आज मेरे पुत्र प्रतीक का जन्मदिन है .... पिता व पुत्र ओर दायित्व
किशोर उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी पहचान का
संकट। पहले से ही पहचान के संकट से जूझते बच्चे को सख्ती और अनुशासन पसंद नहीं आता
है। अपने और बच्चों के बीच थोड़ी दूरी भी बनाकर रखें। बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात की
जासूसी नहीं करें। फोन पर यदि वह आपको देखकर अचानक चुप हो जाए तो समझ जाएँ कि उसे प्रायवेसी
चाहिए। उसकी प्राइवेसी की कद्र करें।बदलते समय के बदलते दौर में अब पिता की
छवि बदल गई है। आज पिता अपने बच्चों के लिए न केवल प्रेरणास्रोत बने हैं बल्कि
जीवन में ऐसा मूलमंत्र दे रहे हैं जिसे जपकर उनके बच्चे कामयाबी की नई इबारतें लिख
रहे हैं। पिता...। यह शब्द सुनते ही जेहन में एक दृढ़ व्यक्तित्व की छवि उभरती है।
ऐसा व्यक्ति जो हमारा सबसे बड़ा आदर्श होता है, मर्यादा जिसके रिश्ते की पहचान है। हमारे यहां पिता की भूमिका एक लंबा रास्ता तय करके आधुनिक हुई
है। एक दौर था, जब पिता का रौब बच्चों
को दहशत देता था। आज पिता व पुत्र दोस्त की भूमिका में आ गए हैं। फिर भी कहीं पिता-पुत्र के रिश्तों में एक
खिंचाव होता है। हो सकता है, ये पिता की भूमिका के संक्रमण का दौर हो शायद इसलिए...। फिर अब
भी कहीं पिता बच्चों के प्रति अपनी भूमिका को लेकर बहुत ज्यादा निश्चित नहीं हैं।
अब भी वे डिसीप्लीन और फ्रेंडशिप के बीच कहीं फंसे हुए हैं। भाई-बहन और दोस्तों के
साथ हम अपने रहस्य और इच्छाओं सहित बहुत-सी बातें साझा करते हैं। यह अच्छी बात है, परंतु कुछ बातों को अपने आप तक
रखने में ही समझदारी है और बड़े लोग भी हमेशा यही सलाह देते हैं। पुत्र पर अपनी इच्छाए न थोपे ! कहते है पिता व पुत्र के जूते का माप एक हो जाये उसे अपना
मित्र समझ कर हर बात साझा करे ! देखिये फिर आपका बुढ़ापा कितना स्वर्ग से सुंदर होता है !
लेखक – उत्तम जैन (विद्रोही )
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