सोमवार, 27 अप्रैल 2015

धर्म और राजनीति मे उलझा मानव

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ राष्ट्र में सभी धर्मो के अनुयायियों को समान अवसर प्राप्त होता है। धार्मिक आधार पर न तो भेदभाव किया जाता है न ही किसी धर्म विशेष के अनुयायियों को विशेष सुविधा दिया जाता है। लेकिन यह कटु सत्य है कि भारत में आजादी के शुरूआत से ही धर्म एवं जाति के नाम पर सत्ता लोलुप राजनेता द्वारा राजनीति की जा रही है। धर्म और जाति के नाम के वायरस से इतना संक्रमण फेला दिया है की इस संक्रमण का इलाज तो अब किसी भी धर्म के देवी देवता या किसी डॉ से भी संभव हो सकता ! किसी भी धर्म का संबंध मानव मन के शुद्धिकरण से होता है, प्रेम की सर्वोच्चता सभी धर्मों में वर्णित है। वर्तमान समय में एवं भूतकाल में भी धर्मगुरूओं द्वारा स्वार्थ सिद्धि हेतु जो धर्म की व्याख्या एवं उपदेश दी जाती रही है, उससे प्रत्येक धर्म का मूल भाव का अस्तित्व ही आज खतरे में दिख रहा है!कोई भी धर्म धर्मगुरूओं की जागीर नहीं है, न तो राजनेताओं की पैतृक संपत्ति है। जिसे वे निज हित के लिए उपयोग करें। पता नहीं मानव इस बात को समझ क्यू नही रहा है ! भगवान महावीर व बुद्ध या किसी धर्म के संस्थापक या ग्रंथो मे दूसरे को कष्ट पहुँचाने वाले, किसी भी धर्म का सच्चा अनुयाई नही कहा गया है ! शासकीय नीति को स्वार्थी राजनेताओं ने धर्म से जोड़ा और अब इस पर राजनीति करते आए है ओर कर रहे हैं। धर्म के नाम पर आपस मे लड़ा कर फुट डालो राज करो वाली अंग्रेज़ो की रणनीति चल रहे है ! कभी आरक्षण का मुद्दा तो कभी मंदिर मस्जिद का मुद्दा कभी अन्य किसी मुद्दे पर अपने भाषणो से प्रभावित करके भोली भाली जनता को मोहरा बना कर वोट बैंक मजबूत करते है ! आज धार्मिक स्थल एवं पर्यटन स्थल में विशेष अंतर नहीं है। दोनों एक दूसरे का पर्याय बन चुका है। इससे विकसित करने के लिए आधार भूत सुविधाएँ तो चाहिए ही। वहाँ के निवासी इसे धर्म के साथ जोड़कर नहीं देखे तो अच्छा है। अगर धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं तो उनको स्वेच्छा से श्रद्धालुओं की सेवा करना चाहिए, जो अच्छे मानव का कर्तव्य है। सरकार एवं राजनीतिक दलों को भी ऐसे मामले पर राजनीति नहीं करना चाहिए !!


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