सोमवार, 25 जनवरी 2016

गणतन्त्र दिवस पर शुभकामना ... खरी बात


26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के अवसर पर विद्रोही आवाज व मेरी तरफ  से सभी पाठको व मित्रो को हार्दिक शुभकामनाये. गणतन्त्र दिवस यह दिन इतिहास में एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि 26 जनवरी सन 1929 वाले दिन ही रावी नदी के तट पर लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था और सन 1930 में लोगो ने देश को आज़ाद करवाने का संकल्प लिया था और अपने प्राणों की आहुति देने का प्रण किया था.लोगो ने अपना प्रण पूरा किया. 15 अगस्त सन 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और 26 जनवरी सन 1950 को हमारे देश में अपना संविधान लागू हुआ. भारत को इस संविधान के अनुसार गणराज्य घोषित किया गया और यह दिन प्रति वर्ष गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.! हमें अपने सारे राष्ट्रीय पर्व बड़े उत्साह से मनाने चाहिए और अपने देश की रक्षा की प्रतिज्ञा करनी चाहिए. हमें अपने देश के संविधान के प्रति हमेशा वफादार रहना चाहिए. यह दिन भारत के लिए बहुत ही पवित्र दिन है. इससे हमें देश-भक्ति की प्रेरणा मिलती है ! आप सभी को गणतन्त्र दिवस पर बहुत बहुत शुभकामना !
गणतन्त्र दिवस पर कुछ खरी बात आपसे .....
पिछले वर्षो  में भारत बहुत बदला है ! भारत को गणतंत्र हुए 67  साल हो गये हैं। इन 67 सालों में हमने जो सोचा, जिस सोच से आगे बढ़े थे वो सोच पीछे रह गई है। गणतंत्र का अर्थ होता है हमारा संविधान - हमारी सरकार- हमारे कर्त्तव्य - हमारा अधिकार। हमारा संविधान हमें बोलने का व अपने विचार रखने का अधिकार देता है।  क्या सरकार तभी कुछ कदम उठाती है जब उस पर अथवा किसी वर्ग पर उंगली उठे। और वो भी तब जब चुनाव हों।  यह कैसा गणतंत्र? हमारे छोटे से छोटे कार्य में भी भ्रष्टाचार का तंत्र इस कदर हावी है कि हमें "गलत" व "सही" का एहसास ही नहीं हो पाता चाहें यह "सिस्टम" के कारण हो अथवा हमारे निजी स्वार्थ के कारण। यह भ्रष्टाचार रग रग में बस चुका है।व्यवस्था की अनदेखी भी नहीं की जा सकती है। व्यवस्था में लगातार सुधार की गुंजाईश  है।  एक आंदोलन की आवश्यकता है। आज अजब सा विरोधाभास है। गणतंत्र दिवस उस संविधान के लिये है जिसके तहत जनता और सरकार दोनों में विश्वास पैदा होता है पर पिछले कुछ वर्षो  में इतना सब हुआ कि जनता का सरकार व राजनैतिक दलों के ऊपर से विश्वास उठ गया है। यह चिन्ता का विषय है। पर इसमें अच्छाई यह भी कि शायद नेता व दल इन कुछ समझेंगे। और क्या हम भी समझेंगे?जागरुकता की आवश्यकता है। मजहब व जाति से ऊपर उठकर देशधर्म अपनाने की आवश्यकता है। प्रेम की आवश्यकता है। यह देश असल में गणतंत्र तभी हो पायेगा जब हर नागरिक अपना कर्त्तव्य निभायेगा और दूसरे के अधिकारों की पूर्ति होगा। और तभी हम सर उठाकर स्वयं को गणतंत्र घोषित कर सकेंगे।
जय हिन्द
वन्देमातरम
उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक
विद्रोही आवाज
vidrohiawaz@gmail.com

लोकतन्त्र को शर्मसार कर रहे है नेता

विद्रोही के विचारो का पुलिंदा.. खरी बात
लोकतन्त्र को शर्मसार कर रहे है नेता
कई बड़े दल के नेता जनता के सेवक के रूप में नहीं बड़बोले के रूप में पेश आते है ! अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हैं। जनता ऐसे नेताओं को पहचान ले तभी देश राज्य का कल्याण हो सकता है। वो बोलते हैं तो जहर बोते हैं. वो जुबान खोलते हैं तो आग उगलते हैं और कई बार तो उनकी लड़ाई गली-मोहल्ले के झगड़ों को भी शर्मसार कर दे. ऐसे नेताओं की एक पूरी फौज है जो अपने बयानों से हर आए दिन रोज लोकतंत्र को शर्मसार करते है ! घोटालों की एक के बाद एक परते खुलती रहती है। देश की जनता के साथ किये गये छल से पूरा राष्ट्र स्तब्ध हो भी जाए किन्तु लूटेरों के मन में लेशमात्र भी भय नहीं होता है न ग्लानि होती हैं। अपने कृत्य पर पछतावा का तो सवाल ही नही उठता है। वे अपनी हेकड़ी से प्रत्येक जांच रिपोर्ट को अस्वीकार कर संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करते हैं ! कोई सार्थक बहस भी नहीं चाहते, वरन पलटकर उसे भी अपने साथ कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। देश की न्यायप्रणाली में उनकी आस्था नहीं है। न्यायालय के निर्देशों की जानबूझ कर अवमानना करने में उन्हें कोई संकोच नहीं है। किसी भी लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में ऐसी स्थिति को दुर्भाग्यजनक स्थिति ही माना जा सकता है।उन्हें इस देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की कोई चिंता नहीं है। इन दोनों को उन्होंने अपनी स्वाथपूर्ति के लिए साधन मात्र मान रखा है। अब भारतीय जनता को जागरुक हो कर उन्हें रोकना होगा, अन्यथा राष्ट्र एक दुष्चक्र में फंस जायेगा। जिनकी नीयत में खोट हैं, अत: हमे यह भूलना होगा कि हम किस धर्म को मानते हैं और हमारी क्या जाति है। यह भी भूलना होगा कि हम किस प्रान्त में रहते हैं। हमे इन्हे चुनते समय सिर्फ याद रखना होगा कि हम भारतीय है और हमे अपने लोकतंत्र की रक्षा करनी है। संगठित हो कर उन्हें ही चुनना है, जो पात्रता रखें। जो लोकतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता को नष्ट करने का प्रयास नहीं करें। दरअसल, वे हमारी दुर्बलताओं का लाभ उठा कर ही सफल होते है। देश के संसाधनों के लूटने के मकसद से देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपने नियंत्रण में कर लेते है। हम सभी भारतीय नागरिकों को संगठित हो कर उनके कुत्सित इरादों को निष्फल करने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि अपराधी पर यदि अंकुश नहीं लगा पायेंगे तब वह ज्यादा आक्रामक हो जायेगा ।
उत्तम जैन (विद्रोही )

रविवार, 24 जनवरी 2016

आत्महत्या दलित की या पिछड़े की.... सोचनीय विषय

विद्रोही के विचारो का पुलिंदा.. खरी बात
आत्महत्या दलित की या पिछड़े की.... सोचनीय विषय
हिंदुस्तान हमारा एक इकलोता देश है, जहाँ अन्तिम संस्कार करने के पहले मृतक की जाति पता की जाती है। हैदराबाद में एक छात्र ने आत्महत्या क्या की, जाति की राजनीति पूरे देश में गरमा गई। अब इसे राजनेताओ की सक्रियता कहु या मोके की तलाश ! कुछ आग मे घी डालने का काम हमारे लोकतन्त्र के चतुर्थ स्तम्भ इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडिया ने छात्र को दलित बताकर धर्मयुद्ध छेड़ दिया। सारे नेताओं को अपनी-अपनी राजनीति चमकाने का एक स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो गया। देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ गई। जो महानुभाव बुद्धिजीवी असहिष्णुता के नाम पर अपना पुरस्कार वापस नहीं कर पाए थे, वे आगे आ गए। अच्छा भी है उनकी सक्रियता को लाख लाख नमन ! मीडिया ने खबर दी कि आत्महत्या करने वाला छात्र दलित नहीं, पिछड़े वर्ग का था। कोई और यह खुलासा करता, तो उसे आर.एस.एस. या स्मृति इरानी का एजेन्ट करार दिया जाता, लेकिन दुर्भाग्य से यह रहस्य रोहित वेमुला के सगे पिता वेमुला मणि कुमार ने किया है। रोहित दलित नहीं था, बल्कि पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का था फिर उसने कैसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हांसील किया यह भी विचारणीय है ! यह एक आपराधिक मामला है जिसपर मुकदमा चलाया जा सकता है। यह मालूम करना अत्यन्त आवश्यक है कि इस फ़र्जीवाड़े में कौन-कौन शामिल थे और कितने लोगों ने अनुसूचित जाति का फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र बनवाकर वास्तविक दलितों के अधिकार पर डाका डाला है। अपने देश में किसी की हत्या या आत्महत्या के विरोध या सहानुभूति में आँसू बहाने की मात्रा और विधान भी पूर्व निर्धारित है। अगर मृतक मुसलमान है तो दोनों आँखों से घड़ियाली मुसलाधार बारिश की तरह आँसू बहाना अनिवार्य है ! फिर होती है मुआवजे की मांग ओर मांग के पहले घोषणा करने वालो की तो कतार लग जाती है ! मृतक अगर उच्च श्रेणी ( मेरी मान्यता नही राजनेताओ की मान्यता ) का है तो उसका संबन्ध हिंदुवादी संगठन से जोड़ हत्या करने वाले या आत्महत्या के लिए उकसाने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा। रोहित के पिता के खुलासे के बाद बहुत से नेताओ को रोटी सेकने का मोका नही मिला तो चुप्पी साध ली है जेसे उनकी बोलती ही बंद हो गयी वेसे गूंगे हो गए ! उनमे मुख्य केजरीवाल, राहुल, नीतीश, ममता, ओवैसी को भी आप ले सकते है !अब नाम बदलकर तथा फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र बनाकर दलितों के अधिकारों और सुविधाओं पर खुली डकैती डाली थी उसका क्या यह तो मेरी ओर सभी के समझ से परे है !
उत्तम जैन (विद्रोही )

शनिवार, 23 जनवरी 2016

जैन धर्म ओर अल्पसंख्यकवाद की राजनीति

मेरे विचारो का पुलिंदा ---- खरी बात
जैन समाज अल्पसंख्यक घोषित हो गए ! जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित करना न केवल हिंदू समाज को बांटने का अक्षम्य अपराध है अपितु भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना भी है ! अंग्रेज  १९४७ में भारत का विभाजन करते समय भारत की जमीन का विभाजन ही कर सके थे । वे हिन्दू समाज के दिलों को कभी नहीं बांट सके थे । मेरे अध्ययन के मुताबिक मा. सर्वोच्च न्यायालय नें २००५ में स्पष्ट रूप से कहा था कि अल्पसंख्यकवाद देश के हित में नहीं है  तथा इसको शीघ्र ही समाप्त करना चाहिए । उन्होंने यह दायित्व केंद्र सरकार के साथ-साथ अल्पसंख्यक आयोग पर भी डाला था और यह अपेक्षा की थी कि वे देश में इस घातक विष को फैलने से रोकेंगे । जस्टिस लाहोटी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पीठ ने यह स्पष्ट निर्णय दिया था कि  इन दोनों को” ऐसी सामाजिक परिस्थतियों को विकसित  करना चाहिए जिससे अल्पसंख्यक वर्ग की सूची में से धीरे -धीरे विविध धर्मावलम्बियों का नाम हटाया जा सके और अंततः इस सूची को ही समाप्त किया जा सके । ” किसी भी अन्य पंथ को उन्होनें केन्द्रीय सूची में डालने से स्पष्ट मना कर दिया था । यह ध्यान रखना चाहिए कि यह निर्णय जैन समाज के ही कुछ कथित नेताओं की अपील पर ही दिया गया था । परन्तु यह देश का दुर्भाग्य है कि देश की एकता को मजबूत करने का जिनका दायित्व था वे ही देश व् समाज को विघटन की ओर ले जा रहे हैं  । संविधान में अल्प्संख्यकों के लिये कुछ सुविधाएं दी गई हैं। इन सुविधाओं की सूची सुरसा के मूंह की तरह बढती जा रही हैं। लक्ष्य मुस्लिम वोट बैंक है, परन्तु इन सुविधाओं को कुछ  अन्य समाजों के कुछ लोग अपने   निहित स्वार्थों की पूर्ती के लिये अपने समाज के लोगों को बरगला कर अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने की होड में लग गये  । जैन समाज से पहले आर्य  समाज, राम कृष्ण मिशन, गोरक्ष सम्प्रदाय आदि भी इस दौड में शामिल हुए थे। इनमें से कुछ पक्ष तो ऐसे हैं जिनकी स्थापना का लक्ष्य हिंदू समाज की रक्षा करना ही था। ये सुविधाएं भारत को छोड कर किसी भी समाज में नहीं हैं। विश्व में सब जगह अल्पसंख्यकों को समान अधिकारों का संघर्ष तो चलता है, विशेषाधिकार तो केवल भारत में ही दिये जाते हैं। इसी का दुष्परिणाम है कि  हिंदू कहलाने में जिनको गर्व होना चाहिये था , अब वे उससे अलग होने के लिये छटपटा रहे हैं। यदि यही चलता रहा तो कौन अपने को हिंदू कहेगा? शायद यही इन समाजतोडक राजनीति करने वालों का लक्ष्य भी है। बात यहीं तक नहीं रुकेगी। इसके  बाद देश से अलग होने में भी कुछ लोगों को अगर फायदा मिला तो इसमें भी वे संकोच नहीं करेंगे। शायद जस्टिस लाहोटी की चेतावनी साकार रूप ले लेगी। अब तो सरकार को इस समाज तोडक नीति से तौबा करनी चाहिये और जो सुविधाएं वे केवल अल्पसंख्यकों को दे रही है वे सबके लिये दे, यही देशहित में है।जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित करने पर मिलने  वाले लाभों की जो मृगमरीचिका दिखाई जा रही है , उस पर भी विचार करना होगा । जैन समाज के मंदिरो और शिक्षण संस्थाओं में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा यह कहा जा रहा है । क्या इस पर विचार किया गया है कि अभी तक कितना हस्तक्षेप होता है या कितने जैन मंदिरों का अधिग्रहण हुआ हैं? जैन विद्यार्थियों को जैन संस्थाओं में आरक्षण या छात्रवृत्तियों की बात की जा रही है । क्या इतने मात्र के लिए भारत का सबसे समृद्ध समाज अपनी जड़ों से कटकर अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनना पसंद करेगा ? यह एक स्थापित तथ्य है कि अपने शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जैन समाज को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं समस्त हिंदू समाज की सदभावना व् विश्वास   ही चाहिए जो उसके पास पहले से है । मेरे विचार शायद जैन समाज के किसी भाई को बुरा लगे पर सत्य को झुठलाया नही जा सकता ! क्षमायाचना
उत्तम जैन विद्रोही
प्रधान संपादक
विद्रोही आवाज सूरत 

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

राजनीतिक बयान से सामाजिक प्रभाव

मेरे विचारो का पुलिंदा ---- खरी बात
ज़ख्म पर नमक छिड़कते हुए तमाम राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आते हैं.! हर जगह कोई घटना घटित हुई नही की उसको भुनाने के प्रयास तेजी से होने लगते है !, वगैर इस बात की परवाह किये कि ऐसे मुद्दों पर राजनीति करने से सामाजिक विभाजन का खतरा और बढ़ेगा ही, जो अंततः सबके लिए घातक साबित होगा! घटना के अपराधियों को हर हाल में कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, चाहे वो हिन्दू हो मुस्लिम हो या किसी भी संप्रदाय का लेकिन उन लोगों का कृत्य कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता है, जिन्होंने किसी भी घटना को माध्यम बनाकर सामाजिक सदभावना को नफरत में बदलने का प्रयास करते है.! समाज में रंजिश की घटनाएं होती रही हैं, दबंग और अपराधिक प्रवृत्ति के लोग अपने से कमजोरों को सताते रहे हैं, सत्ता भी इसमें यदा कदा शामिल होती रही है, किन्तु इससे पूरे समाज पर प्रश्नचिन्ह किस प्रकार उठाया जा सकता है और अगर समाज पर प्रश्नचिन्ह उठता है तो तमाम सामाजिक संगठन क्या कर रहे हैं और उनकी क्या जवाबदेही है?कभी लोग मुझ पर टिप्पणी करते है उत्तम विद्रोही को लिखना ही विरोधाभाषी पर मे कहूँगा मेरे विचार विद्रोही जरूर है मगर सदभावना , सामनजस्य का पक्षधर हु ओर रहूँगा आज के नेता अपनी अपनी गोटियां बिछाकर राजनीतिक चालें जरूर चलते हैं. ! हालाँकि, राजनीति अपनी आदतों से बाज आएगी, इसकी आशा करना कोरी आदर्शवादिता ही होगी.! सामाजिक संगठनों की भूमिका पर जरूर बात होनी चाहिए. वैसे देखा जाय तो तमाम महासभाएं, जातीय संगठन अपने वर्ग को मजबूत करने के बजाय दूसरी जातियों से विभेद पैदा करने में लगी रहती हैं. यही नहीं, यह तमाम सामाजिक संगठन राजनीतिक पार्टियों के पिछलग्गू भी हैं, शहद के पास भिनभीनाती मधुमखी भी जिसके कारण जरूरत के समय इस प्रकार के संगठनों की भूमिका शून्य हो जाती है.!सामाजिक संगठनों का प्रभाव समाज पर क्यों शून्य है और क्यों राजनीतिक पार्टियां इनको मुट्ठी में बंद किये हुए हैं. भारत जैसे विविधता भरे समाज में अगर सामाजिक संगठन अपना रोल ठीक से निभाएं ओर समाज की सोच राजनीति से ऊपर आये और तब राजनीतिज्ञों को लोगों की लाश पर रोटियां सेंकने का मौका नहीं मिलेगा! इसके लिए सबसे जरूरी बात यही है कि सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठनों के पिछलग्गू होने की भूमिका से बाहर निकलें और अपने समाज को अनुशासित, विकसित और सक्षम करने की भूमिका का निर्वहन करें, लेकिन किसी एक घटना पर एक समाज दुसरे समाज से भिड़ने को तैयार हो जाता है. ऐसे में भेद पैदा करने वाली राजनीति से न्याय की उम्मीद कोई करे भी तो कैसे ! ....जरूरत है सामाजिक संगठनो व समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होकर राजनीतिक मकडजाल से निकल सदभावना आपसी सामनजस्य के साथ समाज देश की सेवा तन मन धन से करनी चाहिए !
उत्तम जैन विद्रोही
सूरत
vidrohiawaz@gmail.com

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

नेताओ की गंदी राजनीति देश को ले डूबेगी


सांप्रदायिकता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दल खूब शोर करते हैं….सभी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताकर विपक्षी पार्टियों को सांप्रदायिकता से जोड़ते हैं…कुछ राजनेता तो बकायदा जहर उगलते हैं..कोई किसी संगठन को आतंकी से जोड़ता है तो कोई नेता विपक्षी पार्टियों पर आतंकवादियों और नक्सलवादियों का सहयोग औऱ समर्थन करने की बात करते हैं..कोई राजनीतिक दल आतंकी संगठन के नाम पर धार्मिक संगठनों पर पाबंदी लगाने की मांग करते हैं..। ये सब इसीलिए होता है क्योंकि इन नेताओं को मुसलिम वोट चाहिए..मुसलिम वोट लेने के लिए कुछ राजनीतिक दल हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं..और ऐसा वोट लेने के समय पर ही अक्सर होता है…ऐसा नहीं है लोगों के विरोध के बाद फिर विवादित नहीं देखने को मिलेंगे..। इन जनसेवक राजनेताओं को कौन समझाए कि वे जो बोल रहे हैं वह भी किसी सांप्रदायिक बयान से कम नहीं..जो कभी भी दंगा को भड़का सकता है..। ऐसे लोगों को धार्मिक सदभाव को बनाए रखने के लिए कम से कम मर्यादा में रहना चाहिए..।मेरे समझ से कोई भी राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष नहीं है..। सभी जाति-धर्म और क्षेत्रवाद के नाम पर राजनीत कर रहे हैं..। ऐसा तब दिखता है जब कोई पार्टी किसी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है तो सबसे पहले उसकी जाति-धर्म औऱ फिर क्षेत्रियता को देखती है..। अब समय आ गया है कि आम आदमी धर्म-जाति औऱ क्षेत्रवाद के ऊपर उठकर वोट करे और ईमानदार नेता का चुनाव करे..। अक्सर देखा जाता है कि राजनीति में ज्यादातर सांसद औऱ विधायक दागी होते हैं और यही लोग सरकार में मंत्री बनते हैं…। कुछ पार्टियां अपनी नाकामी पर परदा डालने की कोशिश कर रही है..। ये पार्टियां सांप्रदायिकता के नाम पर नेता जनता को धोखा देने का काम रही हैं..। हिंदू-मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को वोट के लिए बांटने की कोशिश की जा रही है..। भ्रष्टाचार खूब चरम पर है और महंगाई से जनता की कमर टूट रही है लेकिन जनता का ध्यान बांटने के लिए कभी गरीबी की परिभाषा देकर नया बखेड़ा खड़ा किया जाता है तो कभी जनता को राहत के नाम पर झुनझुना पकड़ा दिया जाता है..। वर्तमान में बहुत कम ही नेता है जो जमीनी समस्याएं से दो-चार हैं और जनता की सुनते हैं..। नेताओं को अपना उल्लू सीधा करने के लिए कई नखरे आते है…चुनाव के दौरान लोग गरीब औऱ किसान का बेटा बन जाते हैं चुनाव जीतने के बाद कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं…।
उतम जैन (विद्रोही )

आज की राजनीति व राजनीतिज्ञ

मेरे विचारो का पुलिंदा ---- खरी बात

 जिस तरह से हमारे नेता ईमानदार अफसरों और सैनिकों के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं, वह न केवल निंदनीय है, बल्कि भर्त्सना के योग्य है। विडंबना है कि देश को ईमानदार कर्मचारियों, कर्तव्यनिष्ठ अफसरों व देशभक्त सैनिकों की आवश्यकता है, वहीं हमारे ये सफेदपोश नेता भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हुए हैं। अगर यही हाल रहा, तो अंदरुनी समस्याओं के अलावा चीन और पाकिस्तान अपने षडय़ंत्र में सफल होकर हमारे देश में अशांति फैला सकते हैं, जिन सबका परिणाम यह होगा कि देश का विकास थम जाएगा। आज हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हो चुका है। जबकि हमारे नेता गरीबी के सच्चे-झूठे आंकड़े पेश कर रहे हैं और अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति हो रही है। एक गठबंधन सत्ता बचाने में जुटा है, तो दूसरा सत्ता हासिल करने में। लेकिन किसी के पास जनता और देश के हित में कोई नीति नहीं है। राजनीतिज्ञ  तुष्टीकरण की नीति अपनाकर लोगों को अकर्मण्य बना रहे  है। अक्सर अर्थ, धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर किसी खास वर्ग को पिछड़ा बताकर उन्हें मुफ्त राशन, पानी, बिजली, मकान आदि देना, यह नहीं तो और क्या है? जब लोगों की निर्भरता सरकार पर बढ़ने लग जाती है, तो उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होता है। इसके बाद सरकार का एक गुट बाकी जनता को यह कहता है कि सब हाशिये पर रह रहे लोगों के चलते हो रहा है। उसके बाद जन-कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की जाती है। यह सब समाज में गैर-बराबरी और वैमनष्य को बढ़ाने जैसा ही है। अपराधी व गुंडे राजनीति में आए और बड़े पदों पर पहुँचे और जो उनसे अपेक्षित था, आज वही देश की पूरी राजनीति में हो रहा था ओर हो रहा  है. आज कोई मूल्य नहीं हैं. कुछ गिनती के लोग अच्छे भी हैं पर हद यह हो गई है कि आज जब कोई  गांधी टोपी पहनकर निकलता है ! तो हर कोई  कहते हैं कि देखो साला बेईमान नेता जा रहा है ! अफसोस आज के नेता की साख इतनी गिर गयी ! वेसे साख गिर नही गयी नेताओ ने स्वयं गिराई है आज के चंद राजनीतिज्ञो ने उन्हे भोली जनता को बहला फुसला कर , कुछ आपसी फुट डाल कर या सामाजिक प्रलोभन देकर ओर  इन्हे भारतीय जनता की कमजोरी जो समझ गया वह सच्चा राजनीतिज्ञ है !  कुछ नेता कई सीटों से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में, अगर वह एक से अधिक सीटों पर जीतते हैं, तो छह महीने के अंदर उन्हें एक छोड़कर बाकी सीटें छोड़नी पड़ती है। इसके बाद खाली सीट के लिए फिर चुनाव होता है, जिसमें जनता का पैसा खर्च होता है। इसलिए यह भारतीय चुनाव प्रणाली की खामी की तरह है और इस पर रोक लगनी चाहिए। अगर आज तक के चुनावी इतिहास को देखें, तो कई सौ करोड़ रुपये इस कारण खर्च हो गए हैं। अगर कोई व्यक्ति खुद को नेता मानता है, तो उसे जनता का भरोसा हासिल करने के लिए एक ही जगह से खड़ा होना चाहिए। मैं सरकार, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से गुजारिश करता हूं कि वे एक सीट से दावेदारी का प्रावधान लागू करें।
उत्तम जैन विद्रोही     

बुधवार, 20 जनवरी 2016

क्यों धारहीन हो रहा है कलम और केमरा


हम आए दिन लोग मीडिया व  इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वश्नियता पर सवाल खड़ा करते  है। कुछ मीडियाकर्मी काफी पैसेवाले हो गए। कुछ ने तो आपने चैनल खोल लिए। इस देश में केवल नेता और अधिकारी ही नहीं लोकतंत्र का कथित चौथा स्तम्भ भी भ्रष्टाचार से दूर नहीं है। मीडिया अथवा पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। लेकिन वर्त्तमान परिदृश्य में वह अपनी दिशा खोता जा रहा है। पत्रकारिता का मतलब केवल समाचार देना ही नहीं होता अपितु समाज को जाग्रत करना तथा मार्गदर्शन देना भी होता है। देश की मीडिया को इस बात से कोई मतलब नहीं है की महंगाई क्यों बढ़ रही है और कौन इसके लिए जिम्मेदार हैं। स्वास्थ्य  के नाम पर जनता को लूटा जा रहा है। शिक्षा दुकानों में बदलती जा रही है। महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे बनाते जा रहें हैं। और तो और मीडिया संस्थानों में भी भूमाफिया, तस्कर, दलालों तथा अवैध धंधों में लिप्त लोग अपना दखल बढ़ाते जा रहें हैं।पत्रकारिता के नाम पर उगाही हो रही है। इस सबके पीछे एकमात्र कारण यह है कि पत्रकार ने लिखना और पढना छोड़ दिया है। उसे न तो सामाजिक सरोकारों सेमतलब है और न ही देश की भलाई से। क्या मीडिया को यह पता नहीं है कि एक भूमाफिया अचानक कैसे समाज का सम्मानित आदमी बन गया? एक अदना सा नेता कैसे करोड़ों से खेल रहा है? एक अदना सा नेता कैसे करोड़ों से खेल रहा है? कैसे सरकारी धन की लूट होरही है? किस प्रकार सरकारी ज़मीनों पर मंदिर और मजारों के नाम पर कब्जे हो गए? किस तरह शहर का माना हुआ गुंडा विधायक और संसद बन गया? गरीबों के राशन को पचा कर कैसे लोग समाज के प्रतिष्ठित आदमी बन गए? सरकारी धन से बनने वाली ईमारत और सड़क कैसे इतनी ज़ल्दी जर्जर हो जाती है? संसद और विधायक निधि का पैसा कैसे स्कूल और कालेज रुपी निजी दुकानों में मोटी रिश्वतदेकर पचाया जा रहा है? अफसोस तो इस बात का है कि मीडिया लोगों को जागरूक करने के स्थान पर अन्धविश्वासी बना रहा है। कीर्तन और भजन तथा भविष्य फलके नाम पर अज्ञानता की और धकेल रहा है। इसीलिए अभी भी समय है की मीडिया अपनी असली भूमिका के बारे में आत्मचिंतन करे, अपने दायित्व को पहचाने अन्यथा उसकी गिरती विश्वसनीयता उसे गर्त में पहुंचा देगी ! नही तो आज जनमानस के दबे मुह पर एक  पत्रकारिता ओर वेश्या की तुलना की जाती है उसे झुठला  भी नही सकते !बड़ा अटपटा लग रहो होगा आपको यह बात  आप अपने मन में सोच रहे होंगे कि किसी वेश्यागामी अथवा वेश्या के बारे में यह प्रश्न किया जा रहा है। लेकिन आज की सच्चाई है कि हम कितने संवेदनशून्य हो गए हैं कि हमें हर आदमी कि पहचान कोठे से करने कि आदत पड़ गई है।यह हालत हैं देश के पत्रकारिता जगत की । कभी आपने उत्कर्ष पर इठलाता यह देश अब अपनी बेवशी पर आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ करने में अपने को असमर्थ पा रहा है। पहले जो लोग पत्रकार को उनको अपना आराध्य समझते थे। कहीं भी मिल जाएँ तो उनको प्रणाम करना अपना धर्म समझते थे। अख़बारों सेव पत्रकारिता धर्म से  विरत होने पर गधे के सर से सींग कि तरह गायब हो गए हैं। अब लोग प्रयास करते हैं कि भूले-भटके भी उनसे इनका आमना-सामना न हो। आखिर बाजारवाद और भौतिकवाद का यही तो जहर समूचे समाज की शिरायों में प्रवाहित हो रहा है कि जो अनुपयोगी है। उसे लिफ्ट मत दो। यानी यूज एंड थ्रो ही तो आज कि कटु सच्चाई है। वह कहते हैं कि कभी अकस्मात ऐसे लोग मिल भी जाएँ तो इन लोगों का पहला प्रश्न होता है कि गुरु आजकल कहाँ हो ? अर्थात किस कोठे की वेश्या हो। क्या आपकी पत्रकारिता का व्यवसाय ठीक तो चल रहा है !   क्या पत्रकारिता एक व्यापार है  ? ऐसे प्रश्न संवेदनशील लोगों को उद्वेलित कर देते हैं। ऐसे ही जिन पत्रकार जिनका इस क्षेत्र में दशकों का तजुर्बा रहा है। पहले उनके मोबाईल की घंटी हर समय निरंतर बजती रहती थी। अब लगता है कि वह घंटी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई कि तरह मौन हो गई है। कई समाजसेवी तथा राजनैतिक लोगों के अपकर्ष व् उत्कर्ष के साक्षी रहे इस पत्रकार को भी यही शिकायत है। पहले जो लोग गर्मजोशी से मिलते थे लेकिन अब मिलने से कतराते हैं। क्या यही पत्रकारीता के साथ होता रहेगा
उत्तम जैन (विद्रोही ) 

शनिवार, 16 जनवरी 2016

. आयुर्वेद मे सात्विक , राजसिक व तामसिक आहार


भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

मेरे जन्म दिन पर आप सभी दोस्तों का मैं आभार प्रकट करता हूँ

मेरे जन्म दिन पर आप सभी दोस्तों का मैं आभार प्रकट करता हूँ ----इस दिवस को आप सबने अपने प्यार से यादगार बना दिया ..आपके स - स्नेह का तहे दिल से शुक्रियां अदा करता हूँ --यह प्यार हमेशा बनाए रखना यही अपेक्षा करता हूँ :-- आज मन में यह ख्‍याल आ रहा है कि खुशियां मनाऊं या गम....? आज जन्‍मदिन है मेरा। उम्र एक साल बढ गई.... या कम हो गई....., क्‍या कहूं, क्‍या समझूं। वैसे जन्‍मदिन को उत्‍साह के रूप में मनाया जाता है। जश्‍न किया जाता है इस दिन...... पर क्‍या दूसरा पहलू यह नहीं कि जितनी उम्र ऊपरवाले ने लिखी है उसमें एक साल कम हो गए.........! खैर...... जीवन जितना भी है, उसे उत्‍साह के साथ जीना चाहिए, और ये कोशिश मैं हमेशा करता हूं। उम्र कम हुई या बढी इस चिंता को छोड ये तो सोचा ही जा सकता है आज के दिन कि अब तक क्‍या खोया और क्‍या पाया....? काफी कुछ पाया है तो काफी कुछ खोया भी है मैंने अपने अब तक के सफर में। जन्‍मदिन पर आज एक बार फिर आंखे नम हो गई हैं, उसे याद कर जिसने मुझे इस दुनिया में लाया। मेरी मां व मेरे पिता । मैं दुनिया में उनसे सबसे ज्‍यादा प्‍यार करता हूं और सुबह उठने के साथ ही माँ व पिता का आशीर्वाद लिया ! ............ माँ पिता का आशीर्वाद मेरे चार धाम कि यात्रा का सहज अनुभव हुआ ! मेरी स्वर्गस्थ पत्नी कुसुम को मेने हमेशा साथ महसूस किया है !उसका प्यार हर जन्मदिन पर ही नही हर पल महसूस करता हु ! मेरे बच्चे व मेरी पत्नी ममता का प्यार भी मुझे हर पल एक नयी खुशी प्रदान करती है ! किसी महापुरूष ने कहा है, हम जब पैदा होते हैं तो हम रोते रहते हैं पर सारी दुनिया हंसती है, हमें अपने जीवनकाल में ऐसे काम करने चाहिए कि जब हम मरें तो हम हंसते रहें पर सारी दुनिया रोए........। आप सबकी दुआएं चाहिए कि मैं अपने जीवन में ऐसे कर्म कर सकूं........। रात्रि को ही गुरुदेव ने कॉल व ऑडियो के माध्यम से आशीर्वाद प्रदान किया ! मेरे लिए इससे बड़ा क्या आशीर्वाद हो सकता है ओर आज फेसबूक पर व्हट्स अप पर व कॉल द्वारा मुझे बहुत से मित्रो , भाईयो , बहनो , सखीयो , मेरे अनुज व अग्रज आदरणीय ने शुभकामना प्रेषित की उन्हे मे जबाव नही दे पाया इस संदेश के माध्यम से सभी का आभार ज्ञापित करता हु !
जन्‍मदिन के अवसर पर अपनी एक पुरानी कविता प्रस्‍तुत कर रहा हूं....
मेरे जीवन का
एक वर्ष और
बीत गया....,
धूमिल छवि
जिसकी
है मेरे पास.....।
थोडी खुशियां, थोडे गम
कहीं जीत, कहीं हार
यही तो है,
जिनके साए में
कट जाती है
जिंदगी.......।
एक स्‍वच्‍छंद आकाश
और है मेरे पास,
जिसमें लिखना है
मुझे अपना कल,
अपना आने वाला कल
उस कल को
खुशगवार बनाएगी
तुम्‍हारी,
सिर्फ तुम्‍हारी
दुआएं ......................आपका अपना
उत्तम जैन (विद्रोही )
प्रधान संपादक
विद्रोही आवाज