धर्म का अर्थ है- मानव को मानवता का संदेश देता है वह है धर्म। जब धर्म के कारण मानव में मानवता न रह जाए, प्रेम न रह जाए, तो मेरी मान्यता अनुसार उस धर्म की संज्ञा बदल देनी चाहिए।आज राजनीति के कारण समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिल रहा है, जातिवाद के कारण आपस में बैर बढ़ रहा है, प्रेम का अभाव खटक रहा है। इसी प्रकार धर्म भी अनेक मतांतरों के कारण अपनी राह से विचलित होता नजर आ रहा है। हमें नहीं चाहिए ऐसी राजनीति और नहीं चाहिए ऐसे धर्म, जो मानव को जीने का मार्ग न दे सकें।पहले अल्प विकास के कारण मानव, मानव का दुश्मन था, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज के विकासशील व इन्टरनेट के युग में भी मानव पहले से भी कहीं अधिक भयावह स्थिति समाज में पैदा कर रहा है। मैं तो सभी बुद्धिजीवियों से कहना चाहूंगा कि आज युग बदल गया है, रहन-सहन बदल गया है। ओर मानव के आवास, भोजन, वस्त्र, बोलचाल, यातायात के साधन बदल चुके हैं, तो आपको भी बदलना होगा। राजनीति और धर्मनीति में भी बदलाव करना होगा। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र, धर्म व संस्कृति पर गर्व करता है वह मानवीयता के करीब भी होगा। अफसोस, आज कई धार्मिक संस्थाओं की स्थिति राजनीतिक पार्टियों की तरह हो गई है। जिस प्रकार हर पार्टी को बहुमत की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार धार्मिक-संस्थाओं की स्थिति हो गई है। धार्मिक संस्थाओ मे पद के लिए चुनाव के समय तरह तरह के प्रलोभन व पार्टीयो का आयोजन हो रहा है अब पार्टियो मे शराब, डांस ओर भी अनेतिक कार्य हो रहे है ! धर्म कर्मक्षेत्र में स्वतंत्रता की छूट तो देता है, लेकिन स्वच्छंदता की नहीं। हम नियमों में न बंधकर स्वच्छंद हो गए हैं। यही हमारे दुख का कारण है। हम विचारों से, चरित्र से दिन-प्रतिदिन गिरते जा रहे हैं। ध्यान रहे, महात्मा गांधी भी कहते थे कि मेरी मां जैसी भी हैं, वह सबसे अच्छी हैं। जब यह भाव होगा-तब व्यक्ति जीवन के हर क्रियाकलाप को गौरवान्वित होकर करेगा। उसे अपनी भाषा, अपने परिवार, समाज और राष्ट्र पर गर्व होगा। धर्म जीवन रूपांतरण की एक प्रक्रिया है। ‘गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन रक्षित किया हुआ धर्म ही रक्षा करता है।’ अपना धर्म, अपनी संस्कृति, अपना परिवार, अपने माता-पिता चाहे, कैसे भी हों, वे श्रेष्ठ होते हैं। वे सदैव आदर योग्य होते हैं। इसलिए अब तो कोई ऐसा मजहब चलाया जाए कि इंसान को इंसान बनाया जाए। हम इंसान न बन सकें, कोई बात नहीं, लेकिन दानव न भी बने !
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