भारत
वर्ष की महानता में समस्त जातियों वर्गों का महत्पूर्ण योगदान रहा है । हमारा जैन
समाज भी अन्य समाजों की तुलना में त्याग
बलिदान, देश
सेवा, में
कभी पीछे नहीं रहा समय आने पर अपनी बहादूरी, दानशीलता व विद्वता का परिचय दिया है
!
जिस-जिस समाज ने महापुरूषों
का अनुसरण किया है, उस
समाज ने अनवरत विकास किया है, आज भी हमारा समाज पानी का बहता वो रेला है जिसे समाज के बुद्धिजीवी
जिधर ले जाना चाहे ले जा सकते है तथा समाज की गरिमा बनाने हेतु समाज उत्थान को
अग्रसर हो तो हमारा समाज अन्य समाजों से ओर आगे निसंदेह अग्रसर होगा ! परन्तु हमारा बुद्धिजीवी वर्ग प्रतिष्ठित
वर्ग दिशाहीन हो गया है उसका ध्यान स्वयं अपनी ओर है इसके अलावा किसी ओर ध्यान
नहीं जा रहा है इस आधुनिकता के युग में वह अपना कद बढ़ाने
की होड़ में वो यह भी भूल गया है कि वह जहां से निकला है उस समाज के प्रति उसका भी
कुछ दायित्व बनता है । इसी तरह हमारे प्रतिष्ठित वर्ग उच्च पद पर आसीन वर्ग को समाज के
लोगों को यथा: स्थान देना चाहिये । मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिये शिक्षा हेतु
प्रेरित करना चाहिये ऐसे वर्ग से अपील है कि वे स्थान न दे तो कृपया उसकी टांग
पकड़कर तो न खींचे, समय परिवर्तनशील है !
आज साधन सम्पन्न वर्ग के
लिए समाज के लिये समय नहीं है मध्यम वर्ग समाज हित में कुछ करना चाहता है करता भी है येन केन
प्रकरेण उसे दबा दिया जाता है ! शिक्षित वर्ग का ध्यानाकर्षण समाज उत्थान हेतु आवश्यक है
जहां परिवार, समाज, देश हित की बात आती है सर्वप्रथम देश
हित फिर, समाज
हित इसके पश्चात् परिवार हित की बात सोचना चाहिए, परन्तु यह कोई नहीं सोचता अरे हम से तो वे पूर्वज जो अनपढ़ या कम शिक्षित अच्छे थे जब समाज की स्थिति दयनीय थी
तब भी जैन समाज के सपुतों ने अपनी
विरता-कोशल-दानशीलता से राजा महाराजाओं के दिल जीतकर कई ऐतिहासिक मांगे राजा
महाराजा श्री से अपने लिये नहीं वरन, अपने समाज के लिये मनवाई थी । उन भामाशाहों की उदारता दान पुण्य व देश भक्ति स्वयं अपने में एक मिसाल है । जिन्होंने
तत्कालीन महाराजा देश से मुगलों के
साम्राज्य समाप्त करने हेतु सौने की मोहरे व हजारो रूपये उस जमाने में देश की रक्षा हेतु दान देकर
अपने लिये नहीं वरन समाज के लिये वर मांगे । जो अधिकार सिर्फ राजा महाराजाओं तथा
ठाकुरों को ही प्राप्त थे, वे जैन समाज को प्रदान करवाकर समाज की प्रतिष्ठा स्थापित
की जो उनकी विद्वता का परिचालक है ! भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी जैन समाज की अन्य समाजों से कम भूमिका नहीं रही ! तथा कई स्वतंत्रता सैनानी इसी जैन समाज में हुये है । ऐसे देश
भक्त, दानी, त्यागी तथा समाज सुधारक जिस समाज में
रहे हो उस जाति को शिक्षा के प्रसार हो जाने के बाद जंग लग गया है तथा वह समाज हित
में सोचना भूल गया है !जबकि आज परिस्थितियां बढ़ी
अनुकूल है हमारे समाज में अनेक आई.ए.एस., आई.पी.एस., न्यायाधीश, इंजीनियर, डाक्टर, वकील तथा विभिन्न विभागों के महत्वपूर्ण
पदों पर आसीन होते हुए समाज की स्थिति दयनीय होती जा रही है । दयनीय का अर्थ आप आर्थिक रूप से न ले
मेरा तात्पर्य कुरूतियों की तरफ ध्यान आकर्षण करना है आज परिवार की परिभाषा ही संकुचित हो चुकी है ।
पहले संयुक्त परिवार होते रहे जिसमें माता-पिता प्रमुख रूप से होते थे भाई-बहिन
रिश्तेदार होते थे आज मियां-बीवी व बच्चों का परिवार कहलाया जाता है निश्चित ही
उसके पास ऑरो की तरफ ध्यान देने का विकल्प कहा बचता है !
समस्त बुद्धिजीवी, प्रतिष्ठित साधन सम्पन्न वर्ग तथा
कर्मचारी वर्ग को समाज हित में सोचना परम आवश्यक है । आप बाहर रहकर कितना ही समाज
दूर
हो जाए लेकिन घर आकर उसी समाज में रहना है तो क्यों नहीं उस
समाज की ओर कुछ ध्यान दे तथा समाज उत्थान में योगदान देकर समाज की गरिमा बनाए
!
इस परिपेक्ष में यह भी कहना
चाहूंगा कि बहुत कुछ हमारी कमजोरिया भी है हम हमारे बुजुर्गों तथा माता-पिता का
मान सम्मान करना भूल गये है । विचार करे आज की राजनीति में जैन समाज को कोई खाश महत्वपूर्ण पद पर स्थान नहीं है
इसके तह में जाए तो इसमें सौ फिसदी कमी हमारी है हम अपना
स्वयं का कद बढ़ाने के प्रयास में औरों की टांग पकड़कर गिराने में माहिर हो चुके
है । कोई आज की राजनीति में घुसपैठ कर लेता है तो हमारे समाज का दुसरा वर्ग उसे
गिराने के प्रयास में जुट जाता है तथा सफल होता जाता है तो स्वत: गरिमा लुप्त हो
रही है । हममें सहनशीलता की भी कमी है कि अगर सहकुशल घुसपैठ भी कर लेता है तो समाज
व नीचे तबके को भूल जाता है । परिणाम स्वरूप प्राकृतिक प्रकोप से वह स्वत: ही
चिरस्थाई रहकर धराशाही हो जाता है ! विचार करें जिस समाज का
राजा-महाराजाओं के समय स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलनों में योगदान रहा हो नाम
रहा हो उस समाज का वर्तमान राजनीतिक पतन होता जा रहा है । जबकि वर्तमान समाज हित
में राजनैतिक घुसपैठ आवश्यक है, इसके लिये समय रहते ध्यान देना जरूरी है ।' मानव कमजोरियों का पुतला है समाज के हर व्यक्ति में कुछ
अवगुण निश्चित रूप से होते ही है । मेरी अपील है कि, उसकी कमजोरियों और कमियों की ओर एक
अवगुण की ओर ध्यान न देकर उसकी अच्छाई को ग्रहण करें । समस्त बुद्धिजीवी वर्ग तथा प्रतिष्ठित वर्ग की आज समाज को
आवश्यकता है, जैन समाज के लिये युक्ति ठीक नहीं कि हम सुधरेंगे जग
सुधरेगा । समाज में आज अस्सी फीसदी शिक्षित
वर्ग है फिर भी उन्हें यह भी भान नहीं है कि वह जो कर रहा है
या करने जा रहा है वह ठीक है या बुरा । अत: उसे यह भान करना आवश्यक है! जैन समाज भले कुछ घटको मे विभाजित हो गया हो ! पर सभी घटको मे साधु संत आचार्य
आज भी अहिंसा , परिग्रह के सिदान्तो पर चलकर देश व समाज को नयी दिशा प्रदान कर रहे है ! जरूरत है हमे उन द्वारा बताई दिशा
की
ओर गतिमान होने की !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हमें लेख से संबंधित अपनी टिप्पणी करके अपनी विचारधारा से अवगत करवाएं.