आज भूकंप से हुई
तबाही ने समाज को फिर से एक चेतावनी दी है कि प्रकृति के साथ अच्छे संबंध स्थापित
करना सीख लें अन्यथा प्रलय में उसके झूठे विकास का दंभ दफन हो जाएगा। मानव सभ्यता
का स्थायी या दीर्घकालिक विकास प्रकृति के नियमों के साथ तालमेल बिठाकर ही किया जा
सकता है। प्रकृति का अपना एक हिसाब-किताब है जिसकी अनदेखी कर किए जा रहे विकास
हमें तबाही की ओर ही ले जाएंगे। इसके अनेक प्रमाण हमारे सामने हैं। गुजरात के कच्छ, महाराष्ट्र के लातूर और उत्तराखंड के चमोली
में भूकंप से हुई तबाही हमारे लिए काफी नहीं थी, इसलिए हमने अपने विकास के रास्ते बदले नहीं हैं।
तभी तो पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर में लगभग 90 हजार लोग मारे गए। कई गांव नेस्त व नाबूद
हो गए। पानी के झरने और स्रोतों में साफ और स्वच्छ पानी की जगह पीने के सर्वथा
अयोग्य पानी बहने लगा है। भूकंप के तुरंत बाद बर्फ के गिरने से बसेरे छिन गए और
लोगों को तंबुओं में ठंड से लड़ने को मजबूर होना पड़ा। तबाही का मंजर दिल दहला देने
वाला था। प्रकृति पर विजय पाने की लालसा मनुष्य को हमेशा से महंगी पड़ी है। लेकिन
प्रकृति तो मनुष्य पर विजय पाने की लालसा कभी भी नहीं रखती है। वह तो हमेशा देना
ही चाहती है। वह समता का दृष्टिकोण रखती है। परंतु वह यह जरूर चाहती है कि उनके
नियम, जो सैकड़ों-हजारों साल में बने हैं, वह बगैर समझदारी विकसित किए हुए पल में
तोड़े नहीं जाएं। वह विकास का भी विरोध नहीं करती है। मगर वह यह तो ज़रूर चाहती है
कि कोई भी विकास उसके तर्क को समझे बगैर न हो।
भू-गर्भ वैज्ञानिक बहुत समय से यह चेतावनी दे रहे थे कि हिमालय पर्वतमाला की गोद में बसे भारत, पाकिस्तान,बांग्लादेश, नेपाल, भूटान आदि देशों में कभी भी एक या इससे अधिक भूकंप आ सकते हैं। उनका मानना है कि भारत और तिब्बत के मध्य टेक्टोनिक प्लेटों के बीच भारी दबाव बन रहा है, जिससे पांच करोड़ आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। पिछली घटनाओं से सबक लेकर हमने आगे की तैयारी नहीं की। हमने बहुमंजिली इमारतों के बनने पर रोक नहीं लगाई। मकानों में भूकंप रोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया। बड़े बांध बनने से नहीं रोके और भूकंप आने की जानकारी हमें पहले से हो जाए, इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। दरअसल ऐसी अनदेखी केवल भारत में ही नहीं बल्कि ज्यादातर जगहों पर की गई है। तर्क जुटाते हैं परंतु रामायण की एक कथा को समझने की कोशिश करें तो संभव है सारे तर्कों के उत्तर आप ही आप मिल जाएंगे। रामायण की कथा के अनुसार 'शिव के धनुष' की महिमा अपर्ंपार थी। उनका धनुष'पिनाक' इतना मजबूत था कि उसे तोड़ने के लिए योद्धाओं को ललकारा गया। तोड़ना तो दूर उसे कोई हिला भी नहीं पा रहा था। रामचंद्र जी ने उसे एक झटके में तोड़ दिया था। कथा का तात्पर्य यह है कि सारी समस्याओं से लड़ने की योजना बना ली है ऐसे तर्क देने वाले को प्रकृति की शक्ति का अंदाज अपने हिसाब से नहीं बल्कि प्रकृति के बनाए नियमों को सावधानीपूर्वक जांच-परख कर लगानी चाहिए। स्थायी विकास की शर्त यह है कि प्रकृति के साथ साहचर्य बिठाकर चलने से ही खतरों को टाला जा सकता है।
भू-गर्भ वैज्ञानिक बहुत समय से यह चेतावनी दे रहे थे कि हिमालय पर्वतमाला की गोद में बसे भारत, पाकिस्तान,बांग्लादेश, नेपाल, भूटान आदि देशों में कभी भी एक या इससे अधिक भूकंप आ सकते हैं। उनका मानना है कि भारत और तिब्बत के मध्य टेक्टोनिक प्लेटों के बीच भारी दबाव बन रहा है, जिससे पांच करोड़ आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। पिछली घटनाओं से सबक लेकर हमने आगे की तैयारी नहीं की। हमने बहुमंजिली इमारतों के बनने पर रोक नहीं लगाई। मकानों में भूकंप रोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया। बड़े बांध बनने से नहीं रोके और भूकंप आने की जानकारी हमें पहले से हो जाए, इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। दरअसल ऐसी अनदेखी केवल भारत में ही नहीं बल्कि ज्यादातर जगहों पर की गई है। तर्क जुटाते हैं परंतु रामायण की एक कथा को समझने की कोशिश करें तो संभव है सारे तर्कों के उत्तर आप ही आप मिल जाएंगे। रामायण की कथा के अनुसार 'शिव के धनुष' की महिमा अपर्ंपार थी। उनका धनुष'पिनाक' इतना मजबूत था कि उसे तोड़ने के लिए योद्धाओं को ललकारा गया। तोड़ना तो दूर उसे कोई हिला भी नहीं पा रहा था। रामचंद्र जी ने उसे एक झटके में तोड़ दिया था। कथा का तात्पर्य यह है कि सारी समस्याओं से लड़ने की योजना बना ली है ऐसे तर्क देने वाले को प्रकृति की शक्ति का अंदाज अपने हिसाब से नहीं बल्कि प्रकृति के बनाए नियमों को सावधानीपूर्वक जांच-परख कर लगानी चाहिए। स्थायी विकास की शर्त यह है कि प्रकृति के साथ साहचर्य बिठाकर चलने से ही खतरों को टाला जा सकता है।
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