एक शब्द ‘लव जिहाद ‘ की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। हाल ही देहली में जैन समाज की धर्म संसद हुई जैन समाज के दिगंबर व् श्वेताम्बर दोनों समाज के धर्म गुरु उपस्थित थे ! दिगंबर संत मुनि श्री ने भी लव जिहाद से दूर रहने की समाज से अपील है ! समय के अनुसार धर्म गुरु संतो का विचार करना भी स्वागत योग्य है !यू तो यह शब्द काफी पुराना है, पर रांची के तारा और रिकाबुल हस्सन के प्रकरण ने इसे तरो और ताजा बना दिया है। लोगों के सज्ञान में आते ही, इस प्रकार के तमाम उदाहरण भी सामने आने लगे। समाज का हर वर्ग और हर मीडिया छेत्र इस के भरपूर गिरफ्त में आ गया। तथाकथित ‘सेकुलरिस्टों ‘ के द्वारा इसे अन्तर्जातीय विवाह मात्र के रूप में देखा जाता रहा है। जब कि चर्चा अंतर्जातीय विवाह को लेकर नहीं , विवाह उपरांत पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को जबरन अपने धर्म को मनवाने से है ,साथ ही विवाह के पहले छद्म रूप धारण कर, लड़की के धर्म का होने का धोखा देना आपत्ति जनक है। इस प्रकार की समस्त प्रक्रिया को ही, लव जिहाद माना गया है।
चुकी अंतर्जातीय विवाह के बाद लड़की की स्थीति ऐसी हो जाती है ,की जैसे – एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई। प्रायः इस प्रकार के विवाह सम्बन्ध बनाने के बाद लड़की का परिवार यवम उसका समाज उस लड़की से, सामाजिक मान्यताओं के कारण, सम्बन्ध लगभग समाप्त ही कर लेता है। धर्म परिवर्तन की बातों से पूरी असहमति होने के बाद भी, इन परिस्थितयों में, लड़की के पास अपने पति अथवा अपने ससुराल की बातें मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता। पत्नी पूरी तरह असहाए हो जाती है, और दूसरी तरफ इन परिस्थितयों का पूरा लाभ पति को और उसके परिवार को मिल जाता है।
तारा ने जिस तरह पूरी हिम्मत और समझदारी के साथ अपने ससुराल का विरोध किया, और वहाँ के प्रशासन को आरोपियों के प्रति कार्यवाही करने के लिए विवश कर दिया, अपने ससुराल के भारी सरूख के बावजूद, जिसमें मीडिआ की भी प्रसंसनीय भूमिका रही। इस प्रकरण ने तमाम महिलाओं को हिम्मत भी दी, और नई राह भी खोली। देखते ही देखते इस प्रकार के तमाम प्रकरण सामने आने लगे।
उपर्युक्त प्रकरण के विस्तार में जब जानकारीया एकत्र की जाने लगी, तो आश्चर्यजनक रूप से चौकाने वाले तथ्य सामने आये। सुना गया, की दुसरे सम्प्रदाय के लड़के, लड़की के सम्प्रदाय का चोला पहन कर, अपना नाम बदल कर, उन के धर्म कर्म के कार्यो में शरीक हो जाते है। अपनी पहचान पूरी तरह छुपा कर तब तक रखते है, जब तक लड़की से विवाह न हो जाय। विवाह भी लड़की के धर्म अनुरूप ही करते है । विवाह उपरांत उनकी असलियत खुलती है, तब तक देर हो चुकी होती है। अब पुरूषों का मुख्य धैय होता है, अपनी पत्नी का धर्म परिवर्तन कराकर, अपने धर्म अनूकूल विवाह करने का। लड़की स्वेम तैयार हो तो ढीक, वरन प्रताड़ित कर उसे विवश किया जाता है।
इसे हम अंतर्जातीय प्रेम विवाह का नाम कैसे दे सकते है ? यह कैसे प्रेम हो सकता है? जिस प्रेम की नींव ही धोखे ,अविश्वास व खडियंत्र पर रखी गयी हो। कहते है ‘प्रेम और युद्ध में सब जायज होता है।’ पर यहाँ तो प्रेम का कोई भी तत्व दिखता ही नहीं। यह प्रकरण, प्रेम के नाम पर एक पूरवनिर्धारित खडियंत्र ही है,और वह भी पूर्ण अमानवीय। इस प्रकरण को, मूझे नहीं लगता, कोई भी समुदाय,धर्म या समाज मान्यता दे सकेगा।
इस प्रकरण का भविष्य क्या होगा, यह तो आगे देखने की बात होगी, किन्तु इस प्रकरण ने निश्चित रूप से लड़कियों को जागरूप अवश्य किया होगा। लड़किया भी अब ‘अंधे प्रेम ‘ को ठुकरा कर दिल से ज्यादा दिमाग से प्रेम स्वीकृत करेंगी। अब लड़कियों को भ्रम में रख कर उनका लाभ उठाना इतना सरल नहीं हो सकेगा, मुझे इस का पूरा – पूरा विश्वास है। उत्तम जैन ( विद्रोही)
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