पिता दिवस पर .....वेसे मे इस दिवस मनाने मे कोई विशेष रुचि नही रखता क्यूकी पिता का कर्ज इतना है की इसे एक दिवस के रूप मे मना कर इतिश्री कर लेना मेरी समझ से ठीक नही ! पिता तो परमेश्वर का वह रूप है जो कण कण मे बसे हुए है !मेरे पिता तो मेरे लिए मेरे गुरु भी है पिता भी है ओर मेरे परमेश्वर भी जिनका आज भी मुझे आशीर्वाद प्राप्त है ! जन्मदेने के साथ ही मुझे पाला पोश कर बड़ा किया ! मेरी हर जिद्ध पूरी की ! क्लास 1 से 5 तक मेरे अध्यापक भी रहे ! प्यार से पुचकारा भी तो नही पढ़ने पर छड़ी से बहुत मारा भी ! यानि पिता के रूप मे हर धर्म निभाया सदेव आशीर्वाद भी दिया ! मेरे बुरे दिनो मे मेरे सहारा भी बने ! शायद मे यह कर्ज इस जन्म मे तो क्या 7 जन्मो मे पूरा नही कर सकता ! कोई भी देश हो, संस्कृति हो माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। यदि हम हिन्दी कविता जगत व साहित्य को देखें तो माँ के ऊपर जितना लिखा गया है उतना पिता के ऊपर नहीं। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। चार पंक्तिया....
पिता ने हमको योग्य बनाया, कमा कमा कर अन्न खिलाया
पढ़ा लिखा गुणवान बनाया, जीवन पथ पर चलना सिखाया
जोड़ जोड़ अपनी सम्पत्ति का बना दिया हक़दार...
हम पर किया बड़ा उपकार....दंडवत बारम्बार...
परन्तु आज के दयनीय हालात पर कुछ समय पहले मैंने कहीं एक बूढ़े पिता की व्यथा में ये पंक्ति पढ़ी थी। बचपन में मैंने अपने चार बेटों को एक कमरे में पाला पोसा, अब इन चार बेटों के पास मेरे लिये एक कमरा भी नहीं है!!
न जाने क्यों हम इतने कठोर हो जाते हैं। वास्तविक रूप से पितृ दिवस तो आज उनके लिए है की इस दिन पर संकल्प करे कि पिता के अवदानों का स्मरण कर उन्हे जो सन्मान का कर्तव्य अदा करे !
पिता के सन्मान मे चंद पंक्तिया ----
चेहरा भले गंभीर है
अंदर से वे धीर हैं ।
कहते कम हैं सुनते सब
ऐसी कुछ तासीर है ।।
ना आये ऐसे बादल कभी
छिप ना जाए ये पितृछाया
सालों साल तक
साथ रहे ये वरदहस्त आपका
हर घड़ी सोचूँ मैं दिल में
बनी रहे यह शीतल आपकी पितृ-छाया!..........
उत्तम जैन विद्रोही
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