मेरे विचारो का पुलिंदा ---- खरी बात
जिस तरह से हमारे नेता ईमानदार अफसरों और सैनिकों के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं, वह न केवल निंदनीय है, बल्कि भर्त्सना के योग्य है। विडंबना है कि देश को ईमानदार कर्मचारियों, कर्तव्यनिष्ठ अफसरों व देशभक्त सैनिकों की आवश्यकता है, वहीं हमारे ये सफेदपोश नेता भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हुए हैं। अगर यही हाल रहा, तो अंदरुनी समस्याओं के अलावा चीन और पाकिस्तान अपने षडय़ंत्र में सफल होकर हमारे देश में अशांति फैला सकते हैं, जिन सबका परिणाम यह होगा कि देश का विकास थम जाएगा। आज हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हो चुका है। जबकि हमारे नेता गरीबी के सच्चे-झूठे आंकड़े पेश कर रहे हैं और अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति हो रही है। एक गठबंधन सत्ता बचाने में जुटा है, तो दूसरा सत्ता हासिल करने में। लेकिन किसी के पास जनता और देश के हित में कोई नीति नहीं है। राजनीतिज्ञ तुष्टीकरण की नीति अपनाकर लोगों को अकर्मण्य बना रहे है। अक्सर अर्थ, धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर किसी खास वर्ग को पिछड़ा बताकर उन्हें मुफ्त राशन, पानी, बिजली, मकान आदि देना, यह नहीं तो और क्या है? जब लोगों की निर्भरता सरकार पर बढ़ने लग जाती है, तो उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होता है। इसके बाद सरकार का एक गुट बाकी जनता को यह कहता है कि सब हाशिये पर रह रहे लोगों के चलते हो रहा है। उसके बाद जन-कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की जाती है। यह सब समाज में गैर-बराबरी और वैमनष्य को बढ़ाने जैसा ही है। अपराधी व गुंडे राजनीति में आए और बड़े पदों पर पहुँचे और जो उनसे अपेक्षित था, आज वही देश की पूरी राजनीति में हो रहा था ओर हो रहा है. आज कोई मूल्य नहीं हैं. कुछ गिनती के लोग अच्छे भी हैं पर हद यह हो गई है कि आज जब कोई गांधी टोपी पहनकर निकलता है ! तो हर कोई कहते हैं कि देखो साला बेईमान नेता जा रहा है ! अफसोस आज के नेता की साख इतनी गिर गयी ! वेसे साख गिर नही गयी नेताओ ने स्वयं गिराई है आज के चंद राजनीतिज्ञो ने उन्हे भोली जनता को बहला फुसला कर , कुछ आपसी फुट डाल कर या सामाजिक प्रलोभन देकर ओर इन्हे भारतीय जनता की कमजोरी जो समझ गया वह सच्चा राजनीतिज्ञ है ! कुछ नेता कई सीटों से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में, अगर वह एक से अधिक सीटों पर जीतते हैं, तो छह महीने के अंदर उन्हें एक छोड़कर बाकी सीटें छोड़नी पड़ती है। इसके बाद खाली सीट के लिए फिर चुनाव होता है, जिसमें जनता का पैसा खर्च होता है। इसलिए यह भारतीय चुनाव प्रणाली की खामी की तरह है और इस पर रोक लगनी चाहिए। अगर आज तक के चुनावी इतिहास को देखें, तो कई सौ करोड़ रुपये इस कारण खर्च हो गए हैं। अगर कोई व्यक्ति खुद को नेता मानता है, तो उसे जनता का भरोसा हासिल करने के लिए एक ही जगह से खड़ा होना चाहिए। मैं सरकार, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से गुजारिश करता हूं कि वे एक सीट से दावेदारी का प्रावधान लागू करें।
उत्तम जैन विद्रोही
जिस तरह से हमारे नेता ईमानदार अफसरों और सैनिकों के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं, वह न केवल निंदनीय है, बल्कि भर्त्सना के योग्य है। विडंबना है कि देश को ईमानदार कर्मचारियों, कर्तव्यनिष्ठ अफसरों व देशभक्त सैनिकों की आवश्यकता है, वहीं हमारे ये सफेदपोश नेता भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हुए हैं। अगर यही हाल रहा, तो अंदरुनी समस्याओं के अलावा चीन और पाकिस्तान अपने षडय़ंत्र में सफल होकर हमारे देश में अशांति फैला सकते हैं, जिन सबका परिणाम यह होगा कि देश का विकास थम जाएगा। आज हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हो चुका है। जबकि हमारे नेता गरीबी के सच्चे-झूठे आंकड़े पेश कर रहे हैं और अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति हो रही है। एक गठबंधन सत्ता बचाने में जुटा है, तो दूसरा सत्ता हासिल करने में। लेकिन किसी के पास जनता और देश के हित में कोई नीति नहीं है। राजनीतिज्ञ तुष्टीकरण की नीति अपनाकर लोगों को अकर्मण्य बना रहे है। अक्सर अर्थ, धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर किसी खास वर्ग को पिछड़ा बताकर उन्हें मुफ्त राशन, पानी, बिजली, मकान आदि देना, यह नहीं तो और क्या है? जब लोगों की निर्भरता सरकार पर बढ़ने लग जाती है, तो उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होता है। इसके बाद सरकार का एक गुट बाकी जनता को यह कहता है कि सब हाशिये पर रह रहे लोगों के चलते हो रहा है। उसके बाद जन-कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की जाती है। यह सब समाज में गैर-बराबरी और वैमनष्य को बढ़ाने जैसा ही है। अपराधी व गुंडे राजनीति में आए और बड़े पदों पर पहुँचे और जो उनसे अपेक्षित था, आज वही देश की पूरी राजनीति में हो रहा था ओर हो रहा है. आज कोई मूल्य नहीं हैं. कुछ गिनती के लोग अच्छे भी हैं पर हद यह हो गई है कि आज जब कोई गांधी टोपी पहनकर निकलता है ! तो हर कोई कहते हैं कि देखो साला बेईमान नेता जा रहा है ! अफसोस आज के नेता की साख इतनी गिर गयी ! वेसे साख गिर नही गयी नेताओ ने स्वयं गिराई है आज के चंद राजनीतिज्ञो ने उन्हे भोली जनता को बहला फुसला कर , कुछ आपसी फुट डाल कर या सामाजिक प्रलोभन देकर ओर इन्हे भारतीय जनता की कमजोरी जो समझ गया वह सच्चा राजनीतिज्ञ है ! कुछ नेता कई सीटों से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में, अगर वह एक से अधिक सीटों पर जीतते हैं, तो छह महीने के अंदर उन्हें एक छोड़कर बाकी सीटें छोड़नी पड़ती है। इसके बाद खाली सीट के लिए फिर चुनाव होता है, जिसमें जनता का पैसा खर्च होता है। इसलिए यह भारतीय चुनाव प्रणाली की खामी की तरह है और इस पर रोक लगनी चाहिए। अगर आज तक के चुनावी इतिहास को देखें, तो कई सौ करोड़ रुपये इस कारण खर्च हो गए हैं। अगर कोई व्यक्ति खुद को नेता मानता है, तो उसे जनता का भरोसा हासिल करने के लिए एक ही जगह से खड़ा होना चाहिए। मैं सरकार, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से गुजारिश करता हूं कि वे एक सीट से दावेदारी का प्रावधान लागू करें।
उत्तम जैन विद्रोही
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