भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.
भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.