सोमवार, 27 जून 2016

कडवे घूंट जीवन के --

कडवे घूंट जीवन के ---
हमारी वर्तमान दशा व दिशा सिर्फ अपने कारण से होती है इस दशा मे मुख्य कारण एक चिंता व नकारात्मक भाव है !चिंताओं का विश्लेषण किया जाए तो ४०%- भूतकाल की, ५०% भविष्यकाल की तथा १०% वर्त्तमान काल की होती है ! इस स्वीकार भाव से ही हमारे भाव बदलने शुरू होते हैं। रोग का जन्म ही नकारात्मक भावनाओं में है । विकृत भाव व चिन्तन रोग के माता-पिता है । हम भावनाओं में जीते है । उन्हे बदल कर ही हम सुखी हो सकते है । आज अधिकतर लोग चिन्ता से चिन्तित रहते हैं। पिता को अपनी बेटी की शादी की चिन्ता है। एक गृहिणी को पूरा महीना घर चलाने की चिन्ता है। एक विद्यार्थी को अच्छे अंक प्राप्त करने की चिन्ता है। एक मैनेजर को अपने प्रोमोशन की चिन्ता है। एक व्यापारी को अपने व्यापार में लाभ कमाने की चिन्ता है। एक नेता को चुनाव से पहले वोट लेने और जीतने की चिन्ता है। किसी को अपनी सफलता की दावत देने की चिन्ता है।न जाने इंसान कितनी चिंताओ से ग्रसित रहता है लोगों ने जाने-अनजाने में अपनी जिम्मेदारी के साथ चिन्ता को भी जोड़ दिया है। क्या हर जिम्मेदारी के साथ चिन्ता का होना आवश्यक है? क्या चिन्ता किए बिना जिम्मेदारी का निभना संभव नहीं है? एक मां अपने बच्चे से कहती है, 'तुम्हारी परीक्षा सिर पर आ गई है, अब तो चिन्ता कर लो।' बच्चा शायद समझदार है। वह चिन्ता नहीं करता, पढ़ाई करता है और अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है। जिम्मेदारी है पॉजिटिव और चिन्ता करना है नेगेटिव। हम जब जिम्मेदारी को निभाते हैं तो हमारी ऊर्जा पॉजिटिव काम में लगती है और हमें लाभ देती है। लेकिन जब हम चिन्ता करते हैं तो हमारी ऊर्जा नेगेटिव काम में लगती है और नष्ट हो जाती है। मान लो यदि हमारी 20 प्रतिशत ऊर्जा चिन्ता में चली जाती है तो जिम्मेदारी को निभाने के लिए कितनी बची? यदि साधारण हिसाब की बात करें तो बचती है 80 प्रतिशत। लेकिन यदि हम गहराई में जाएं तो परिणाम कुछ और ही होगा। चिन्ता है नेगेटिव और जिम्मेदारी है पॉजिटिव। जब दोनों एक साथ होंगे तो एक दूसरे की विपरीत दिशा में काम करेंगे। जिस तरह 'टग ऑफ वार' खेल में दो विभिन्न समूह एक मोटे रस्से को दो विपरीत दिशाओं में खींचते हैं तो एक समूह की सामूहिक ऊर्जा, दूसरे समूह की सामूहिक ऊर्जा के साथ बराबर हो जाती है। उसके बाद जिस समूह के पास थोड़ी ऊर्जा ज्यादा बचती है, उसका पलड़ा भारी हो जाता है और वह विजयी घोषित किया जाता है। इसी तरह चिन्ता और जिम्मेदारी के मध्य भी चलता है 'टग ऑफ वार'। यदि 20 प्रतिशत ऊर्जा चिन्ता के पास है तो उसे बराबर करने के लिए 20 प्रतिशत ऊर्जा जिम्मेदारी की ओर से खर्च करनी होगी। इस तरह हमारे पास जिम्मेदारी निभाने के लिए बचती है सिर्फ 60 प्रतिशत ऊर्जा। जितनी ऊर्जा हम लगाएंगे, परिणाम भी वैसे ही आएंगे। 100 प्रतिशत ऊर्जा लगाने के परिणाम अधिक और अच्छे होंगे और 60 प्रतिशत ऊर्जा लगाने के परिणाम कम ही होंगे। लेकिन लोगों को लगता है कि काम चल जाएगा। यदि हमारी 50 प्रतिशत ऊर्जा चली गई चिन्ता की ओर तो चिन्ता शेष 50 प्रतिशत ऊर्जा भी खींच लेगी जिम्मेदारी से। और इस तरह हमारे पास अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए कोई ऊर्जा बचेगी ही नहीं। जब ऊर्जा न हो तो अच्छा से अच्छा उपकरण भी काम नहीं कर पाता। फिर हमारा दिमाग भी बिना ऊर्जा के काम कैसे कर सकता है। हम बहुत छोटी-छोटी जिम्मेदारियां भी नहीं निभा सकते और स्वयं से कहते हैं, 'ये मुझे क्या हो गया है, मेरा दिमाग ही काम नहीं कर रहा।' चिन्ता हमारी ऊर्जा को नष्ट कर देती है, जिससे हम अपनी जिम्मेदारी को निभाने में अपने आप को असमर्थ महसूस करते हैं। हम अपनी जिम्मेदारी से नाता नहीं तोड़ सकते। हमें अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए ऊर्जा चाहिए। इसलिए यह हमारी सबसे बड़ी जरूरत है कि हम अपनी ऊर्जा को चिन्ता में नष्ट होने से रोकें। हमें चिन्ता न करने का अभ्यास करना है। लेकिन कोई भी अभ्यास करने के लिए आवश्यक है अभ्यास करने का अवसर। प्रतिदिन हमारे पास अनगिनत समस्याएं आती हैं, जिनके लिए हम चिन्ता करते हैं। तो हर समस्या आने पर स्वयं से बात करें कि चिन्ता करने पर मेरी मूल्यवान ऊर्जा नष्ट हो रही है, जो मुझे नहीं करनी। सिर्फ अपने मन को इस बात की याद दिला कर भी हम अपनी काफी ऊर्जा नष्ट होने से बचा सकते हैं।
यदि आप चिन्ता मुक्त होना चाहते है तो आपको सकारात्मक विचारों को अपने जीवन में लाना पड़ेगा । चिन्ता जन्मजात नहीं होती है । ये एक आदत है जो पड़ जाती है । जब हम इस आदत को मजबूत बना लेते है तो इसको तोड़ना मुश्किल पड़ जाता है । यदि हमको पता चल जायें कि चिन्ता से डर का जन्म होता है और डर एक बहुत भयानक वस्तु है जो आपको मुर्त्यु का ग्रास बना सकती है!
उत्तम जैन (विद्रोही )

शनिवार, 25 जून 2016

पति पत्नी व पारिवारिक क्लेश -

पति पत्नी व पारिवारिक क्लेश -
रोज़-रोज़ ऐसे ही झगड़े होते रहते हैं, फिर भी पति-पत्नी को इसका हल निकालने को मन नहीं करता, यह आश्चर्य है न?
यह सारा लड़ाई-झगड़ा खुद की गरज से करते हैं। यह जानती है कि आ़खिर वे कहाँ जानेवाले हैं? वह भी समझता है कि यह कहाँ जानेवाली है? ऐसे आमने-सामने गरज से टिका हुआ है।
विषय में सुख से अधिक, विषय के कारण परवशता के दुःख है! ऐसा समझ में आने के बाद विषय का मोह छूटेगा और तभी स्त्री जाति (पत्नी) पर प्रभाव डाल सकेंगे और वह प्रभाव उसके बाद निरंतर प्रताप में परिणमित होगा। नहीं तो इस संसार में बड़े-बड़े महान पुरुषों ने भी स्त्री जाति से मार खाई थी। वीतराग ही बात को समझ पाए! इसलिए उनके प्रताप से ही स्त्रियाँ दूर रहती थीं! वर्ना स्त्री जाति तो ऐसी है कि देखते ही देखते किसी भी पुरुष को लट्टू बना दे, ऐसी उसके पास शक्ति है। उसे ही स्त्री चरित्र कहा है न! स्त्री संग से तो दूर ही रहना और उसे किसी प्रकार के प्रपंच में मत फँसाना, वर्ना आप खुद ही उसकी लपेट में आ जाएँगे। और यही की यही झंझट कई जन्मों से होती आई है।
स्त्रियाँ पति को दबाती हैं, उसकी वज़ह क्या है? पुरुष अति विषयी होता है, इसलिए दबाती हैं। ये स्त्रियाँ आपको खाना खिलाती हैं इसलिए दबाव नहीं डालतीं, विषय के कारण दबाती हैं। यदि पुरुष विषयी न हो तो कोई स्त्री दबाव में नहीं रख सकती! कमज़ोरी का ही़ फायदा उठाती हैं। यदि कमज़ोरी न हो तो कोई स्त्री परेशानी नहीं करेगी। स्त्री बहुत कपटवाली है और आप भोले! इसलिए आपको दो-दो, चार-चार महीनों का (विषय में) कंट्रोल (संयम) रखना होगा। फिर वह अपने आप थक जाएगी।
गृह कलह- आज जिधर भी दृष्टि डालिए लोग पारिवारिक जीवन से ऊबे, शोक- सन्ताप में डूबे, अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं। बहुत ही कम परिवार ऐसे होंगे जिनमें स्नेह- सौजन्य की सुधा बहती दिखाई पड़े, अन्यथा घर- घर में कलह, क्लेश, कहा- सुनी, झगड़े- टंटे, मार- पीट, रोना- धोना, टूट- फूट, बाँट- बटवारा और दरार, जिद फैली देवर- भौजाई यहाँ तक कि पति- पत्नी तथा बच्चों एवं बूढ़ों में टूट- फूट लड़ाई- झगड़ा, द्वेष- वैमनस्य तथा मनोमालिन्य उठता और फैलता दिखाई देता है। आज का पारिवारिक जीवन जितना कलुषित, कुटिल और कलहपूर्ण हो गया है कदाचित् ऐसा निकृष्ट जीवन पहले कभी भी नहीं रहा होगा।
अपने पैरों खड़े होते ही पुत्र असमर्थ माता- पिता को छोड़ कर अलग घर बसा लेता है। भाई- भाई की उन्नति एवं समृद्धि को शत्रु की आँखों से देखता है। पत्नी- पति को चैन नहीं लेने देती। बहू- बेटियाँ, फैशन प्रदर्शन के सन्निपात से ग्रस्त हो रही हैं। छोटी संतानें जिद्दी, अनुशासनहीन तथा मूढ़ बनती जा रही हैं। परिवारों के सदस्यों के व्यय तथा व्यसन बढ़ते जा रहे हैं। कुटुम्ब कबीले वाले कौटुम्बिक प्रतिष्ठा को कोई महत्व देते दृष्टिगोचर नहीं होते। निःसन्देह यह भयावह स्थिति है। परिवार टूटते, बिखरते जा रहे हैं। चिन्तनशील सद्गृहस्थ इस विषपूर्ण विषम स्थिति में शरीर एवं मन से चूर होते जा रहे हैं। गृहस्थ धर्म एक पाप बनकर उनके सामने खड़ा हो गया है। अनेक समाज हितैषी, लोकसेवी, परोपकार की भावना रखने वाले सद्गृहस्थ इस असहनीय पारिवारिक परिस्थिति के कारण अपने जीवन लक्ष्य की ओर न बढ़ सकने के कारण अपने दुर्भाग्य को धिक्कार रहे हैं। जरूरत है संयम के साधना की , अपने इगो (घमंड ) से दूर होने की , एक समर्पण की ........ देखो परिवार एक सुंदर सी बगिया के रूप मे निखर जाएगा
उत्तम जैन (विद्रोही )  

शुक्रवार, 24 जून 2016

जीवन जीने का विज्ञान

जीवन जीने का विज्ञान-----
 -24/06/216
प्राणों का एक ही सन्देश है, भौतिक संसार में आर्थिक प्रगति ही अध्यात्मिक विकास की, शांति, आनंद रूप परमात्मा को प्राप्त करने की सीढ़ी बन सकती है। आपसे कहता हूँ कि आप इसी जीवन में शांति, आनंद और इस संसार कि समस्त उपलब्धियों को प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने जीवन के अनुभव किये हुए जो महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं सिर्फ सुनें ह्रदय खोलकर , ह्रदय खोलकर सुनना ही आपको सबकुछ उपलब्ध करा देगा। आपको कोई तपस्या करने के लिये नहीं कह रहा हूँ सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि आप अपने शब्दों को सुनें, अपनी दृष्टि के माध्यम से, अपने शब्दों के माध्यम से स्वयं को अपने भीतर प्रवेश करने का अवसर दें। आपको तन मन धन तीनों प्रकार का सुख, तीनों प्रकार कि उपलब्धियां प्रदान होगी इसमें कोई संदेह नहीं है। मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुःख है कि वह आने वाले कल और बीते हुए कल के जालों में उलझा रहता है और जिंदगी में कभी वर्तमान में जीने का आनंद नहीं ले पाता है। जिसे ऋषियों ने माया कहा है वो कोई अप्सरा नहीं है, कोई सुंदरी नहीं है जो आपको उलझाये रहती है इस भंवर में, इस दुखों के जाल में। केवल आने वाला कल यानि भविष्य और बीता हुआ कल यानि भूत, ये दोनों ही आपके जीवन की ऊर्जा को नष्ट करते हैं और आप इस जिंदगी में जिसके लिये पैदा हैं वह शांति, वह आनंद और इस रूप में साक्षात् परमात्मा को नहीं प्राप्त हो पते हैं। परमात्मा तो सदैव वर्तमान में है, आनंद सदैव वर्तमान में है। अगर तुम सिर्फ वर्तमान में आ जाओ तो तुम्हारा तार आनंद से जुड़ जाता है इसलिए दुनिया में जितने धर्म हैं सबका सार है तुम कैसे वर्तमान में जी सको; सबमें इस विधि को, इस व्यवस्था को, इस विज्ञान को देने का प्रयास किया गया है। आज मैं आपसे चर्चा करना चाहता हूँ कि वर्तमान में जीना कैसे संभव है, वर्तमान में जीने का विज्ञान क्या है और वर्तमान में जीना आपको आ जाये तो कैसे आपके जीवन में क्रांति पैदा हो जाती है और आपका जीवन ऊर्जा का पुंज बन जाता है। वर्तमान में जीना ही होश में जीना है, वर्तमान में जीना ही जागे हुए जीना है, और यही सारे धर्मों का सार है।.......
उत्तम जैन विद्रोही 

बुधवार, 22 जून 2016

भारतीय युवा भटकाव की राह पर ....

आज कल युवा वर्ग जो उच्च मध्यम वर्ग का है जो आज अपनी शिक्षा के बल पर उड़ना चाहता है । उसे परिवार से यही सीखने को मिल रहा है कि चार किताबें पढ़ कर अपने career (भविष्य ) को बनाओ, यह युवा अपनी सारी ऊर्जा केवल अपने स्वार्थ या उज्जवल भविष्य के लिए लगा देता है । यदि कभी भूले भटके उसका विचार देश या समाज की तरफ जाने लगता है तो घर परिवार और समाज उसे सब भूल कर अपने भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है । यह वर्ग भी अपने आप को देश और समाज से अलग ही अनुभव या यूं कहें की अपने आपको को समाज से श्रेष्ठ समझने लगता है और सामाजिक विषमता का होना उसके अहम को पुष्ट करता है ।ओर कभी आज के युवा हताशा में गलत कदम उठा लेते है ! युवा वर्ग की हताशा देश का दुर्भाग्य है क्योंकि न तो इस वर्ग मे हम उत्साह भर सके न ही समाज के प्रति संवेदनशीलता । एक प्रकार से यह वर्ग विद्रोही हो जाता है समाज के प्रति, परिवार के प्रति और अंत में राष्ट्र के प्रति । क्या हमने सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है मुझे लगता है इसके पीछे कई वजह है , आज दुनिया भौतिकता वादी हो गयी है और लोगो की जरूरते उनकी हद से बाहर निकल रही है इसलिए उनके अंदर तनाव और फ़्रस्ट्रेशन बढ़ता जाता है , दूसरी बात पहले सयुंक्त परिवार थे तो अपनी कठिनाइया और तनाव घर में किसी ना किसी सदस्य के साथ बातचीत कर कम कर लेते थे घर में अगर कोई अकस्मात दुर्घटना हो जाती थी तो परिवार के बीच बच्चे बड़े हो जाते थे लेकिन आज न्यूक्लिअर फैमिली हो गयी है व्यक्ति को यही समझ में नहीं आता कि अपने दुःख-दर्द किसके साथ बांटे, पुरानी कहावत है कि पैर उतने ही पसारो जितनी बड़ी चादर हो लेकिन आज दूसरो की बराबरी करने के चक्कर में हम कर्ज लेकर भी अपनी हैसियत बढ़ाने की कोशिश करते है, आज के युवा वर्ग में जोश तो है पर आज के युवा को बहुत जल्दी बहुत सारा चाहिए और वो सब हासिल ना कर पाने पर डिप्रेशन में चले जाते है मेरा तो यही मानना है कि विपरीत समय और ख़राब हालात हमें जितना सिखाते है उतना हम अच्छे समय में नहीं सीख पाते इसलिए विपरीत समय को हमेशा ख़राब नहीं मानना चाहिए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में हमें धैर्य रखना चाहिए और अच्छे समय का इंतज़ार करना चाहिए क्योंकि जिंदगी में अगर अँधेरा आया है तो उजाला भी आएगा अगर रात हुयी है तो सुबह भी होगी .....उत्तम जैन (विद्रोही)

सोमवार, 20 जून 2016

योग दिवस पर विशेष -

योग दिवस पर विशेष -
अगर आप रोजाना योग करते हैं तो आपके चेहरे पर अद्धभुत प्राकृतिक चमक आती है। योग के माध्यम से शरीर में लचीलापन आता है और त्वचा स्वस्थ रहती है। पहले के दिनों में, तनाव वयस्कों की बात हुआ करता था। थकाऊ पेशेवर कार्यक्रम के कारण अक्सर वयस्कों के निजी जीवन में तनाव हो जाता है। लेकिन हाल के दिनों में तनाव तेजी से बच्चों के जीवन अपनी पैठ बनाता जा रहा है। बच्चे आजकल आउटडूर खेलों से दूर होते जा रहे हैं। स्कूल में पढ़ाई का दबाव , ट्यूशन और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण बच्चों में तनाव बढ़ता जा रहा है। योग व्यक्ति के आत्म-स्वास्थ्य, विश्राम और मन की पूर्ति के लिए बहुत फायदेमंद है। योग के माध्यम से बच्चों में तनाव की स्थिति को दूर कर उनमें आने वाले जीवन को लेकर साकारात्मक उर्जा का और अधिक संचार करने की शक्ति है।अकसर लोग योग की तुलन जिम के साथ करते हैं। लेकिन यह तुलना बिल्कुल गलत है योग शारीरिक व्यायाम से कहीं अधिक है। यह सबको एक साथ जोड़ने की कला है। यह मन और आत्मा की शांति के साथ-साथ शरीर को फिट बनाता है। जिम केवल शरीर की संरचना में सुधार लाने पर केंद्रित है जबकि योग इसके अलावा बुहत कुछ है। योग एक विद्या है, एक विज्ञान है, जसिका उद्देश्य है व्यक्तित्व में एक सकारात्मक परिवर्तन लाना, स्वयं को सदविचार, सद्व्यवहार एवं सत्कर्म से युक्त करना. उसी से जीवन में सुख, शांति और तृप्ति आती है. अगर आप कहते हो कि योग का उद्देश्य चित्तवृत्ति-निरोध है, तो क्या आप दस आसनों से, दो प्राणायामों से ऐसी योग निद्रा से, जिसमें सोते रहते हो और झपकते हुए ध्यान के अभ्यास से चित्तवृत्तियों का निरोध कर पाओगे? क्या यह संभव है?
चित्तवृत्तियों का निरोध तभी संभव होगा, जब हम अपनी ऊर्जाओं को संतुलित कर पायेंगे, अपनी इच्छाओं एवं महत्वाकांक्षाओं को व्यवस्थित कर पायेंगे, अपने ऊपर थोड़ा संयम का अंकुश रख पायेंगे.
इसीलिए योग की सभी शाखाओं में यम और नियम की चर्चा होती है. लोग व्याख्यान तो बहुत देते हैं कि योग का मतलब होता है, चित्तवृत्ति-निरोध, लेकिन जब अभ्यास की बारी आती है, तो गठिया के लिए केवल तीन-चार आसन कर लिये, दमा के लिए एक प्राणायाम का अभ्यास कर लिया, अनिद्रा की शिकायत के लिए योगनिद्रा का अभ्यास कर लिया और मन को संतुष्ट करने के लिए पांच मिनट अजपा-जप या अंतरमौन का अभ्यास कर लिया. राजयोग में ने पांच यम और पांच नियम बताये हैं, लेकिन उनका अभ्यास कोई नहीं करता. हठयोग-प्रदीपिका में दस यमों और दस नियमों की चर्चा की गयी है, लेकिन उनके बारे में कोई बात नहीं करता. मतलब हर व्यक्ति पहली और दूसरी कक्षा को छोड़ कर सीधे तीसरी कक्षा में प्रवेश करना चाहता है. इसी वजह से योग हमलोगों के जीवन में सिद्ध नहीं हो पाया है ! .......

 विश्व योग दिवस पर शुभकामना
योग करो .... निरोगी रहो
उत्तम जैन विद्रोही (प्राकृतिक चिकित्सक )

रविवार, 19 जून 2016

पिता दिवस पर .....

पिता दिवस पर .....वेसे मे इस दिवस मनाने मे कोई विशेष रुचि नही रखता क्यूकी पिता का कर्ज इतना है की इसे एक दिवस के रूप मे मना कर इतिश्री कर लेना मेरी समझ से ठीक नही ! पिता तो परमेश्वर का वह रूप है जो कण कण मे बसे हुए है !मेरे पिता तो मेरे लिए मेरे गुरु भी है पिता भी है ओर मेरे परमेश्वर भी जिनका आज भी मुझे आशीर्वाद प्राप्त है ! जन्मदेने के साथ ही मुझे पाला पोश कर बड़ा किया ! मेरी हर जिद्ध पूरी की ! क्लास 1 से 5 तक मेरे अध्यापक भी रहे ! प्यार से पुचकारा भी तो नही पढ़ने पर छड़ी से बहुत मारा भी ! यानि पिता के रूप मे हर धर्म निभाया सदेव आशीर्वाद भी दिया ! मेरे बुरे दिनो मे मेरे सहारा भी बने ! शायद मे यह कर्ज इस जन्म मे तो क्या 7 जन्मो मे पूरा नही कर सकता ! कोई भी देश हो, संस्कृति हो माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। यदि हम हिन्दी कविता जगत व साहित्य को देखें तो माँ के ऊपर जितना लिखा गया है उतना पिता के ऊपर नहीं। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। चार पंक्तिया....
पिता ने हमको योग्य बनाया, कमा कमा कर अन्न खिलाया
पढ़ा लिखा गुणवान बनाया, जीवन पथ पर चलना सिखाया
जोड़ जोड़ अपनी सम्पत्ति का बना दिया हक़दार...
हम पर किया बड़ा उपकार....दंडवत बारम्बार...
परन्तु आज के दयनीय हालात पर कुछ समय पहले मैंने कहीं एक बूढ़े पिता की व्यथा में ये पंक्ति पढ़ी थी। बचपन में मैंने अपने चार बेटों को एक कमरे में पाला पोसा, अब इन चार बेटों के पास मेरे लिये एक कमरा भी नहीं है!!
न जाने क्यों हम इतने कठोर हो जाते हैं। वास्तविक रूप से पितृ दिवस तो आज  उनके लिए है की इस दिन पर संकल्प करे कि पिता के अवदानों का स्मरण कर उन्हे जो सन्मान का कर्तव्य अदा करे !
पिता के सन्मान मे चंद पंक्तिया ----
चेहरा भले गंभीर है
अंदर से वे धीर हैं ।
कहते कम हैं सुनते सब
ऐसी कुछ तासीर है ।।
ना आये ऐसे बादल कभी
छिप ना जाए ये पितृछाया
सालों साल तक
साथ रहे ये वरदहस्त आपका
हर घड़ी सोचूँ मैं दिल में
बनी रहे यह शीतल आपकी पितृ-छाया!.......... 
उत्तम जैन विद्रोही

शनिवार, 18 जून 2016

आज की नारी का वास्तविक स्वरूप


सदियों से ही भारतीय समाज में नारी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उसी के बलबूते पर भारतीय समाज खड़ा है । नारी ने भिन्न-भिन्न रूपों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । चाहे वह सीता हो, झांसी की रानी, इन्दिरा गाँधी हो, सरोजनी नायडू हो ।सदियों से समय की धार पर चलती हुई नारी अनेक विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच जीती रही है । पूज्जा, भोग्या, सहचरी, सहधर्मिणी, माँ, बहन एवं अर्धांगिनी इन सभी रूपों में उसका शोषित और दमित स्वरूप ।जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी की सामाजिक स्थिति में फिर भी परिवर्तन ‘ना’ के बराबर हुआ है । घर बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाने वाली महिलाओं से यह पुरुष प्रधान समाज चाहता है कि वह अपने को पुरुषो के सामने दूसरे दर्जे पर समझें ।
आज की संघर्षशील नारी इन परस्पर विरोधी अपेक्षाओ को आसानी से नहीं स्वीकारती । आज की नारी के सामने जब सीता या गांधारी के आदर्शो का उदाहरण दिया जाता है तब वह इन चरित्रों के हर पहलू को ज्यों का त्यों स्वीकारने में असमर्थ रहती है । देश, काल, परिवेश और आवश्यकताओ का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व है, समाज इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता !जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे भारतीय नारी के भी कदम आगे बढ़ रहे हैं । आज वह ‘देवी’ नहीं बनना चाहतीं, वह सही और सच्चे अर्थों में अच्छा इंसान बनना चाहती है । नैतिक मूल्यों और मानवीय मूल्यों को नकारा नहीं जा सकता । हमारे पारम्परिक चरित्र नैतिक मूल्यों की धरोहर हैं । नारी घी का कुआँ है और पुरुष जलता हुआ अंगार। दोनों के संयोग से ज्वाला प्रज्वलित हो उठती है, यानी नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। नारी के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं। पुरुष के अभाव में नारी का कोई मूल्य नहीं। दोनों का सम्बन्ध अभिन्न अखण्ड और अनादि है। आदिकाल से लेकर आज तक का भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि नारी किस प्रकार जीवन के क्षेत्र में पुरुष की अभिन्न सहयोगिनी के रूप में अपने नारीत्व को दीपित करती आयी है। नारी के सहयोग के अभाव में पुरुष ने सदा एकाकीपन अनुभव किया है और जहाँ भी सहयोगिनी के रूप में नारी प्राप्त हुई है वहाँ उसने अभिनव से अभिनव सृष्टि की है। नारी की इसी प्रतिभा से पराजित हो हमारी श्रद्धा फूट पडी।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में ।
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में ।...... उत्तम विद्रोही 

जीवन की एक समस्या -

मनुष्य जन्म लेता है जन्म के साथ उनके माता पिता की ख़ुशी व् सपने बढ़ते जाते है क्यों की संतान में माँ व् पिता को अपना सुनहरा भविष्य नजर आता है । माँ 9 माह गर्भ में बच्चे को पालपोस कर जब जन्म देती है । अपने आँचल से लगाकर बच्चे की दुग्धपान कराती हुई एक हर्ष की अनुभूति करती है । क्यों की माँ का दूध बच्चे के जीवन के लिए प्रथम आहार होता है । इसलिए तो कहा जाता है की बेटा माँ के दूध का कर्ज कभी नही उतार सकता । जेसे जेसे बच्चा बडा होता है । माँ के सपने बड़े होते जाते है । माँ पुत्र से कभी कोई बड़ी अपेक्षा नही रखती बस वह तो बच्चे की जिंदगी की हर ख़ुशी देखना चाहती है । मगर अब सतयुग से कलयुग में मनुष्य वक़्त के साथ परिवर्तित हो गया है । एक माँ के रूप में तो जिम्मेदारी पूर्ण निभाती है । मगर बहु व् पत्नी के रूप में अपने दायित्व को निभाने में कसोटी पर खरी नही उतर पाती है । नारी सदैव पूज्यनीय रही है मगर आज नारी का बदलता स्वरुप सोचनीय भी है व् विचारणीय भी है । एक आदर्श पत्नी व् बहु के रूप में आज नारी कुलषित रूप में आ गयी है । एक नारी ही है जो किसी के बेटे के भविष्य का निर्माण भी कर सकती है और किसी के भविष्य को तहस नहस भी कर सकती है । नारी का यह बिगड़ता स्वरुप का मुख्य कारण है अपने पीहर पक्ष की गलत शिक्षा । मगर नारी स्वयं यह नही सोचती जिस व्यक्ति के साथ अग्नि के समक्ष 7 फेरे लेकर कसम खायी उसका अपमान सबसे बड़ा पाप है जिसे 7 जन्मों तक इस पाप से मुक्ति नही पा सकती । नारी के माता पिता व् भाई उस समय तक ही साथ रहेंगे । जब तक वह अपनी मर्यादा के अनुरूप पति के साथ है। जिस समय पति का साथ नही होगा । माँ पिता हो या भाई सब खुद व् खुद दुरिया बना लेंगे । जब उसे अहसास होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी । नारी का संम्मान उसके पति के कारन ही होता है । मगर नारी आज इस समय अपने ईगो में स्वयं को इतना दूर ले जारही है । की स्वयं के सुन्दर भविष्य को अंधकारमय कर रही है । पति पत्नी एक सिक्के के दो पहलु है । अगर पुरुष नारी के बिना अधूरा है तो नारी के लिए पुरुष भी महत्वपूर्ण अंग है । जिसके बिना नारी का कोई अस्तित्व नही । 
 उत्तम विद्रोही की कलम से

रविवार, 5 जून 2016

अज्ञान तिमिर को दूर करे

 अज्ञान तिमिर को दूर करे
वो ज्ञान की लौ फैलाते हैं
हे गुरुवर ! आपकी चरणों में
हम शत-शत शीश झुकाते हैं !
साक्षात महावीर के रूप हैं
उनके दर्शन से पाप कटे
गुरु सूर्यसागर की कृपा जिसे मिल जाये
वो पल भर में इतिहास रचे !
हे गुरुवर ! आपकी चरणों में
हम शत-शत शीश झुकाते हैं !
संघमेत्री संघ निलमेत्री शिक्षिका के
अवदानों से ज्ञान हम पाते है
एक परिवार सा महोल मिले
पाठशाला मे जब हम आते है
नीलम भाभी की भक्ति देख
हम पुलकित हो जाते है !
अब याचक बन कर हे गुरुवर !
‘विद्रोही ’ तेरे दर आया है
तुझसे विद्या धन पाने को
खाली झोली फैलाया है
जिसने भी पाया ज्ञान तेरा
सर्वत्र वो पूजे जाते हैं
हे गुरुवर ! आपकी चरणों में
हम शत-शत शीश झुकाते हैं !
हम पापी हैं और कपटी भी
सम्मान तेरा क्या कर पायें
इस योग्य भी नहीं हम गुरुवर
तुझको कुछ अर्पण कर पायें
कुछ टूटे-फूटे शब्दों में
हम तेरी महिमा गाते हैं
हे गुरुवर ! आपकी चरणों में
हम शत-शत शीश झुकाते हैं !
उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

शनिवार, 4 जून 2016

विद्रोही आवाज़ (उत्तम जैन ): विश्व पर्यावरण दिवस पर विचार --- प्रकृति से प्यार ...

विद्रोही आवाज़ (उत्तम जैन ): विश्व पर्यावरण दिवस पर विचार --- प्रकृति से प्यार ...: पर्यावरण, ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प...

विश्व पर्यावरण दिवस पर विचार --- प्रकृति से प्यार कीजिये सृजन का सुंदर सुख मिलेगा !


पर्यावरण, ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य भौतिक तत्वों - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर पर्यावरण का निर्माण हुआ हैं। यदि मानव समाज प्रकृति के नियमों का भलीभाँति अनुसरण करें तो उसे कभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं में कमी नहीं रहेगी। मनुष्य अपनी आकश्यकताओं की पूर्ति के लिए वायु, जल, मिट्टी, पेड-पौधों, जीव-जन्तुओं आदि पर निर्भर हैं और इनका दोहन करता आ रहा हैं। वर्तमान युग औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण का युग है। जहाँ आज हर काम को सुगम और सरल बनाने के लिए मशीनों का उपयोग होने लगा हैं, वहीं पर्यावरण का उल्लंघन भी हो रहा हैं। ना ही पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है और ना ही प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य तत्वों का सही मायने में उपयोग किया जा रहा हैं, परिणामस्वरूप प्रकृति कई आपदाओं का शिकार होती जा रही हैं। एक स्वच्छ वातावरण एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है। लेकिन मनुष्य के लापरवाही से हमारा पर्यावरण दिन ब दिन गन्दा होता जा रहा है। वातावरण एक प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी नामक इस ग्रह पर जीवन को विकसित, पोषित और नष्ट होने में मदद करता है। प्राकृतिक वातावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक बड़ी भूमिका निभाता है और यह मनुष्यों, पशुओं और अन्य जीवित चीजो को बढ़ने और स्वाभाविक रूप से विकसित होने में मदद करता है। लेकिन मनुष्य के कुछ बुरे और स्वार्थी गतिविधियों के कारण हमारा पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है और हर किसी को हमारे पर्यावरण को कैसे बचाया जाये और इसे सुरक्षित रखने के बारे में जानना चाहिए ताकि इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व को जारी रखने के लिए प्रकृति का संतुलन सुनिश्चित हो सके| यदि हम प्रकृति के अनुशासन के खिलाफ गलत तरीके से कुछ भी करते हैं तो ये पूरे वातावरण के माहौल जैसे की वायु-मंडल, जलमंडल और स्थलमंडल को अस्तव्यस्त करती है। प्राकृतिक वातावरण के अलावा, मानव निर्मित वातावरण भी मौजूद है जो की प्रौद्योगिकी, काम के माहौल, सौंदर्यशास्त्र, परिवहन, आवास, सुविधाएं और शहरीकरण के साथ सम्बंधित है| मानव निर्मित वातावरण काफी हद तक प्राकृतिक वातावरण को प्रभावित करता है जिसे हम सभी एकजुट होकर बचा सकते हैं| हम पृथ्वी के हर व्यक्ति के द्वारा उठाए गए छोटे कदम से बहुत ही आसान तरीके से हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं जैसे की; कचरे की मात्रा कम करना, कचरे को ठीक से उसकी जगह पर फेकना, पोली बैग का इस्तेमाल बंद करना, पुराने वस्तुओं को नए तरीके से पुन: उपयोग में लाना, टूटी हुई चीजों का मरम्मत करना और पुन: उपयोग में लाना, रिचार्जेबल बैटरी या अक्षय एल्कलाइन बैटरी का उपयोग करना, फ्लोरोसेंट प्रकाश का प्रयोग करना चाहिए, वर्षा जल संरक्षण करना, पानी की बर्बादी को कम करना, ऊर्जा संरक्षण करना, और बिजली का कम से कम उपयोग इत्यादि| पर्यावरण प्रदूषण हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे की सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक और बौद्धिक को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। पर्यावरण का दूषितकरण कई रोगों को लाता है जिससे इंसान पूरी जिंदगी पीड़ित हो सकता है। यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है, बल्कि ये पुरे दुनिया की समस्या है जो की किसी एक के प्रयास से खत्म नहीं हो सकता। अगर इसका ठीक से निवारण नहीं हुआ तो ये एक दिन जीवन का अस्तित्व खत्म कर सकता है। तो आओ हम पर्यावरण सुरक्षा करे ! आज हम संकल्प ले !
उत्तम जैन (विद्रोही ) 

शुक्रवार, 3 जून 2016

मेेरी शादी की साल गिरह पर शुभकामना प्रेषित करने आप सभी का आभार

मेेरी शादी की साल गिरह पर आप सभी का मैं आभार प्रकट करता हूँ ----इस दिवस को आप सबने अपने प्यार से यादगार बना दिया ..आपके स - स्नेह का तहे दिल से शुक्रियां अदा करता हूँ --यह प्यार हमेशा बनाए रखना यही इल्तजा करता हूँ :-----सुबह से ही कॉल, व्हाट्स एप सन्देश, फेसबुक स्टेटस के माध्यम से आदरणीयजनों, मित्रो, साथियों, सगे संबंधियों द्वारा आशीष/स्नेह/बधाई/शुभकामना प्रेषित करने का सिलसिला शुरू हो चूका था । जिसके लिए आपका आभार एवं धन्यवाद। खैर, आज का दिन ही है जो मुझे जीवन में हर्ष-उल्लास-उमंग के साथ नवरंग से जीने की प्रेरणा देता है।
मुझसे शुरू होती हैं मेरी हमसफर के जीवन की हर खुशियाँ !
मुझ पर ही ख़त्म होती हैं उनकी इच्छा और रंगीनियाँ !
ऐसे जीवन साथी को रब ने मुझ पर वार दिया --!
दुनियां की हर रस्म निभाकर ,
जब उनसे नाता जोड़ा था ,
क्या पता था जीवन के इस अग्नि -पथ पर --
अंगारों से भरी जमीं होगी ,
और झुलसता आसमान होगा,
पर हमसफर के साथ ने हर मुश्किल को आसान किया --!
यह सिर्फ आप सभी दुआओ , गुरु का आशीर्वाद व माँ व पिता का वरदहस्त व मेरे सकरात्मक विचारो के परिणाम स्वरूप ( नही तो मे मेरी पूर्व पत्नी के देहांत के बाद पूरा टूट चुका था ) आज जीवन के 46 वे बसंत मे अपनी हमसफर के साथ 5 वी शादी की साल गिरह खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हु ! की आप सभी की दुआये / आशीर्वाद मेरे साथ है ! फिर से मे व मेरी हमसफर ममता की तरफ से आभार ज्ञापित करता हु !
उत्तम जैन (विद्रोही )