रविवार, 12 अप्रैल 2015

व्यक्तित्व विकास एवं भावनात्मक कुशाग्रता

शिक्षित व्यक्ति गूढ़ विषय को साधारण बना लेता है, जबकि अन्य लोग सामान्य धटना को गूढ़ बना देतें है। मानव का सामान्य बने रहना आसान नही है। सहज होने के लिए जीवन के विविध आयामों में संतुलन और सामंजस्य जरूरी है। भावना सामाजिक जीवन की आवश्यकता है। लोग  धन की प्राप्ति के लिए अपना स्वास्थ्य गवांते है और स्वास्थ्य की सुरक्षा में धन गवां देते हैं। इसलिये धन, पद, प्रतिष्ठा, सफलता और प्रसन्नता के लिये भविष्य की चिंतन करते समय वर्तमान में भी जीना सीखें। कुछ लोग इस प्रकार जीवन व्यतीत करतें हैं, मानो वे अमर हों और कुछ ऐसे मृत्यु को प्राप्त होतें है मानो उन्होंने जीवन जिया ही नहीं। कुछ लोग बाल्यावस्था से युवावस्था को प्राप्त करने हेतु प्रयासरत रहतें है, और कुछ  पुनः बचपन को प्राप्त करने हेतु इच्छुक होने लगते हैं।विकास की दौड़ में सफलता तनाव पैदा कर रही है। स्वास्थ्य, मानसिक शांति और प्रसन्नता के आभाव में मात्र भौतिक उपलब्धता  सच्ची सफलता नहीं है।जीवन कैसे अर्थपूर्ण हो , जीवन में संतुष्टी हो, आनंद का प्रवाह हो। व्यक्तिगत सफलता और व्यावसायिक सफलता दोनों के बारे में हमारा अपना भ्रम संयुक्त रूप से दोषी है। व्यावसायिक जगत के लिए हर हालत में लाभ ध्येय होता है। जबकि जीवन का ध्येय आनंद (मोक्ष) प्राप्त करने में है। अतः सच्ची सफलता प्राप्त करना होगा, मात्र भौतिक उपलब्धियाँ हमें शांति प्रसन्नता नहीं प्रदान कर सकती है। इसके लिए एकाग्र चित्त होना होता है। संकल्प शक्ति बढ़ानी होती है। जब खाना खाएं तो केवल खाना खाएं, जब काम करें तो केवल काम करें। और जब प्रार्थना करें तो केवल प्रार्थना करें !हम सब कुछ तुरंत पाना चाहते है, बिना अथक प्रयास किये एवं ऊर्जा के। सफलता के मुख्य तत्व प्रेम, दया, और मानवता का भाव ही हो सकता है। अतः अपनापन दें, पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। अपना पथ प्रदर्शक चुनेँ और ईश्वर से भले की प्रार्थना करें।  सही समय पर सही कदम सही तरीके से उठाने पर सफलता हाथ लगती है। केवल कठोर परिश्रम करने से ही अच्छा परिणाम नहीं मिलता। जीवन का प्रबंधन, विशिष्टता बनाये रखना एवं समय का समेकित प्रबंधन सहज चेतना से सहज रूप में करने से ही सफलता ख़ुशी के साथ प्राप्त होती है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हमें लेख से संबंधित अपनी टिप्पणी करके अपनी विचारधारा से अवगत करवाएं.