पानी के महत्व को समझना और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत
होना आवश्यक है । आँकड़े
बताते हैं कि विश्व के 1.4 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है।
प्रकृति जीवनदायी सम्पदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गवाएँ यह प्रण लेना बहुत आवश्यक है। जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बून्द कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया तो सम्भव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हजार में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों में तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता। हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है। सोचों तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे।
लेकिन कहना है कि आस का दामन कभी नहीं छूटना चाहिए तो ईश्वर से यही कामना है कि वह दिन कभी न आए जब इंसान को पानी की कमी हो। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव में जो प्रगति की है उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी जरूरी है। हमे वर्षा जल संरक्षण कर जो मिसाल कायम करनी है उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि हर जिले की ‘फसल ऑडिट’ कराए। जिले में उपलब्ध पानी को देखते हुए पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। गुलबर्गा में रागी, जोधपुर में बाजरा और उत्तर प्रदेश में चावल और गेहूँ की खेती करने से हमारे जल संसाधन सुरक्षित रहेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी। रागी और बाजरा खाने से जनता का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा। पानी और समय हाथ से जाता है तो फिर वापस नहीं आता है। इसलिए पानी और समय दोनों को हमें बचाना है। आज ही आप प्रण ले ओर पानी बचाए
प्रकृति जीवनदायी सम्पदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गवाएँ यह प्रण लेना बहुत आवश्यक है। जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बून्द कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया तो सम्भव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हजार में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों में तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता। हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है। सोचों तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे।
लेकिन कहना है कि आस का दामन कभी नहीं छूटना चाहिए तो ईश्वर से यही कामना है कि वह दिन कभी न आए जब इंसान को पानी की कमी हो। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव में जो प्रगति की है उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी जरूरी है। हमे वर्षा जल संरक्षण कर जो मिसाल कायम करनी है उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि हर जिले की ‘फसल ऑडिट’ कराए। जिले में उपलब्ध पानी को देखते हुए पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। गुलबर्गा में रागी, जोधपुर में बाजरा और उत्तर प्रदेश में चावल और गेहूँ की खेती करने से हमारे जल संसाधन सुरक्षित रहेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी। रागी और बाजरा खाने से जनता का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा। पानी और समय हाथ से जाता है तो फिर वापस नहीं आता है। इसलिए पानी और समय दोनों को हमें बचाना है। आज ही आप प्रण ले ओर पानी बचाए
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