढ़ें तो उनको सभी का समर्थन और साथ मिलता रहेगा, देश के सभी वर्ग, धर्म के लोग भारत को बुलंदियों पर देखना चाहते हैं, एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं, वे सभी अपना सुरक्षित भविष्य और सुनहरा वर्तमान चाहते हैं, जैसा कि मोदी जी ने नारा दिया है "सबका साथ, सबका विकास" कौन नहीं चाहता कि उनका हाथ राष्ट्र के विकास के लिए आगे आये, और कौन नहीं चाहता कि उनका विकास हो ..देश का विकास हो ? मोदी जी को इस नारे को सार्थक भी करके दिखाना होगा !
प्रचंड बहुमत के बाद चुने गए नरेंद्र मोदी जी से देश की जनता को बहुत आशाएं है, अपनी करनी का फल भुगत रहे पस्त विपक्ष को कुछ ऐसा करके दिखाना है कि आगामी वर्षों में जनता चैन की सांस ले सके, और देश की जनता को लगे कि जो विकल्प इस चुनावों में उहोने चुना है वो वास्तव में बिलकुल सार्थक है ! हाल ही में देश में हुए उपचुनावों के नतीजों के बाद उनकी शैली और बयानों में आये बदलावों और कल हिंदुस्तानी मुसलमानो के लिए दिए गए उनके बयानों से सौहार्द और आशा की एक हल्की सी लौ तो झिलमिलाई है, अब उस लौ को आशा का दीपक बनाये रखने की पूरी ज़िम्मेदारी मोदी जी की है, देखना है कि इस पर वो कितने खरे उतरते हैं, मुझे उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी जी ने अगर ठान लिया तो भविष्य में उनका क़द अटल बिहारी वाजपेयी से कहीं बड़ा नज़र आ सकता है !!