विद्रोही के विचारो का पुलिंदा.. खरी बात
आत्महत्या दलित की या पिछड़े की.... सोचनीय विषय
हिंदुस्तान हमारा एक इकलोता देश है, जहाँ अन्तिम संस्कार करने के पहले मृतक की जाति पता की जाती है। हैदराबाद में एक छात्र ने आत्महत्या क्या की, जाति की राजनीति पूरे देश में गरमा गई। अब इसे राजनेताओ की सक्रियता कहु या मोके की तलाश ! कुछ आग मे घी डालने का काम हमारे लोकतन्त्र के चतुर्थ स्तम्भ इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडिया ने छात्र को दलित बताकर धर्मयुद्ध छेड़ दिया। सारे नेताओं को अपनी-अपनी राजनीति चमकाने का एक स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो गया। देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ गई। जो महानुभाव बुद्धिजीवी असहिष्णुता के नाम पर अपना पुरस्कार वापस नहीं कर पाए थे, वे आगे आ गए। अच्छा भी है उनकी सक्रियता को लाख लाख नमन ! मीडिया ने खबर दी कि आत्महत्या करने वाला छात्र दलित नहीं, पिछड़े वर्ग का था। कोई और यह खुलासा करता, तो उसे आर.एस.एस. या स्मृति इरानी का एजेन्ट करार दिया जाता, लेकिन दुर्भाग्य से यह रहस्य रोहित वेमुला के सगे पिता वेमुला मणि कुमार ने किया है। रोहित दलित नहीं था, बल्कि पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का था फिर उसने कैसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हांसील किया यह भी विचारणीय है ! यह एक आपराधिक मामला है जिसपर मुकदमा चलाया जा सकता है। यह मालूम करना अत्यन्त आवश्यक है कि इस फ़र्जीवाड़े में कौन-कौन शामिल थे और कितने लोगों ने अनुसूचित जाति का फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र बनवाकर वास्तविक दलितों के अधिकार पर डाका डाला है। अपने देश में किसी की हत्या या आत्महत्या के विरोध या सहानुभूति में आँसू बहाने की मात्रा और विधान भी पूर्व निर्धारित है। अगर मृतक मुसलमान है तो दोनों आँखों से घड़ियाली मुसलाधार बारिश की तरह आँसू बहाना अनिवार्य है ! फिर होती है मुआवजे की मांग ओर मांग के पहले घोषणा करने वालो की तो कतार लग जाती है ! मृतक अगर उच्च श्रेणी ( मेरी मान्यता नही राजनेताओ की मान्यता ) का है तो उसका संबन्ध हिंदुवादी संगठन से जोड़ हत्या करने वाले या आत्महत्या के लिए उकसाने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा। रोहित के पिता के खुलासे के बाद बहुत से नेताओ को रोटी सेकने का मोका नही मिला तो चुप्पी साध ली है जेसे उनकी बोलती ही बंद हो गयी वेसे गूंगे हो गए ! उनमे मुख्य केजरीवाल, राहुल, नीतीश, ममता, ओवैसी को भी आप ले सकते है !अब नाम बदलकर तथा फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र बनाकर दलितों के अधिकारों और सुविधाओं पर खुली डकैती डाली थी उसका क्या यह तो मेरी ओर सभी के समझ से परे है !
उत्तम जैन (विद्रोही )
आत्महत्या दलित की या पिछड़े की.... सोचनीय विषय
हिंदुस्तान हमारा एक इकलोता देश है, जहाँ अन्तिम संस्कार करने के पहले मृतक की जाति पता की जाती है। हैदराबाद में एक छात्र ने आत्महत्या क्या की, जाति की राजनीति पूरे देश में गरमा गई। अब इसे राजनेताओ की सक्रियता कहु या मोके की तलाश ! कुछ आग मे घी डालने का काम हमारे लोकतन्त्र के चतुर्थ स्तम्भ इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडिया ने छात्र को दलित बताकर धर्मयुद्ध छेड़ दिया। सारे नेताओं को अपनी-अपनी राजनीति चमकाने का एक स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो गया। देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ गई। जो महानुभाव बुद्धिजीवी असहिष्णुता के नाम पर अपना पुरस्कार वापस नहीं कर पाए थे, वे आगे आ गए। अच्छा भी है उनकी सक्रियता को लाख लाख नमन ! मीडिया ने खबर दी कि आत्महत्या करने वाला छात्र दलित नहीं, पिछड़े वर्ग का था। कोई और यह खुलासा करता, तो उसे आर.एस.एस. या स्मृति इरानी का एजेन्ट करार दिया जाता, लेकिन दुर्भाग्य से यह रहस्य रोहित वेमुला के सगे पिता वेमुला मणि कुमार ने किया है। रोहित दलित नहीं था, बल्कि पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का था फिर उसने कैसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हांसील किया यह भी विचारणीय है ! यह एक आपराधिक मामला है जिसपर मुकदमा चलाया जा सकता है। यह मालूम करना अत्यन्त आवश्यक है कि इस फ़र्जीवाड़े में कौन-कौन शामिल थे और कितने लोगों ने अनुसूचित जाति का फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र बनवाकर वास्तविक दलितों के अधिकार पर डाका डाला है। अपने देश में किसी की हत्या या आत्महत्या के विरोध या सहानुभूति में आँसू बहाने की मात्रा और विधान भी पूर्व निर्धारित है। अगर मृतक मुसलमान है तो दोनों आँखों से घड़ियाली मुसलाधार बारिश की तरह आँसू बहाना अनिवार्य है ! फिर होती है मुआवजे की मांग ओर मांग के पहले घोषणा करने वालो की तो कतार लग जाती है ! मृतक अगर उच्च श्रेणी ( मेरी मान्यता नही राजनेताओ की मान्यता ) का है तो उसका संबन्ध हिंदुवादी संगठन से जोड़ हत्या करने वाले या आत्महत्या के लिए उकसाने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा। रोहित के पिता के खुलासे के बाद बहुत से नेताओ को रोटी सेकने का मोका नही मिला तो चुप्पी साध ली है जेसे उनकी बोलती ही बंद हो गयी वेसे गूंगे हो गए ! उनमे मुख्य केजरीवाल, राहुल, नीतीश, ममता, ओवैसी को भी आप ले सकते है !अब नाम बदलकर तथा फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र बनाकर दलितों के अधिकारों और सुविधाओं पर खुली डकैती डाली थी उसका क्या यह तो मेरी ओर सभी के समझ से परे है !
उत्तम जैन (विद्रोही )
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