बुधवार, 8 अप्रैल 2015

घरेलू हिंसा ओर महिला

महिला के संदर्भ मे मेरी कलम कुछ ज्यादा चलती है ! जाने क्यू खुद अनभिज्ञ हु पर अपने विचारो को आप तक  समस्त पाठको  जन जन पहुचाने का एक माध्यम जो मुझे मिला है ! सदुपयोग करता हु-- 
        बेहतर जिंदगी और श्रेष्ठ समाज के लिए सबसे जरूरी चीज है संवेदना । संवेदना यानी दूसरे की वेदना को खुद भी महसूस कर पाना । संवेदना ही मनुष्यता को विस्तार देती है । पारिवारिक सदस्यों में परस्पर संवेदनशीलता जितनी ज्यादा होगी, रिश्ते उतने ही गहरे और मजबूत होंगे । मनुष्य संवेदनशील हो, परिवार संवेदनशील हो और समाज संवेदनशील हो, तो काफी कुछ परेशानियां और दुख अपने आप खत्म हो जाएंगे । लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है । घरेलू हिंसा को लेकर काफी  सर्वेक्षण होता है, उसमे  परिवारों खास तौर से पति-पत्नी के रिश्तों में पैदा हो रही संवेदनशीलता की बड़ी खौफनाक तस्वीर सामने आती है ।वर्ष २००५  में बने घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग ने एक सर्वे कराया । इस सर्वे के मुताबिक कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां घरेलू हिंसा से संबंधित मामले सामने नहीं आए हों । घरेलू हिंसा के आंकड़े हमेशा नए नए  सामने आ रहे है  । आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी घरेलू हिंसा से संबंधित काफी मामले दर्ज हुए हैं ।घरेलू हिंसा कोई नई नहीं है । सदियों से यह भारतीय समाज में प्रचलित है । घर की चारदीवारी में कैद महिलाएं तमाम जुल्म और ज्यादतियो  को चुपचाप सह जाती हैं । वह इसे अपने जीवन की नियति मान लेती हैं । मारपीट करने वाला पति उनके लिए देवता बना रहता है ओर वह  हर करवा चोथ पर अपने पति की लंबी उम्र की दुआ मांगती है !   इन स्थितियों के बीच क्यों घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम की जरूरत पड़ी ? दरअसल वक्त बदल रहा है । पहले महिलाएं इसलिए जुल्म सहती थीं क्योंकि उनका आर्थिक आधार होता ही नहीं था । पति की उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का माध्यम था । अब महिलाएं स्वाबलंबी हो रही हैं । खुद अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं तो फिर क्यों पति का जुल्म बरदाश्त करें ? पहले शिक्षित लड़कियों और महिलाओं की संख्या कम थी ? लड़कियों को बाहर जाकर पढऩे लिखने की आजादी बहुत कम थी ।   अशिक्षा उनके आत्मविश्वास को इतना कमजोर कर देती थी कि वह कोई आवाज ही नहीं उठा पाती थीं । पति का जुल्म भी इसीलिए चुपचाप बर्दाश्त करती थीं ।अब लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी में व्यापक बदलाव आ रहा है । वह पढ़ाई के लिए मनपसंद स्कूल-कालेजों में जा रही हैं व आज लडकीया बाहर भी जाती है व विदेशो मे भी पढऩे लिखने के जा रही है !घर की दहलीज लांघकर नौकरी करने के लिए बाहर निकल रही हैं । आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रही हैं। ऐसे में वह घरेलू हिंसा को क्यों सहन करें ?गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि घरेलू हिंसा के मामलों का दर्ज होना अच्छा भी है और खराब भी । अच्छा इसलिए क्योंकि यह महिलाओं के साहस का भी प्रतीक है कि वह पति की ज्यादतियों का प्रतिकार कर रही हैं  अपने हक की लड़ाई के लिए आवाज बुलंद कर रही हैं । खराब इसलिए कि तमाम   सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के बाद भी घरों के अंदर ही अच्छा माहौल नहीं बन पा रहा। महिलाओं को यथोचित सम्मान नहीं मिल पा रहा । इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। वह हिंसा जो महिला के तन को ही नहीं मन को भी घायल कर देती है । सभ्य समाज के लिए घरेलू हिंसा कलंक की ही तरह है। इसे रोकने के लिए गंभीरता से प्रयास होने चाहिए ।
उत्तम जैन ( विद्रोही) 
12/01/2015

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