रविवार, 10 मई 2015

कोनसी माँ--माँ तो अपराधिन की तरह सर झुकाए एक तरफ कटघरे में खड़ी है

आज मातृ दिवस है, वेसे फेसबूक , व्हट्स अप पर सुबह से शुभकामना संदेश  माँ के लिए स्तुति, गुणगान और श्रद्धांजलियाँ आ रही हैं ,कोई अपनी मृत माँ के लिए मिस यू माँ तो कोई खुद  श्रवण कुमार साबित करने मे लगा है ! अच्छा  भी जन्मदायनी माँ के लिए अपने व्यस्त समय से एक दिन के चंद मिनिट तो माँ के नाम ओर माँ की स्तुति के लिए निकले ! पर उत्तम विद्रोही का एक सवाल का जबाव दीजिये -   लेकिन माँ है कहाँ.................. ? माँ शब्द प्रकृति का अनमोल शब्द था ! आज इस मातृत्व प्रेम पर मुझे तो प्रकृति आँसू बहाते नजर आ रही है ! माँ  तो अपराधिन की तरह सर झुकाए एक तरफ कटघरे में खड़ी है क्यू की आज की माँ का  अपराध भी बहुत बड़ा है ! वह है  स्वजाति की भ्रूण हत्या का अपराध , स्वयं के मातृत्व हनन का अपराध लेकिन अपना समाज कितना दरियादिल है, माँ माँ की स्तुति चीख से मेरे कान बहरे हो गए है आज समाज से मे एक  सवाल  पूछता हु !क्यों उस औरत को डायन नहीं कहा जाता...........? क्यों उसका सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जाता क्यों उसके लिए दुराचारिणी, व्यभिचारिणी या कुलटा जैसा कोई नाम नहीं गढ़ा जाता ? यह तो एक सामाजिक साजिश है उसको पदच्युत करने की उसके गरिमामई स्थान से जरा सोचकर देखिये -- क्या एक ही दिन में हो जाती है कन्या भ्रूण की हत्या ...................? अत्याधुनिक सोनोग्राफी  मशीन भी साढ़े तीन महीने लेती हैं बंधुओ  ....| अरे ! लोगों की रसोई की छोंक का  दूसरे के परिवार मे होने वाली शर्मसार  घटना का भी हिसाब रखने वाला   दोगला, हमारा समाज क्या ये जान भी नहीं पता की किस घर में अजन्मा शिशु दस्तक दे रहा फिर अचानक कैसे मार दिया जाता है वह अजन्मा भ्रूण.............कन्या बचाओ, बेटी बचाओ , नारी बचाओ, स्त्री बचाओ के नारे लगाने वाला यह समाज क्यों नहीं धिक्कारता उस माँ को जो स्वयं के मातृत्व की हत्या की जिम्मेदार होती है ? मगर क्योंकि – आज का समाज  अच्छी तरह जानता है की उसके सारे आंसू घडियाली हैं ! हमारा दो मुंहा समाज जानता है की जिस दिन वो माँ अपनी बेटी के भविष्य को लेकर कुछ  सवाल समाज के मुहं पर करेगी ! यह  समाज का मुंह नही खोल पाएगा  | पाएगा भी केसे क्यूकी आज समाज नपुसंक जो हो गया  है !क्या ये समाज एक माँ को ये आश्वासन दे सकता है की पार्क में खेल रही उसकी बेटी दरिंदो द्वारा कभी नोंच कर खाई नहीं जाएगी ? क्या उसकी किशोर होती बेटी बस में , ट्रेन में, मेट्रो में और पब्लिक प्लेस पर अनचाही दृष्टि और घिनौने स्पर्श का सामना नहीं करेगी ? कितने नाजों से पली उसकी बेटी विदा करने के बाद अपने अधूरे स्वप्न और डोली सहित चिता दहेज़ की चिता में नहीं झोंक दी जाएगी ? ऐसी अनेक मौते हैं जो सिर्फ बेटियों को ही उनके बड़े होने से पहले दे दी जाती हैं क्या इससे बेहतर नहीं है की उन्हें गर्भ में ही मार दिया जाए? आप ही बताइए ? कितने प्रतिशत बेटियों को मिलता है पिता की सम्पति में हिस्सा? क्यों स्त्रीधन कहकर दहेज़ के नाम पर खर्च किये जाने वाला धन दो परिवारों की झूठी शानो शौकत की भेंट चढ़ जाता है ? एक और छोटी सी पर बहुत बड़ी बात क्यों नहीं बन पायी वह आज तक अपनी संतान का प्रथम अभिभावक ? सवालों की श्रंखला बहुत लम्बी है उत्तम विद्रोही अगर लिखने लगेगा घंटो, महीनो व वर्षो तक लिखता ही रहेगा   इस पर |  ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं जो हत्यारी माँ द्वारा समाज से पूछे जा सकते हैं | तभी तो अपनी बेटी की हत्या कर के भी क्षम्य है वो माँ, हमारे विशाल ह्रदय समाज द्वारा हत्यारी मा की ममता पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता मेरा समाज के ठेकेदारों से अनुरोध है की बंद करो घडियाली आंसू, झूठी चिंता और नारेबाजी यह वास्तव में चिंता का नही चिंतन का विषय है, बेटियों को एक भय मुक्त सामाजिक वातावरण देने का विषय है, फिर देखना कैसे खड़ी हो जाती है माँ अपनी बेटियों की हत्या को रोकने के लिए लेकिन तब तक घटने दो स्त्री धन  की संख्या | जब इस नर का तथाकथित पुंसत्व खतरे मैं पड़ेगा, जब लगेगा की द्रौपदी की परंपरा पुनर्जीवित करनी पड़ेगी तब समाज की वास्तविक इच्छाशक्ति जागेगी, तब रुकेगा ये महापाप पर परंतु  तब तक आप हमें मातृ दिवस  पर बधाइयों स्तुतियों और श्रद्धांजलियों के लिए क्षमा करे ये हम में अपराध बोध जगाता है जब तक किसी एक भी माँ के सर पर उसकी अजन्मी बेटी की हत्या का अपराध होगा तब तक मातृ दिवस बेमानी है निरर्थक है
उत्तम जैन (विद्रोही )

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