सांप्रदायिकता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दल खूब शोर करते हैं….सभी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताकर विपक्षी पार्टियों को सांप्रदायिकता से जोड़ते हैं…कुछ राजनेता तो बकायदा जहर उगलते हैं..कोई किसी संगठन को आतंकी से जोड़ता है तो कोई नेता विपक्षी पार्टियों पर आतंकवादियों और नक्सलवादियों का सहयोग औऱ समर्थन करने की बात करते हैं..कोई राजनीतिक दल आतंकी संगठन के नाम पर धार्मिक संगठनों पर पाबंदी लगाने की मांग करते हैं..। ये सब इसीलिए होता है क्योंकि इन नेताओं को मुसलिम वोट चाहिए..मुसलिम वोट लेने के लिए कुछ राजनीतिक दल हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं..और ऐसा वोट लेने के समय पर ही अक्सर होता है…ऐसा नहीं है लोगों के विरोध के बाद फिर विवादित नहीं देखने को मिलेंगे..। इन जनसेवक राजनेताओं को कौन समझाए कि वे जो बोल रहे हैं वह भी किसी सांप्रदायिक बयान से कम नहीं..जो कभी भी दंगा को भड़का सकता है..। ऐसे लोगों को धार्मिक सदभाव को बनाए रखने के लिए कम से कम मर्यादा में रहना चाहिए..।मेरे समझ से कोई भी राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष नहीं है..। सभी जाति-धर्म और क्षेत्रवाद के नाम पर राजनीत कर रहे हैं..। ऐसा तब दिखता है जब कोई पार्टी किसी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है तो सबसे पहले उसकी जाति-धर्म औऱ फिर क्षेत्रियता को देखती है..। अब समय आ गया है कि आम आदमी धर्म-जाति औऱ क्षेत्रवाद के ऊपर उठकर वोट करे और ईमानदार नेता का चुनाव करे..। अक्सर देखा जाता है कि राजनीति में ज्यादातर सांसद औऱ विधायक दागी होते हैं और यही लोग सरकार में मंत्री बनते हैं…। कुछ पार्टियां अपनी नाकामी पर परदा डालने की कोशिश कर रही है..। ये पार्टियां सांप्रदायिकता के नाम पर नेता जनता को धोखा देने का काम रही हैं..। हिंदू-मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को वोट के लिए बांटने की कोशिश की जा रही है..। भ्रष्टाचार खूब चरम पर है और महंगाई से जनता की कमर टूट रही है लेकिन जनता का ध्यान बांटने के लिए कभी गरीबी की परिभाषा देकर नया बखेड़ा खड़ा किया जाता है तो कभी जनता को राहत के नाम पर झुनझुना पकड़ा दिया जाता है..। वर्तमान में बहुत कम ही नेता है जो जमीनी समस्याएं से दो-चार हैं और जनता की सुनते हैं..। नेताओं को अपना उल्लू सीधा करने के लिए कई नखरे आते है…चुनाव के दौरान लोग गरीब औऱ किसान का बेटा बन जाते हैं चुनाव जीतने के बाद कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं…।
उतम जैन (विद्रोही )
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