विद्रोही के विचारो का पुलिंदा.. खरी बात
लोकतन्त्र को शर्मसार कर रहे है नेता
कई बड़े दल के नेता जनता के सेवक के रूप में नहीं बड़बोले के रूप में पेश आते है ! अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हैं। जनता ऐसे नेताओं को पहचान ले तभी देश राज्य का कल्याण हो सकता है। वो बोलते हैं तो जहर बोते हैं. वो जुबान खोलते हैं तो आग उगलते हैं और कई बार तो उनकी लड़ाई गली-मोहल्ले के झगड़ों को भी शर्मसार कर दे. ऐसे नेताओं की एक पूरी फौज है जो अपने बयानों से हर आए दिन रोज लोकतंत्र को शर्मसार करते है ! घोटालों की एक के बाद एक परते खुलती रहती है। देश की जनता के साथ किये गये छल से पूरा राष्ट्र स्तब्ध हो भी जाए किन्तु लूटेरों के मन में लेशमात्र भी भय नहीं होता है न ग्लानि होती हैं। अपने कृत्य पर पछतावा का तो सवाल ही नही उठता है। वे अपनी हेकड़ी से प्रत्येक जांच रिपोर्ट को अस्वीकार कर संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करते हैं ! कोई सार्थक बहस भी नहीं चाहते, वरन पलटकर उसे भी अपने साथ कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। देश की न्यायप्रणाली में उनकी आस्था नहीं है। न्यायालय के निर्देशों की जानबूझ कर अवमानना करने में उन्हें कोई संकोच नहीं है। किसी भी लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में ऐसी स्थिति को दुर्भाग्यजनक स्थिति ही माना जा सकता है।उन्हें इस देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की कोई चिंता नहीं है। इन दोनों को उन्होंने अपनी स्वाथपूर्ति के लिए साधन मात्र मान रखा है। अब भारतीय जनता को जागरुक हो कर उन्हें रोकना होगा, अन्यथा राष्ट्र एक दुष्चक्र में फंस जायेगा। जिनकी नीयत में खोट हैं, अत: हमे यह भूलना होगा कि हम किस धर्म को मानते हैं और हमारी क्या जाति है। यह भी भूलना होगा कि हम किस प्रान्त में रहते हैं। हमे इन्हे चुनते समय सिर्फ याद रखना होगा कि हम भारतीय है और हमे अपने लोकतंत्र की रक्षा करनी है। संगठित हो कर उन्हें ही चुनना है, जो पात्रता रखें। जो लोकतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता को नष्ट करने का प्रयास नहीं करें। दरअसल, वे हमारी दुर्बलताओं का लाभ उठा कर ही सफल होते है। देश के संसाधनों के लूटने के मकसद से देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपने नियंत्रण में कर लेते है। हम सभी भारतीय नागरिकों को संगठित हो कर उनके कुत्सित इरादों को निष्फल करने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि अपराधी पर यदि अंकुश नहीं लगा पायेंगे तब वह ज्यादा आक्रामक हो जायेगा ।
उत्तम जैन (विद्रोही )
लोकतन्त्र को शर्मसार कर रहे है नेता
कई बड़े दल के नेता जनता के सेवक के रूप में नहीं बड़बोले के रूप में पेश आते है ! अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हैं। जनता ऐसे नेताओं को पहचान ले तभी देश राज्य का कल्याण हो सकता है। वो बोलते हैं तो जहर बोते हैं. वो जुबान खोलते हैं तो आग उगलते हैं और कई बार तो उनकी लड़ाई गली-मोहल्ले के झगड़ों को भी शर्मसार कर दे. ऐसे नेताओं की एक पूरी फौज है जो अपने बयानों से हर आए दिन रोज लोकतंत्र को शर्मसार करते है ! घोटालों की एक के बाद एक परते खुलती रहती है। देश की जनता के साथ किये गये छल से पूरा राष्ट्र स्तब्ध हो भी जाए किन्तु लूटेरों के मन में लेशमात्र भी भय नहीं होता है न ग्लानि होती हैं। अपने कृत्य पर पछतावा का तो सवाल ही नही उठता है। वे अपनी हेकड़ी से प्रत्येक जांच रिपोर्ट को अस्वीकार कर संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करते हैं ! कोई सार्थक बहस भी नहीं चाहते, वरन पलटकर उसे भी अपने साथ कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। देश की न्यायप्रणाली में उनकी आस्था नहीं है। न्यायालय के निर्देशों की जानबूझ कर अवमानना करने में उन्हें कोई संकोच नहीं है। किसी भी लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में ऐसी स्थिति को दुर्भाग्यजनक स्थिति ही माना जा सकता है।उन्हें इस देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की कोई चिंता नहीं है। इन दोनों को उन्होंने अपनी स्वाथपूर्ति के लिए साधन मात्र मान रखा है। अब भारतीय जनता को जागरुक हो कर उन्हें रोकना होगा, अन्यथा राष्ट्र एक दुष्चक्र में फंस जायेगा। जिनकी नीयत में खोट हैं, अत: हमे यह भूलना होगा कि हम किस धर्म को मानते हैं और हमारी क्या जाति है। यह भी भूलना होगा कि हम किस प्रान्त में रहते हैं। हमे इन्हे चुनते समय सिर्फ याद रखना होगा कि हम भारतीय है और हमे अपने लोकतंत्र की रक्षा करनी है। संगठित हो कर उन्हें ही चुनना है, जो पात्रता रखें। जो लोकतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता को नष्ट करने का प्रयास नहीं करें। दरअसल, वे हमारी दुर्बलताओं का लाभ उठा कर ही सफल होते है। देश के संसाधनों के लूटने के मकसद से देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपने नियंत्रण में कर लेते है। हम सभी भारतीय नागरिकों को संगठित हो कर उनके कुत्सित इरादों को निष्फल करने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि अपराधी पर यदि अंकुश नहीं लगा पायेंगे तब वह ज्यादा आक्रामक हो जायेगा ।
उत्तम जैन (विद्रोही )
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