शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

समाज और मानव का दायित्व

मनुष्य और समाज, शरीर और उसके अंगों के सदृश हैं। दोनों एक सिक्के के दो पलू है यानी परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का स्थायी रहना संभव नहीं है। दोनों में आपसी सहयोग परम आवश्यक है। मनुष्य की समाज के प्रति एक नैतिक जिम्मेदारी होती है, जिसके बिना समाज सुव्यवस्थित नहीं रह सकता। इसे हम मानव शरीर के उदाहरण द्वारा उचित तरीके से समझ सकते हैं। शरीर के विभिन्न अंग यदि अपना काम करना छोड़ दें, तो वह शिथिल और जर्जर हो जाएगा। शरीर को सुदृढ़ व स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक अंग का कार्यरत व क्रियाशील होना बहुत जरूरी है, ठीक यही स्थिति समाज के लिए आवश्यक है। समाज को समुचित स्थिति में रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य में अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए क्रियाशीलता अपेक्षित होती है। विभिन्न अंगों के पृथक ढंग से कार्य करने पर असहयोग की स्थिति उत्पन्न होगी। उस समय शरीर की दशा अत्यन्त शोचनीय हो जाएगी। शरीर एक मशीन की भांति है, एक भी अंग  गड़बड़ हुआ, तो स्वास्थ्य  बिगड़ जाता है। व्यक्ति का स्वार्थमय जीवन भी समाज के लिए अत्यत दुखदायी है। इस स्थिति में समाज का सदस्य सुखी नहीं रह सकता। समाज में शक्ति-संपन्नता और उसका विकास पूर्णतया असंभव है। यदि किसी मनुष्य ने अपनी उन्नति या विकास कर लिया, किंतु उससे समाज को कोई लाभ न मिला, तो ऐसे व्यक्ति की समस्त उपलब्धियां व्यर्थ हैं।स्वार्थी और संकुचित स्वभाव वाले व्यक्ति समाज का शोषण और अहित करते हैं।इन्हे हम समाज कंटक भी कह सकते है! इस तरह के व्यक्ति समाज के शत्रु होते हैं, जो निरंतर असहयोग के रूप में दुर्भावना फैलाते रहते हैं और समस्याएं खड़ी करते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज को पतन के गर्त में ले जाते हैं। ये व्यक्ति अविश्वसनीय, संदेहास्पद और झगड़ालू प्रवृत्ति के होते हैं। सुखी पन्न समाज तभी निर्मित हो सकता है, जब मनुष्य व्यक्तिवादी विचारधारा को छोड़ कर समाज हितवादी बने। इसी में समाज का कल्याण और मानव का हित है। समाज में पारस्परिक सहानुभूति, प्रेमभावना, उदारता , सेवा व संगठन की भावनाएं अत्यंत आवश्यक हैं। इन्हीं से समाज का विकास और समृद्धि संभव है। समाज में व्यक्ति का सबसे बड़ा दायित्व है- समाजहित  । समाज के जरूरतमंद व निराश्रित व्यक्तियों की सेवा करना व्यक्ति का एक महान कर्तव्य होना चाहिए। समाज मे फेली कुरुतिया को दूर करने की भावना हो ! ओर स्वयं समाज मे कुरुतियों का त्याग करे ! तभी एक स्वस्थ समाज की रचना होगी !

उत्तम जैन (विद्रोही ) 

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