सास बहु हर एक परिवार में एक अहम् जिमेदारी के साथ परिवार का महत्वपूर्ण रिश्ता है । जंहा बहु शादी करके घर में आती है । कुछ वर्षो तक बहु के रूप में रहकर एक सास के रूप में दायित्व निभाती है । यह तो एक परम्परा है जो प्राचीनकाल से चली आरही है । यह एक रिश्ता अगर सोचा जाये तो बहुत महत्वपूर्ण आपसी समझ. एक दुसरे को सन्मान , विचारधारा को समझने वाला , सामंजस्य से परिवार का सञ्चालन करने वाला होता है । क्यों की मुख्य रूप से सास व् बहु में तक़रीबन 20 से 25 वर्ष का उम्र का फर्क होता है । स्वाभाविक रूप से विचारधारा में काफी फर्क होता है । जहा सास अपने पूर्व के अनुभव के आधार पर परिवार को संचालित करना चाहती है । वही बहु आधुनिकता के साथ घर को संचालित करना चाहती है । फलस्वरूप बात वाद विवाद को जन्म देती है । अनबन झगडे क्लेश शुरू हो जाते है । वेसे कोई बड़ा मुद्दा नही होता पर आपसी समझ की जरुरत होती है । बहु का कर्तव्य होता है की सास की भावनाओ की कद्र करे । क्यों की ससुराल में सास ही माँ के रूप में मिली है । एक आदर्श बहु अगर एक आदर्श पुत्री के रूप में घर में सन्मान पाना चाहती है तो उसे सबसे पहले सास का दिल जितना होगा । अगर सास का दिल जीत लिया तो उसको पीहर से ज्यादा प्यार मिल सकता है । तब वह अपने पति का प्यार को तो स्वत प्राप्त कर लेगी । घर में देवर जेठ छोटे बड़े सब की जिमेदारी एक बहु पर ज्यादा होती है । अगर इस अग्नि परीक्षा में बहु सफल हो जाती है तो निसंदेह घर स्वर्ग हो जाता है । अपने अधिकारों के साथ कर्तव्य का निर्वाह करना बहु की नेतिक जिमेदारी है । पर ज्यादा शिक्षित व् अपने माँ पिता का प्यार पाई हुई बेटी जब ससुराल आती है तो हर घर का माहोल विचारधारा रस्मे रीतिरिवाज के कुछ परिवर्तन जो स्वाभाविक रूप से होता है । बहु का फर्ज है अपने पीहर की तरह न अपनाकर ससुराल के अनुसार चले । और कुछ परिवर्तन करना भी चाहे तो सास के दिल पर विजय प्राप्त करके उसे परिवर्तन करने की कोशिश करे । तो शायद एक बहु आदर्श बहु के रूप में स्थान पा सकती है । बहुत जगह बहु को अपने माता पिता व् भाई की सह मिलती है । जिससे बहु का भविष्य कभी सुन्दर नही हो सकता है । उस जगह अगर मिलता है तो सिर्फ दुःख ।।
हर एक माँ का पुत्र यही चाहता है की उसकी पत्नी माँ व् पिता का सन्मान करे । अगर पत्नी सास व् ससुर का सन्मान नही करेगी तो पति का अपेक्षित प्यार कभी नही पा सकती भले एक सांसारिक रिश्ते व् अपनी मज़बूरी में पत्नी का साथ दे । और साथ में सास को भी चाहिए बहु से उसी तरह वर्ताव करे जेसा अपनी बेटी के साथ चाहती है । बहु की भावनाओ को समझे उसकी नादानी उम्र को देख कर उसे बेटी से ज्यादा प्यार करे । जिससे बहु एक आदर्श बहु
के रूप में जिमेदारी का निर्वहन कर सके । सास को चाहिय की बहु के साथ वो वर्ताव न करे जो वर्ताव उनकी सास ने उनके साथ किया । समय के साथ परिवर्तन बहुत जरुरी है । समय में आये बदलाव के साथ सास को चलना चाहिए । जिससे उनके द्वारा सींचे घर को बहु आगे बढ़ा सके । परिवार व् समाज में पूर्वजो का नाम रोशन कर सके ।।
उत्तम जैन ( विद्रोही )
ब्लॉग लेखक उत्तम जैन विद्रोही आवाज समाचार पत्र के प्रधान संपादक है ! पेशे से डॉ ऑफ नेचोरोंपेथी है ! स्वयं की आयुर्वेद की शॉप है ! लेखन मेरा बचपन से शोख रहा है ! वर्तमान की समस्या को जन जन तक पहुचाने के उदेश्य से एक समाचार पत्र का सम्पादन2014 मे शुरू किया ब्लॉग लेखक उत्तम जैन (विद्रोही ) विद्रोही आवाज़ के प्रधान संपादक व जैन वाणी के उपसंपादक है !
शनिवार, 27 सितंबर 2014
सास बहु और मतभेद
शुक्रवार, 26 सितंबर 2014
पल का उपयोग
इसी प्रकार से हम सभी के जीवनों पर प्रयोग हो सकने वाली तिथि लिखी हुई है - बस हम में से कोई उस तिथि को जानता नहीं है; हमें पता नहीं है कि हमारा हृदय किस तिथि तक ही कार्य करेगा और फिर सदा के लिए बैठ जाएगा, या हमारी अन्तिम श्वास किस पल ली जाएगी और फिर किस रीति से सदा के लिए थम जाएगी। जब यह सत्य सभी के जीवनों के लिए अवश्यंभावी है, तो क्या हम सब को उन पलों का जो हमें दिए गए हैं, मन लगा कर सदुपयोग नहीं करना चाहिए? पलों के उपयोग से मेरा तात्पर्य है हम और गहराई तथा अर्थपूर्ण रीति से सच्चा प्रेम दिखाएं, औरों को क्षमा करने में तत्पर रहें, दूसरों की सुनने वाले बनें, खराई किंतु मृदुभाव से बोलने वाले बनें, इत्यादि।
क्योंकि हम में से कोई भी अपने उपयोगी रहने की अन्तिम तिथि नहीं जानता, इसलिए प्रत्येक पल को बहुमूल्य जानकर, हर पल का उपयोग त्याग ,संयम, साधना , सतकर्म , प्रेम से प्रसार कर संसार को और अधिक उज्जवल तथा सुन्दर बनाने के लिए करने वाले बन जाएं।**उत्तम जैन (विद्रोही )
मेरा बचपन मेरा गाव
मेरा बचपन मेरा गाँव शीर्षक एक बचपन की याद दिलाता है । बचपन से छप्पन में आते आते जिन्दगी की दिनचर्या में कितना बदलाव आ जाता है । समय के साथ जन्मभूमि से कर्मभूमि तक के सफ़र में इंसान थपेड़े खाते खाते जन्मभूमि व् अपनों से दूर निकल जाता है । दादा दादी बड़े बुजुर्गो से इन्सान दूर सिर्फ अर्थ के पीछे भागता है । शारीरिक सुख मानसिक सुख अपनत्व को भूल दिन रात भागता रहता है । शहरो में व्यस्त पडोशी से अनभिज्ञ तो रहता ही है वरन अपने परिवार को भी समय नही दे पाता है । फलस्वरूप सिर्फ प्राप्त करता है तो अर्थ । मानसिक तनाव में जीवन गुजारते हुए असाध्य बीमारी से ग्रसित होकर परिवार के लिए एक पारिवारिक डॉक्टर से जरुर निकटता बना कर रखता है । शहरो के प्रदुषण से वास्ता रोगी बना देता है । कहा वो गाँव की खुली हवा प्रदुषण मुक्त जीवन पर वक़्त के साथ चलना इन्सान की मज़बूरी का बहाना । मेने बहुत परिवार को देखा जिनके पास न बच्चो न पत्नी न माँ व् पिता के लिए समय है । क्या यही मानव जीवन का लक्ष्य है । अगर नही तो क्यों बद से बदतर जिन्दगी जीता है । साथ में परिवार को भी जीने को मजबूर करता है । में शहर में रहने के खिलाफ नही हु पर चेन की जिन्दगी जीने की सलाह तो दे सकता हु । वर्तमान को देखते हुए गाव में रह कर समाज में अपना अस्तित्व नही बना सकता यह एक कटु सत्य है । इसके अनेक कारण है ।समाज में फेली कुप्रथा सबसे बड़ी जिमेदार है । व्यक्ति दोड़ में पीछे नही रहना चाहता । शादी विवाह में फिजूल खर्ची , दिखावा, एशो आराम के साधन , समाज में दिए जाने वाले बड़े बड़े चंदे की राशि जिससे खुद का नाम रोशन कर सके । भले पिछली पीढ़ी अर्थ कमाने के लिए संस्कार विहीन हो रही हो । दोस्तों मेरा मकसद समाज में बगावत करना नही पर समय रहते परिवर्तन की अपेक्षा है । समाज एक परिवार का हिस्सा है अब समय है परिवर्तन होना चाहिए । दहेज़ प्रथा , दिखावा , अपव्यय , बहुत सी कुरतिया है जिसे आज की युवा पीढ़ी को आगे आकर अंकुश लगाना होगा । पूर्वजो के पथ से कुछ हटना होगा । उनके अच्छे संस्कार ग्रहण करे व् कुरतियो से बगावत करनी होगी तभी एक स्वस्थ समाज की सरचना होगी आगे की भावी पीढ़ी शहरो की तरफ न भाग कर गाँव में रहने में शुकून का अनुभव करेगी । चाहे कंही भी रहे पर एक परिवार को समय देना अपना कर्तव्य समझेगी । और एक स्वस्थ समाज एक स्वस्थ परिवार में जी सकेगा ... उत्तम जैन ( विद्रोही )
देहली में शेर ने मानव का शिकार किया
पिछले 2 दिनों से मिडिया टीवी ,पेपर , व्हाट्स अप , फेसबुक ,ट्विटर और न जाने किस पर यह खबर सुर्खियों में रही । बहुत बुरी घटना थी । मुझे भी बड़ा दर्द हुआ। जब शेर ने मानव का भक्षण किया । स्वाभाविक है सभी लोग वीडियो देख कर ,फोटो देखकर बड़े दुखी हुए ।
एक शेर लोगो के सामने गर्दन मुह में पकड़ कर केसे एक इन्सान की जान ले ली । सुना तो यह भी था शेर शिकारी नही था । खुद 10 किलो मांस भी बड़े आलस से खाता था । मगर कुछ लोगो द्वारा पत्थर फेंकने से शेर क्रोधित हो गया और एक व्यक्ति को जान से हाथ धोना पड़ा। वेसे मिडिया अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाती है । अच्छे या बुरी हर घटना को को जन जन पहुचाने में मिडिया का बड़ा योगदान है । मिडिया लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ है । मिडिया में वो ताकत है जो ठान ले कर दिखा सकता है । एक बात जेहन में उठी की आज एक शेर के मानव भक्षण पर मिडिया ने इतना कवरेज दे दिया । जो मांसहारी प्राणी प्रकृति प्रदान है । पर एक मानव जो मांसाहार का सेवन करता है । प्रकृति प्रदान नही है । प्रकृति ने मानव को मांसाहार की अनुमति तो प्रदान नही की है फिर भी मानव मांसाहार का सेवन करता है । कितनी निर्दोष गायो , मूक प्राणियों , मुर्गो , बकरों का वध किया जाता है । तो क्यों नही मिडिया इस बात को ज्यादा से ज्यादा विरोध दर्ज करके अपनी भूमिका निभाए । जैन धर्म व् हिन्दू धर्म में तो सभी जीवो को सन्मान दिया गया है । हिंसा तो आखिर हिंसा है । चाहे मानव की हो या मूक पशु की । आखिर बुद्धिजीवी समाज जब शिकार होता है तब कवरेज बताया जाता है और मूक पशु के लिए क्यों नही प्रतिबन्ध की मांसाहार प्रकृति प्रदत नही है । मानव किसी को मार कर अपना आहार नही बना सकता । यह विचार मेरे अपने है । किसी को बाध्य करने के लिए नही । उत्तम जैन ( विद्रोही )
गुरुवार, 25 सितंबर 2014
माँ शब्द और व्याख्या
माँ शब्द की व्याख्या पूरी करने लगे तो सात जन्म भी कम पड़ जाते है पर कम शब्दों में माँ की व्याख्या आज का विषय चुना और आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु !
माँ शब्द से कोई प्राणी अनभिज्ञ नही है ! बुद्धिजीवी मानव से लेकर सूक्ष्म कीड़े तक को माँ प्यारी होती है ! माँ शब्द में त्रिदेव समाहित है **** ब्रह्मा , विष्णु , महेश
सुबह उठ कर माँ के चरण छु लो उनके चरणों की धुल के सामने चन्दन की महक भी कोइ मायना नहीं
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि हमारी राज भाषा है.
बुधवार, 24 सितंबर 2014
हिंदी से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है
जिंदगी में चिंता छोड़ चिंतन करना शुरू करें
मेरी पत्नी और शेष यादे
बचपन से दादा दादी पापा मम्मी ताऊ ताई के प्यार में पला ! स्वभाव से थोड़ा शर्मीला कक्षा 1 से 8 पापा अध्यापक थे उन्ही के स्कूल में पढ़ा ! मेरे पिता ही अभिभावक व् गुरु रहे ! दादी की धार्मिक प्रवृति गाव मे आये साधु संतो के नित्य दर्शन दिनचर्या में सम्मिलित था ! दादी शुरू से थोड़ी कठोर अनुशासन प्रिय थी ! जितनी कठोर उतनी प्यार भी करती थी ! शारीरिक अस्वस्थता के चलते अल्पवय 19 वर्ष की उम्र में मेरी शादी करवा दी ! में मूक दर्शक होकर मोन स्वीकृति दी ! इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा भी नही था ! सगाई के 7 माह बाद शादी भी हो गयी ! शादी के वक़्त पत्नी का तो क्या खुद का खर्चा उठाने लायक भी नही था ! पर परीवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने से कभी कोई तकलीफ नही आयी ! वक़्त गुजरता गया बच्चे हुए खुद कमाने खाने लगा ! जीवन में काफी उतार चढ़ाव आये ! कभी आर्थिक स्थिति से भी कमजोर हुआ ! पर उस वक़्त मेरे साथ माता पिता का आशीर्वाद तो था ही पर मेरे साथ मेरी जीवन साथी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही तभी मेरा होंसला बना रहा ! काफी संघर्ष के बाद आर्थिक स्थिति से मजबूत हुआ ! बुरे वक़्त में हमसफ़र का साथ हो और वक़्त के साथ समझोता अगर जीवन साथी कर ले ! तो पति पत्नी में किसी तरह के मनमुटाव नही हो सकते व् जीवन एक आनंद की अनुभूति होती है ! यह अनुभूति मेने स्वयं प्राप्त की ! पर वक़्त पर एक ऐसा मोड़ आया ! पत्नी सूरत से पीहर वॉल्वो में जाते हुए दुर्घटना का शिकार हो गयी ! उसने प्राण त्यागते समय अंतिम समय में भी मुझे याद किया उसकी अनुभूति ठीक उसी समय प्रातःकाल 4 बजे स्वप्न में हुई पर में स्वप्न समझ कर ध्यान नही दिया ! पर जब करीब दुर्घटना से 45 मिनिट बाद जब केसरियाजी पोलिस द्वारा मुझे दुर्घटना की जानकारी प्राप्त हुई ! तो स्वयं कुछ सोचने समझने के हालात में नही था ! पर बाद में अहसास हुआ उसका इतना प्यार की प्राण त्यागते समय मुझे जरूर याद किया तभी वो तरंगे मेरे स्वप्न में पहुंची ! जीवन में जन्म व् मृत्यु निश्चित है ! पर वक़्त के पहले जीवनसाथी का चला जाना ! जिंदगी बेगानी हो जाती है ! वैसे मेरे माता पिता का आशीर्वाद आज भी प्राप्त है ! उन्ही के आशीर्वाद व् संस्कारो पर चलते रहने की कोशिश में लगा रहता हु ! और रहती है तो सिर्फ स्मृति शेष। …। उत्तम जैन ( विद्रोही )
उक्त मेरी सच्ची कहानी कहु या हकीकत है