बुधवार, 29 अप्रैल 2015

साहित्य का सर्जन

साहित्य शब्द संस्कृत के सहित शब्द से बना है जिसका अर्थ है साथ साथ ! साहित्य शब्द पहले चाहे जिस रूप मे रहा हो आज उसे बड़े व्यापक अर्थ मे लिया जाता है ! साहित्य का सृजन माँ सरस्वती देवी कि असीम अनुकम्पा से होता है। सार्थक सहित्य सृजन माँ सरस्वती कि भक्ति का परिचायक है. परिणाम स्वरूप विद्द्या प्राप्त होती है। विद्द्या से विनय। देखने में सर्वथा इसके विपरीत ही मिल रहा है। साहित्यिक क्षेत्र में मानसिक भ्रष्टाचार पराकाष्ठा पर है. एक दूसरे पर छीटा कशी , दोषारोपण। मिथ्या प्रचार रोज -रोज देखने को मिल रहा है। मानसिक भ्रष्टाचार मेरी नजर में राजनैतिक भ्रष्टाचार से अधिक गंभीर और घातक है. ! साहित्य मनुष्य के अंदर मनुष्यता लाता है। सत्य को समझाने के लिए साहित्य जरूरी है। यर्थायता को समझे बिना विसंगतियों दूर नहीं होगी। साधना से ही साहित्य का सृजन होता है। जीव उत्पत्ति का समय निर्मल होता है। जिस प्रकार बरसात से निकली जल की बूंदें धरती पर गिरते ही मैली हो जाती हैं, इसी प्रकार निर्मल जीव धरती पर आकर राग, द्वेष, मोह, माया में उलझ कर अपना स्वरूप खो बैठता है। उस समय साहित्य ही इसका बोध कराता है। सामाजिक सरोकार से ही साहित्य का सृजन होता है। सभ्यता सत्य के प्रकाशक साहित्यकारों को देश में संवेदनाशून्य को भरने का संकल्प लेना होगा। नैतिक पतन के कारणों को ढूंढ़ने और समाधान के लिए सृजन कार्य करना चाहिए। युवा पीढ़ी को भौतिकवादी प्रवृत्ति त्याग कर चारित्रिक उत्थान के लिए प्रेरित करना होगा। युवाओं का बड़ा वर्ग पेशेवर और व्यावहारिक जीवन के कारण साहित्य से कट गया है। इन्हें कंप्यूटरों और मशीनों से जुड़े रहने के बावजूद टेक्नालॉजी को भी साहित्य में लाना चाहिए। तभी एक अच्छे साहित्य का सर्जन होगा 

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