शनिवार, 16 मई 2015

जीवन मे पैसा ही सब कुछ है

आजकल रोज़ अखबार मे चोरी और धोखाधड़ी मे शातिर दिमाग वालों द्वारा किये गये नये नये अविष्कारों के बारे मे पढने को मिलता है.! कोई मैकनिक नौकरी को छोड़ कार चोरों का गिरोह बना लेता है तो कोई इंजिनियर लोगों के खातों से पैसे उढ़ा लेता है. प्रतिभाशाली व्यक्तियों का भी अपराध की दुनिया से जुड़ना खतरे की घंटी है. जीवन मे पैसा ही सब कुछ है की भावना के चलन के कारण ही यह बुराई बढ रही है. !देश में कभी ईमानदारी और सच्चाई पर चलने वालों को आदर की दृष्टि से देखा जाता था. परन्तु आजकल के माहौल में ईमानदारी और सच्चाई पर चलना काँटों पर चलने से भी अधिक कठिन हो गया है. इस का प्रमुख कारण बाजार का बढ़ता प्रभाव ही है. आज धनी व्यक्ति को अनेक दुर्गुणों के होते हुए भी केवल धन के बल पर समाज मे आदर मिलता है. वहीं गरीब को हर कोई बेवकूफ समझता है और उसे शक़ की नज़र से देखता है.  आसाराम और सलमान जैसे कई मामलों मे सच बोलने वाले गवाहों की दुर्दशा इस बात का सबूत हैं.  आज हर कोई अपने अमीर रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी के पास उपलब्ध सुख सुविधा के साधन को देख  हीन भावना का शिकार हो रहा है या उन साधनो को पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है. रही सही कसर टीवी पर अमीरी का भोंडा प्रदर्शन करने वाले सीरियल और फिल्मे पूरी कर रहीं हैं. परिणाम स्वरूप लोग अपनी हैसियत को भूल अपनी चादर से बाहर पैर फैला क़र्ज़ लेकर  कार, टीवी या फ्रिज़ जैसे सामान खरीद लेतें है और बाद में क़र्ज़ चुकाने के चक्कर में हर समय परेशान रहतें है. इन सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये नौकरीपेशा लोग रिश्वत ले अपनी कमाई को बढाने लगते है और दुकानदार होने पर मिलावट और समान की अधिक कीमत वसूल कर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते है. ऐसे मे जब तक किस्मत साथ देती है तो यह लोग मज़े करते है. परंतु पकड़े जाने पर उनके परिवार को पहले से भी अधिक गरीबी का सामना करना पड़ता है. जितना अधिक जोखिम उतनी अधिक कमाई व्यापार का सिद्दांत है. परंतु आजकल बहुत से गुमराह युवा जवानी के ज़ोश मे इस सिद्दांत का गलत कामों मे इस्तेमाल कर रहे है, जिसका दुष्परिणाम देर सवेर उन्हें भुगतना  भुगतना पड़ता है. कम पढ़े लिखे लोग जल्दी अमीर बनने के चक्कर में मेहनत न कर चोरी, जेबकतरी, सेंधमारी और झपटमारी के कुख्यात धन्धों को अपनाते हैं वहीँ अधिक पढ़े लिखे साइबर क्राइम को ही अपनी जीवका बना लेते हैं. दबंग और पैसे वाले छोटे मोटे नेता बन जाते हैं या चिटफंड और  भूमाफिया के धंधे में आ जाते हैं. लेकिन इनमे से अधिकतर का अंत में अंजाम बहुत बुरा होता है और इन्हें काफी समय बड़े घर में रहना पड़ता है.  इनकी करनी की सज़ा उनके घर वाले भी भुगतते हैं. सादगी का जीवन  ही  सुख का आधार होता है. परन्तु आज हम सब इस ग़लतफ़हमी का शिकार बन चुके हैं की भौतिक सुख से प्रसन्नता मिलती है. यदि ऐसा होता तो जीवन में सब सुख की सुविधाएं होने पर भी अवसाद में रहने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी क्यों होती. मज़दूर और मेहनतकश इंसान कम पैसे होते हुए भी अपने जीवन से संतुष्ट और सुखी हैं. परन्तु खाते पीते लोग अपनी मूलभूत जरुरूतों के पूरा हो जाने पर भी अपनी असीमित इच्छाओं के पूरा न होने के कारण हरदम दुखी ही रहते हैं. अमीर बनने की चाहत रखना कोई बुरी बात नहीं है. परंतु  जल्दी से जल्दी धन कमाने के  लालच में अपनी जिंदगी को दाव पर लगाना और भिखारियों से भी नीच काम करना कहाँ की समझदारी है.  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हमें लेख से संबंधित अपनी टिप्पणी करके अपनी विचारधारा से अवगत करवाएं.