मनुष्य जन्म लेता है जन्म के साथ उनके माता पिता
की ख़ुशी व् सपने बढ़ते जाते है क्यों की संतान में माँ व् पिता को अपना
सुनहरा भविष्य नजर आता है । माँ 9 माह गर्भ में बच्चे को पालपोस कर जब
जन्म देती है । अपने आँचल से लगाकर बच्चे की दुग्धपान कराती हुई एक हर्ष की
अनुभूति करती है । क्यों की माँ का दूध बच्चे के जीवन के लिए प्रथम आहार
होता है । इसलिए तो कहा जाता है की बेटा माँ के दूध का कर्ज कभी नही उतार
सकता । जेसे जेसे बच्चा बडा होता है । माँ के सपने बड़े होते जाते
है । माँ पुत्र से कभी कोई बड़ी अपेक्षा नही रखती बस वह तो बच्चे की जिंदगी
की हर ख़ुशी देखना चाहती है । मगर अब सतयुग से कलयुग में मनुष्य वक़्त के
साथ परिवर्तित हो गया है । एक माँ के रूप में तो जिम्मेदारी पूर्ण निभाती
है । मगर बहु व् पत्नी के रूप में अपने दायित्व को निभाने में कसोटी पर खरी
नही उतर पाती है । नारी सदैव पूज्यनीय रही है मगर आज नारी का बदलता
स्वरुप सोचनीय भी है व् विचारणीय भी है । एक आदर्श पत्नी व् बहु के रूप में
आज नारी कुलषित रूप में आ गयी है । एक नारी ही है जो किसी के बेटे के
भविष्य का निर्माण भी कर सकती है और किसी के भविष्य को तहस नहस भी कर सकती
है । नारी का यह बिगड़ता स्वरुप का मुख्य कारण है अपने पीहर पक्ष की गलत
शिक्षा । मगर नारी स्वयं यह नही सोचती जिस व्यक्ति के साथ अग्नि के समक्ष 7
फेरे लेकर कसम खायी उसका अपमान सबसे बड़ा पाप है जिसे 7 जन्मों तक इस पाप
से मुक्ति नही पा सकती । नारी के माता पिता व् भाई उस समय तक ही साथ रहेंगे
। जब तक वह अपनी मर्यादा के अनुरूप पति के साथ है। जिस समय पति का साथ नही
होगा । माँ पिता हो या भाई सब खुद व् खुद दुरिया बना लेंगे । जब उसे अहसास
होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी । नारी का संम्मान उसके पति के कारन ही
होता है । मगर नारी आज इस समय अपने ईगो में स्वयं को इतना दूर ले जारही है ।
की स्वयं के सुन्दर भविष्य को अंधकारमय कर रही है । पति पत्नी एक सिक्के
के दो पहलु है । अगर पुरुष नारी के बिना अधूरा है तो नारी के लिए पुरुष भी
महत्वपूर्ण अंग है । जिसके बिना नारी का कोई अस्तित्व नही ।
उत्तम विद्रोही की कलम से
उत्तम विद्रोही की कलम से
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