शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

देहली में शेर ने मानव का शिकार किया

पिछले 2 दिनों से मिडिया टीवी ,पेपर  ,  व्हाट्स अप , फेसबुक ,ट्विटर और न जाने किस पर यह खबर सुर्खियों में रही । बहुत बुरी घटना थी । मुझे भी बड़ा दर्द हुआ। जब शेर ने मानव का भक्षण किया । स्वाभाविक है सभी लोग वीडियो देख कर ,फोटो देखकर बड़े दुखी हुए ।
एक शेर लोगो के सामने गर्दन मुह में पकड़ कर केसे एक इन्सान की जान ले ली । सुना तो यह भी था शेर शिकारी नही था । खुद 10 किलो मांस भी बड़े आलस से खाता था । मगर कुछ लोगो द्वारा पत्थर फेंकने से शेर क्रोधित हो गया और एक व्यक्ति को जान से हाथ धोना पड़ा। वेसे मिडिया अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाती है । अच्छे या बुरी हर घटना को को जन जन पहुचाने में मिडिया का बड़ा योगदान है । मिडिया लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ है । मिडिया में वो ताकत है जो ठान ले कर दिखा सकता है । एक बात जेहन में उठी की आज एक शेर के मानव भक्षण पर मिडिया ने इतना कवरेज दे दिया । जो मांसहारी प्राणी प्रकृति प्रदान है । पर एक मानव जो  मांसाहार का सेवन करता है । प्रकृति प्रदान नही है । प्रकृति ने मानव को मांसाहार की अनुमति तो प्रदान नही की है फिर भी मानव मांसाहार का सेवन करता है । कितनी निर्दोष गायो , मूक प्राणियों , मुर्गो , बकरों का वध किया जाता है । तो क्यों नही मिडिया इस बात को ज्यादा से ज्यादा विरोध दर्ज करके अपनी भूमिका निभाए । जैन धर्म व् हिन्दू धर्म में तो सभी जीवो को सन्मान दिया गया है । हिंसा तो आखिर हिंसा है । चाहे मानव की हो या मूक पशु की । आखिर बुद्धिजीवी समाज जब शिकार होता है तब कवरेज बताया जाता है और मूक पशु के लिए क्यों नही प्रतिबन्ध की मांसाहार प्रकृति प्रदत नही है । मानव किसी को मार कर अपना आहार नही बना सकता । यह विचार  मेरे अपने है । किसी को बाध्य करने के लिए नही । उत्तम जैन ( विद्रोही )

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