बुधवार, 13 मई 2015

अपने साथी को खोने का गम सहना

 पति अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है।और पत्नी अपने पति का गहरा आदर करे।दोनों को एक तनहोकर अपना-अपना भाग अदा करना चाहिए। जैसे-जैसे वक्‍त गुज़रता है, पति-पत्नी का एक-दूसरे के लिए लगाव और प्यार बढ़ता जाता है। पति-पत्नी के रिश्ते की तुलना ऐसे दो पेड़ों की जड़ों से की जा सकती है, जो साथ-साथ बढ़ती हैं। समय के चलते, खुशहाल पति और पत्नी की ज़िंदगियाँ भी एक-दूसरे के साथ बहुत-ही करीबी से जुड़ जाती हैं।लेकिन तब क्या जब पति या पत्नी में से कोई एक गुज़र जाए? ऐसे में एक बहुत ही मज़बूत और अटूट बंधन टूट जाता है। जो साथी अकेला रह जाता है, उसे अकसर दुख, अकेलेपन, यहाँ तक कि शायद गुस्से या दोष की भावनाएँ भी आ घेरती हैं। अपनी शादी के 18  सालों के बाद मेने अपनी पत्नी को खोने के बाद अनुभव किया ! पहले बहुत लोगो  के जीवन साथी को खोने का  दर्द को नहीं समझ पाया था । जब तक आप खुद इस दर्द से न गुज़रें, तब तक आप दूसरों का दर्द नहीं समझ सकते।अपने साथी से बिछड़ जाने पर एक इंसान की ज़िंदगी दोबारा वैसी नहीं हो जाती जैसी शादी से पहले वह जीता था।

सालों वक्‍त गुज़ारने के बाद आम तौर पर एक पति जानता है कि जब उसकी पत्नी मायूस या परेशान हो जाती है, तो कैसे उसे दिलासा देना है या उसका हौसला बढ़ाना है। मगर जब वह गुज़र जाती है, तो पत्नी के उस प्यार और दिलासे से महरूम हो जाता  है जो उसे अपने पत्नी  से मिलता था। उसके कोमल स्पर्श, उसके दिलासा देनेवाले शब्द और पति की हर छोटी-से-छोटी ज़रूरत और पसंद-नापसंद का खयाल रखने के उसके जज़्बे की कोई तुलना नहीं की जा सकती।   पति की ज़िंदगी में जैसे सूनापन छा जाता है। इसलिए कुछ लोग जो अपने साथी को खो देते हैं, उन्हें भविष्य की चिंता सताती है, यहाँ तक कि अपने आनेवाले कल के बारे में सोचकर डर भी लगता है।  कौन-सा सिद्धांत उन्हें सुरक्षित महसूस करने और मन की शांति पाने में मदद दे सकता है? क्या .... अगले दिन की चिंता कभी न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है। ये शब्द खासकर हमारी खाने-पहनने की ज़रूरतों पर लागू होते हैं, लेकिन इन्हीं शब्दों ने बहुत-से लोगों को अपने अज़ीज़ साथी से बिछड़ने का कड़वा अनुभव सहने में भी मदद दी है। अपनी पत्नी की मौत के  बाद मुझे आज भी पत्नी की बहुत याद आती है और कभी-कभी तो उसकी कमी इतनी खलती है कि यह दर्द मुझसे सहा नहीं जाता। लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसा होना लाज़िमी है और वक्‍त के गुज़रते, धीरे-धीरे मेरा दर्द कुछ हद तक कम हो जाएगा। वक्‍त गुज़ारनाथा। मे  यह कैसे कर पाया? मैं एक दिन में बस उसी दिन के बारे में सोचता था और अगले दिन की चिंता अगले दिन पर छोड़ देता था।मेने कभी  ने इस दुख को खुद पर हावी नहीं होने दिया। हालाँकि मेरा  दुख रातों-रात गायब नहीं हुआ, लेकिन मे  गम के सागर में डूब भी नहीं गया। अगर आपने अपने साथी को खोया है, तो एक दिन में बस उसी दिन के दुख से उबरने की कोशिश कीजिए। क्या पता कल कोई आपका हौसला बढ़ा दे। मेने अपनी पत्नी के स्वर्गस्थ होने के बाद दो बात सोची  पहला की   दुनिया की कोई भी ताकत सर्वशक्‍तिमान परमेश्वर को उसकी मर्जी  पूरी करने से नहीं रोक सकती। दूसरा की  अगर हम परमेश्वर की मर्जी  के मुताबिक प्रार्थना करें और उसकी मर्जी  के मुताबिक काम भी करें, तो वह न सिर्फ आज हमारी देखभाल करेगा ! बल्कि भविष्य में भी हमारी सारी ज़रूरतें और इच्छाएँ पूरी करेगा।  ओर वही हुआ मुझे फिर मेरे हमसफर के रूप मे एक हमसफर मिली ! ओर भले पूर्व हमसफर को भूल नही पाता मगर मेरी नयी हमसफर मुझे आज उतना प्यार प्रदान करती है की .................मेरी ज़िंदगी फिर से स्वर्ग बन गयी ! .
उत्तम जैन ( विद्रोही )




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