औरत.. शब्द एक अनसुलझी व इश्वर की एक अनमोल रचना भी है. वैसे तो इश्वर की हर रचना नायाब और अद्वितीय
है पर इश्वर की यह रचना अतुलनीय है. बचपन से मेरा मन इनकी और खिचता था. कुछ
गलत मत सोचियेगा, बस लगता था कुछ तो खास है इनमे जो हर तरफ इनका ही जलवा है हर
तरफ इन्ही की चर्चा है. जैसे जैसे बड़ा होता गया बहुत कुछ जानने लगा इनके बारे
में. जितना जाना मैंने, उतना ही उलझता चला गया. मेरा ज्यादा लेख व विचार इसी प्रकृति पर लिखा गया है और हमेशा प्रयास रहता है इन्हें जानने का.पूरी तरह तो न
जान पाया न जान पाऊँगा फिर भी कोशिश करता हु
अकेला जब भी बैठता हु तो शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जिसमे मेरे मानस पटल पर चर्चा का विषय नहीं रहा हो . सही बताऊ कभी कभी लगता था की अगर इश्वरने इनकी रचना नहीं की होती तो तबाही आ जाती. तबाही आती या नहीं आती हम बिलकुल खाली या यू कहे की बिना किसी मकसद के जीते, कम से कम अपना समय इनकी बातें कर के काट तो लेते थे.
आज वक़्त इतना गन्दा आ गया है की हर दूसरा इंसान गन्दा बन गया है किसी न किसी लालच में. जब कोई मर्द महिलाओं के बारे में सोचता है तो वो ये क्यों भूल जाता है की उसके घर में भी महिला है और दुसरे भी उनको उसी नज़र से देख सकते है. वो क्यों भूल जाता है कि औरत का एक रूप सिर्फ वो औरत नहीं जिसे वो गन्दी नज़र से देख रहा है बल्कि माँ, बहन और पत्नी भी है जिनके बगैर मर्द एक कदम नहीं चल सकता.
लोगो को याद है की महात्मा गाँधी ने देश के लिए बड़ी क़ुरबानी दी पर ये भूल जाते है मोहन दास करमचंद गाँधी को महात्मा कस्तूरबा ने बनाया लोग भूल जाते है गाँधी से ज्यादा बलिदान और त्याग कस्तूरबा ने किया जो न सिर्फ उनके घर को उनके अनुपस्थिति में संभाली वरन उनका हर नाजुक वक़्त पर साथ भी दी.
ऐसे लोगो को क्यों याद नहीं रहता कि किसी से भी बढ़ कर औरतो ने समाज कल्याण का काम किया है उदहारण के तौर पर आप मदर टेरेसा, इन्दिरा गांधी को ही ले लीजिये. उदहारण और मिल जायेंगे अगर पुरूष अपने अहम् से बहार निकल कर देखेगा तो.
कुछ लोगो ने यहाँ तक कहा कि अरे भाई महापुरूष होते है पर महानारी सुना है? “औरतों की क्या औकात यार कि कोई बड़ा काम ये कर पाए”.मजाक में जीने वाले इंसान हर चीज का मजाक ही बनाते है पर अज्ञानी को ये पता नहीं होता सच मरता नहीं कभी ज्ञान के प्रकाश को कोई अँधेरा नहीं निगल सकता. जितने महापुरूष का नाम आप जानते है वो महापुरूष नहीं होते अगर इनसे जुडी महिलाओ ने इनसे बढ़ कर अपने स्वार्थो का त्याग नहीं किया होता तो. आखिर महापुरूष भी किसी महिला के कोख से ही पैदा होते है आम आदमी की तरह. हमे नहीं भूलना चाहिए नारी जननी है. आज भारतीय समाज जीवित है तो इसमें मर्दों से कई गुना ज्यादा श्रेय इन महिलाओं को जाता है जो हर जगह छोटे या बड़े स्वार्थो की पूर्ती के लिए उपयोग की जाती है. यही नहीं सारे अत्याचार इन्ही पर होते है और फिर भी इनकी सहनशीलता तो देखिये आज भी मुह बंद किये और नज़रे झुकाए जी रही है और राष्ट्र निर्माण का महान कार्य कर रही है. हे महिलाओं मैं अपनी हर भूल की माफ़ी तुमसे मांगता हूँ और तुम्हारे इन त्याग और निस्वार्थ जीवन को शत शत नमन करता हूँ. मैं तुमसे तुम्हारी औकात नहीं पूछूँगा क्युकी मैं जान गया हूँ तुम क्या हो? शांत रही तो तुम्ही लक्ष्मी तुम्ही रिधि सीधी हो और अशांत हुई तो तुम ही काली दुर्गा हो……
अकेला जब भी बैठता हु तो शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जिसमे मेरे मानस पटल पर चर्चा का विषय नहीं रहा हो . सही बताऊ कभी कभी लगता था की अगर इश्वरने इनकी रचना नहीं की होती तो तबाही आ जाती. तबाही आती या नहीं आती हम बिलकुल खाली या यू कहे की बिना किसी मकसद के जीते, कम से कम अपना समय इनकी बातें कर के काट तो लेते थे.
आज वक़्त इतना गन्दा आ गया है की हर दूसरा इंसान गन्दा बन गया है किसी न किसी लालच में. जब कोई मर्द महिलाओं के बारे में सोचता है तो वो ये क्यों भूल जाता है की उसके घर में भी महिला है और दुसरे भी उनको उसी नज़र से देख सकते है. वो क्यों भूल जाता है कि औरत का एक रूप सिर्फ वो औरत नहीं जिसे वो गन्दी नज़र से देख रहा है बल्कि माँ, बहन और पत्नी भी है जिनके बगैर मर्द एक कदम नहीं चल सकता.
लोगो को याद है की महात्मा गाँधी ने देश के लिए बड़ी क़ुरबानी दी पर ये भूल जाते है मोहन दास करमचंद गाँधी को महात्मा कस्तूरबा ने बनाया लोग भूल जाते है गाँधी से ज्यादा बलिदान और त्याग कस्तूरबा ने किया जो न सिर्फ उनके घर को उनके अनुपस्थिति में संभाली वरन उनका हर नाजुक वक़्त पर साथ भी दी.
ऐसे लोगो को क्यों याद नहीं रहता कि किसी से भी बढ़ कर औरतो ने समाज कल्याण का काम किया है उदहारण के तौर पर आप मदर टेरेसा, इन्दिरा गांधी को ही ले लीजिये. उदहारण और मिल जायेंगे अगर पुरूष अपने अहम् से बहार निकल कर देखेगा तो.
कुछ लोगो ने यहाँ तक कहा कि अरे भाई महापुरूष होते है पर महानारी सुना है? “औरतों की क्या औकात यार कि कोई बड़ा काम ये कर पाए”.मजाक में जीने वाले इंसान हर चीज का मजाक ही बनाते है पर अज्ञानी को ये पता नहीं होता सच मरता नहीं कभी ज्ञान के प्रकाश को कोई अँधेरा नहीं निगल सकता. जितने महापुरूष का नाम आप जानते है वो महापुरूष नहीं होते अगर इनसे जुडी महिलाओ ने इनसे बढ़ कर अपने स्वार्थो का त्याग नहीं किया होता तो. आखिर महापुरूष भी किसी महिला के कोख से ही पैदा होते है आम आदमी की तरह. हमे नहीं भूलना चाहिए नारी जननी है. आज भारतीय समाज जीवित है तो इसमें मर्दों से कई गुना ज्यादा श्रेय इन महिलाओं को जाता है जो हर जगह छोटे या बड़े स्वार्थो की पूर्ती के लिए उपयोग की जाती है. यही नहीं सारे अत्याचार इन्ही पर होते है और फिर भी इनकी सहनशीलता तो देखिये आज भी मुह बंद किये और नज़रे झुकाए जी रही है और राष्ट्र निर्माण का महान कार्य कर रही है. हे महिलाओं मैं अपनी हर भूल की माफ़ी तुमसे मांगता हूँ और तुम्हारे इन त्याग और निस्वार्थ जीवन को शत शत नमन करता हूँ. मैं तुमसे तुम्हारी औकात नहीं पूछूँगा क्युकी मैं जान गया हूँ तुम क्या हो? शांत रही तो तुम्ही लक्ष्मी तुम्ही रिधि सीधी हो और अशांत हुई तो तुम ही काली दुर्गा हो……
उत्तम जैन ( विद्रोही)
31/03/2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हमें लेख से संबंधित अपनी टिप्पणी करके अपनी विचारधारा से अवगत करवाएं.