देश में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों
की कम होती
संख्या चिंता का विषय है। यह चिंता होना भी चाहिये क्योंकि जब हम मानव समाज
की बात करते हैं तो वह दोनों पर समान रूप से आधारित है। रिश्तों के नाम
कुछ भी हों मगर स्त्री और पुरुष के बीच सामजंस्य के चलते ही परिवार चलता
है और उसी से देश को आधार मिलता है। इस समय स्त्रियों की कमी का कारण ‘कन्या भ्रुण हत्या’ को माना जा रहा है जिसमें उसके जनक माता, पिता,
दादा, दादी, नाना और नानी की सहमति शामिल होती है।
यह संभव नहीं है कि कन्या
भ्रुण हत्या में किसी नारी की सहमति न शामिल हो। संभव है कि
नारीवादी कुछ लेखक
इस पर आपत्ति करें पर यह सच नहीं बदल सकता क्योंकि हम अपने समाज की कुरीतियों, अंधविश्वासों और पाखंडों को अनदेखा नहीं
कर सकते जिसमें स्त्री और
पुरुष समान रूप से शामिल होते दिखते हैं।अनेक समाज सेवकों, संतों तथा बुद्धिजीवी निंरतर कन्या भ्रुण
हत्या के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए
हैं-उनकी गतिविधियों की प्रशंसा करना चाहिये।मगर हमें यह बात भी देखना
चाहिये कि ‘कन्या
भ्रुण हत्या’ कोई
समस्या नहीं बल्कि समाज में
व्याप्त दहेज प्रथा तथा अन्य प्रकार की सामाजिक सोच का परिणाम
है। ‘कन्या भ्रुण
हत्या’ रोको
जैसे नारे लगाने से यह काम रुकने वाला नहीं है भले ही कितनी ही राष्ट्रभक्ति या भगवान भक्ति
की कसमें खिलाते रहें।
अनेक धार्मिक संत अपने प्रवचनों में भी यही
मुद्दा उठा रहे हैं। अक्सर वह लोग
कहते हैं कि ‘हमारे
यहां नारी को देवी की तरह माना जाता है’।सवाल यह है कि वह किसे संबोधित कर रहे हैं-क्या
उनमें नारियां नहीं हैं जो कहीं न
कहीं इसके लिये किसी न किसी रिश्ते के रूप में शामिल होती हैं। दहेज प्रथा पर बहुत लिखा गया है। उस पर
लिखकर कर विषय के अन्य पक्ष को अनदेखा करना व्यर्थ होगा। मुख्य बात है सोच की-----सर्वप्रथम नारी समाज को जागृत होना होगा !
एक सलाह आपको देना चाहूँगा --क्योंक़ि कुछ दहेज़ से डरे लोग यही सोचते भी है तो
कुछ बेटियों को बोझ समझ पैदा करने वाले भी सोचते
है यह बोझ जितनी जल्दी उतारे अच्छा ," मेरी एक राय है क़ि बेटी का
रिश्ता करना है है तो लड़का क्या करता है ,उसका ख़ानदान कैसा है क्या आदते है
उसकी ये तो देखें ही पर इन सबसे जरुरी एक बात और देखें क़ि ससुराल में बेटी क़ि कोई ननद भी है क़ि
नहीं कसम खा लीजिए जहाँ ननद नही है वहां बेटी का
रिश्ता नहीं करेगे बस फिर सभी एक सुर में कहेंगे मुझे बेटी चाहिए क्योकि मुझे बहु भी चाहिए उत्तम जैन (विद्रोही)
०५/०४/२०१५
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